true empowerment of women

Editorial: महिलाओं का सच्चा सशक्तीकरण तब, जब अधिकार होंगे प्रभावी 

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true empowerment of women देश में महिलाओं को संसद एवं विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम का सर्वसम्मति से पारित होना न केवल महिला समाज का बहुत बड़ा सम्मान है, अपितु भारत के लोकतंत्र की जननी होना और उसे अक्षुण्ण बनाए रखने की उसकी इच्छाशक्ति का भी परिचायक है। एक समाज तभी तरक्की करता है, जब उसके पास श्रेष्ठ विचार होते हैं, इस विचार से बड़ा और क्या हो सकता है कि देश की संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को भी उनका हक मिले और वे पुरुषों के समकक्ष अपने समाज के हितों की आवाज को बुलंद कर सकें। निश्चित रूप से भारत में बीते वर्षों की तुलना में महिलाओं को बड़ा सशक्तीकरण हुआ है, उनके रास्ते अब ज्यादा सुनिश्चित नजर आ रहे हैं। लेकिन वैधानिक रूप से भी महिलाओं को सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है, इस दिशा में राजनीतिक गलियारों में उनके लिए स्थान का निर्धारण मील का पत्थर साबित होगा।

यह देश के लिए अमृत काल का भी समय है। भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने अपना योगदान दिया है। आज जब देश में संसद की नई इमारत में बैठकर सांसदों ने इस विधेयक को पारित कर दिया है तो यह उन सभी महिलाओं के संघर्ष को भी नमन है। इस अधिनियम को लेकर राजनीति का दौर जारी है, लेकिन अगर यह स्वाभाविक है कि आरोप-प्रत्यारोप सामने आएं और काम में अड़चन न डाली जाए। भारत सदैव से समृद्ध राष्ट्र है लेकिन उसकी यात्रा में कुविचारों और सोच के रोड़े अड़ते आए हैं, इन्हें लोकतंत्र की आवाज के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है लेकिन सच यही है कि ऐसे कुविचार देश के विकास को बाधित करते हैं और जनता पांच वर्षों के चुनावी चक्कर से बाहर नहीं निकल पाती।

लोकसभा में यह तय था कि बगैर किसी हिचक के विधेयक पारित हो जाएगा, क्योंकि सत्ताधारी भाजपा के पास बहुमत है। लेकिन राज्यसभा में इसके पारित होने पर संशय था। हालांकि राज्यसभा में एक भी मत इसके विरोध में नहीं पड़ा। कांग्रेस ने इस विधेयक को अपना बताया था, ऐसे में यह संभव ही नहीं था कि पार्टी इसका विरोध करती। हालांकि दूसरे राजनीतिक दलों ने आरक्षण के अंदर आरक्षण और अजा एवं ओबीसी वर्ग के लिए सीटों की मांग की। केंद्र सरकार पर ओबीसी और मुस्लिम वर्ग के हितों से खिलवाड़ का भी आरोप लगा। हालांकि यह सब जनगणना और परिसीमन के बाद लागू होगा और चुनाव आयोग की भूमिका विधेयक के प्रावधानों को लागू कराने में अहम होगी।

वास्तव में इस विधेयक का पारित होना ही अपने आप में अहम विषय था, ऐसे में इस प्रकार की बहस उपयुक्त नहीं दिखाई देती कि पहले इस पर बहस की जाती कि किस वर्ग को इस आरक्षण में क्या मिल रहा है और उसका उसे क्या फायदा होगा। नारी शक्ति वंदन अधिनियम का मंतव्य महिला समाज को उसका अधिकार प्रदान करवाना है और इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रयास सफल रहा है।

इस विधेयक के पारित होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के महिला समाज की ओर से जिस प्रकार अभिनंदन किया गया है, वह बताता है कि देश में महिलाएं किस प्रकार इस बात से आह्लादित हैं कि उनकी सुनवाई हो रही है। यह मोदी सरकार ही है जिसने हर घर शौचालय जैसी मुहिम को सिरे चढ़ाया है। हरियाणा में महिलाओं को पंचायतों में उनका स्थान दिलाने के लिए भाजपा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाई लड़ी है। इस प्रकार केंद्र में मोदी सरकार ने तीन तलाक की बुराई को खत्म किया है, वहीं महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस का फायदा दिलाने के अलावा अन्य योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प का ही हिस्सा है कि देश में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू किया गया और हरियाणा जैसा प्रदेश जोकि एक समय बेटियों को गर्भ में मौत की नींद सुलाने के लिए कलंकित था, अब उस दोष से बाहर आ चुका है।

आखिर इसे विचार शक्ति की जीत नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे। कोई भी व्यक्ति एक समय में पूरे समाज और देश को नहीं बदल सकता, लेकिन इसका प्रयास करते हुए एक हिस्से या बहुजन को तो प्रभावित किया ही जा सकता है। हालांकि मोदी सरकार के नेतृत्व में देश में व्यापक बदलाव सामने आए हैं और देश अपनी सैकड़ों वर्षों पुरानी समस्याओं से बाहर आ रहा है।

हालांकि इस अधिनियम के बनने मात्र से महिलाओं की स्थिति नहीं सुधरेगी। उनके खिलाफ अपराध कम नहीं होंगे। जरूरत इसकी है कि राजनीतिक स्तर पर दल इसकी जिम्मेदारी लें कि वे महिलाओं को वास्तव में उनके अधिकार देंगे और जीत कर आई महिला सांसद एवं विधायक स्वतंत्र होकर निर्णय ले सकेंगी। अभी तक ऐसा नहीं हुआ है, बदलते समय में ऐसा करके ही महिलाओं का वास्तव में सशक्तीकरण किया जा सकेगा।

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