JJP-INLD show of strength on the birth anniversary of Tau Devi Lal

Editorial: ताऊ देवीलाल की जयंती पर जजपा-इनेलो का शक्तिप्रदर्शन

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JJP-INLD show of strength on the birth anniversary of Tau Devi Lal

JJP-INLD show of strength on the birth anniversary of Tau Devi Lal:  पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. देवीलाल की 110वीं जयंती पर उनके परिवार के लोगों का राजनीतिक बंटवारा साफ नजर आया है। जननायक की जयंती जजपा और इनेलो के लिए अपनी राजनीतिक ताकत को प्रदर्शित करने का भी माध्यम रही, हालांकि दोनों दलों की रैलियों में यह भी साफ हो गया कि उनका भविष्य क्या है। हरियाणा में वह गोहाना की धरती थी, जब इनेलो में विभाजन की दरारें पड़ी थी, उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री एवं इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के दो पुत्रों अजय चौटाला और अभय चौटाला के रास्ते अलग हो गए।

हालांकि अजय चौटाला के पुत्र दुष्यंत चौटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला ने वह कर दिखाया जोकि उनकी उम्र के युवाओं के द्वारा असंभव ही नजर आता है। पिता के जेल में होने के बावजूद उन्होंने इनेलो से अलग होकर न केवल अपना राजनीतिक दल जजपा स्थापित किया अपितु लगभग छह महीने के अंदर दस विधायकों के साथ विधानसभा में प्रवेश किया और उपमुख्यमंत्री का पद भी हासिल कर लिया। दरअसल, यह सब बताने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है, क्योंकि इनेलो में पिता-पुत्र और भरे-पूरे परिवार के बावजूद वह प्रभाव फिर नहीं लौट पा रहा है जोकि एक जमाने में इनेलो का होता था। हालांकि जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला अपने पुत्रों के साथ न केवल हरियाणा की सियासत अपितु राजस्थान जोकि पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल और खुद उनकी कर्मभूमि रही है, में पर्दापण कर रहे हैं।

इनेलो ने कैथल में जो संकल्प रैली की, वह सामाजिक रूप से सफल कही जा सकती है, लेकिन राजनीतिक रूप से उसके परिणाम आने बाकी हैं। इस रैली में इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला अपने कुछ मित्रों को आमंत्रित करने में सफल रहे, लेकिन  विपक्ष के जिस महागठबंधन इंडिया में शामिल होने को इनेलो भी उत्सुक है, उसके मुख्य कर्ताधर्ताओं ने इस रैली को भाव नहीं दिया। इनेलो की ओर से तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को भी बुलाया गया था, लेकिन यह सुनिश्चित था कि वे रैली में आकर न तो प्रदेश कांग्रेस का प्रभाव कम होने देंगे और न ही इनेलो और उसके नेताओं के भाव बढऩे देंगे। वैसे भी इनेलो नेताओं की ओर से इसके संकेत दिए जा रहे हैं कि वे कांग्रेस के साथ चलने को तैयार हैं।

हालांकि कांग्रेस नेता सीना ठोक कर कह रहे हैं वे अपने दम पर चुनाव लड़ने में सक्षम हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो स्पष्ट कह रहे हैं कि उन्हें रैली का आमंत्रण नहीं मिला। हालांकि इसमें पर्याप्त संशय है कि अगर उन्हें आमंत्रण मिलता भी तो वे रैली में जाते। गौरतलब है कि हरियाणा में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है और साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जीत उसके दरवाजे से लौट चुकी है, ऐसे में उसका प्रदेश में किसी अन्य दल को महत्व देना खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारना होगा।

हालांकि इसके बावजूद इनेलो के संबंध में जनता दल (यू) के नेता केसी त्यागी का यह कहना कि बिना इनेलो विपक्ष में एकता नहीं आ सकती, इसका प्रमाण है कि इनेलो की मंशा इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने की है, लेकिन फिर सवाल यही है कि अगर प्रदेश कांग्रेस नेता नहीं चाहते हैं तो यह कैसे होगा। कैथल में संकल्प रैली के जरिये इनेलो ने अपना अस्तित्व तो दर्शा दिया लेकिन उसे अपना वर्चस्व भी साबित करना होगा।

इस समय 90 सीटों में से एकमात्र सीट इनेलो के पास है। इनेलो के नेता अभय चौटाला ने प्रदेश में यात्रा भी निकाली है, लेकिन यह यात्रा वह प्रभाव पैदा नहीं कर सकी, जिसकी उम्मीद की जा सकती थी। ऐसे में प्रदेश की जनता इनेलो के संबंध में क्या सोचती है, यह भी जाहिर हो रहा है। इसके उलट जननायक जनता पार्टी ने राजस्थान के सीकर में किसान विजय सम्मान दिवस रैली के आयोजन से पहले चरखी-दादरी में रैली का आयोजन किया था, जोकि भीड़ की नजर से सफल रही थी। प्रदेश के किसानों, युवाओं को अगर जजपा में उम्मीद नज़र आ रही है तो यह अप्रत्याशित नहीं है। इसके लिए जजपा नेताओं ने लगातार मेहनत की है और वे अपने संबंध में इतिहास को बदल दिया है। अब जजपा की पहचान किसी भी तरह से इनेलो के साथ नहीं है।

एक समय इनेलो और जजपा के एक होने का शिगूफा भी छोड़ा गया था वहीं परिवारों के एक होने की भी चर्चाएं भी हवा में थी, लेकिन ताऊ देवी लाल की जयंती पर यह साफ हो गया कि दोनों दलों और परिवारों के रास्ते हमेशा के लिए अलग हो चुके हैं। जजपा की राजस्थान में हुई रैली उसके विस्तार की कहानी कहती है। जजपा ने प्रदेश विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर ली है। हालांकि उसके लिए हरियाणा प्राथमिकता होनी चाहिए। दोनों दलों की यह कवायद प्रदेश और देश की सियासत में क्या फर्क लेकर आएगी, यह देखने योग्य होगा। जनता दोनों दलों के अपने-अपने शक्तिप्रदर्शनों को किस तरह देखती है,यह भी आगामी समय में स्पष्ट हो जाएगा। 

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