Fire in PGI

Editorial: पीजीआई में अग्निकांड से सुरक्षा-व्यवस्था पर उठे सवाल

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Fire in PGI

Fire in PGI पीजीआई चंडीगढ़ में सोमवार रात जो घटा, वह बेहद खौफनाक और भीषण था, हालांकि इस दौरान पीजीआई प्रशासन और अग्निशमन विभाग की ओर से जो सतर्कता दिखाई गई, उससे सैकड़ों जिंदगियों का बचाव हो गया। दरअसल, किसी हादसे के बाद इसकी चर्चा होती है कि यह किसकी वजह से हुआ और कहां क्या खामी रही, बेशक यह जानना जरूरी है लेकिन इस दौरान अगर हादसे को और भयावह होने से अगर रोक लिया गया तो इसकी भी जहां चर्चा होनी चाहिए अपितु संबंधित विभाग और अधिकारियों और स्टाफ की भी प्रशंसा होनी चाहिए।

पीजीआई में अगर सोमवार की रात सावधानी नहीं बरती जाती और आग और फैल जाती तो कितनी जिंदगियां स्वाह होती, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। मालूम हो इस हादसे में 351 बड़े मरीजों को, 56 नवजात शिशुओं को, 17 पीडियाट्रिक जिनमें से 34 इंटेंसिव केयर यूनिट में थे और 80 गर्भवती महिलाओं को बचाया गया। यह सब लोग बहुत बड़े संकट में थे और जिस समय इन्हें रेस्क्यू किया जा रहा था, तब भी इनकी जान संकट में थी लेकिन अंत तक लड़ने की चाहत में मरीज भी लड़ते रहे और उन्हें बचाने के लिए पीजीआई स्टाफ भी।

बताया गया है कि यह हादसा यूपीएस की 160 बैटरियों में से एक में शॉर्ट सर्किट के बाद धमाके से लगी आग के कारण हुआ। पीजीआई के नेहरू हॉस्पिटल के सी-ब्लॉक में यह अग्निकांड हुआ। अब पीजीआई प्रशासन ने इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए 14 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जोकि आवश्यक है। पीजीआई न केवल इस क्षेत्र अपितु पूरे देश का गौरव है और यहां उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं अमूल्य हैं। पीजीआई ने अपने नाम और गौरव गाथा को कायम रखा है और यह मरीजों के लिए दूसरा जीवन हासिल करने का स्थान भी है। ऐसे में यहां अगर अग्निकांड होता तो न केवल इसके नाम पर धब्बा लगता अपितु यहां की व्यवस्था की खामी भी सामने आती। हालांकि यह कोई नहीं जानता है कि किस जगह पर बिजली उपकरणों में कब शॉर्ट सर्किट जैसा हादसा हो जाए और यह दिन में हो या रात में। लेकिन सबसे बढक़र यह है कि अगर ऐसा होता है तो उसे रोकने के लिए कोई वहां मौजूद है। बेशक, सवाल उठे हैं कि स्मोक अलार्म न लगे होने से अलर्ट होने में देरी हो गई। अब पीजीआई प्रशासन का इस संबंध में ध्यान देना होगा, आज के समय में अग्निशमन के तमाम उपाय इमारतों में जरूरी हो गए हैं, वैसे यह भी सच है कि सरकारी इमारतों में ऐसे उपायों की अनदेखी की जाती है।

पीजीआई में हादसे के दौरान धुआं भर गया था और इस दौरान मरीजों ने भी डंडे-कुर्सियों या जो भी उनके हाथ लगा, उससे बिल्डिंग के शीशे तोड़े ताकि धुआं बाहर निकल सके। तीमारदार अपने मरीजों को बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ रहे थे। चौथी और पांचवीं मंजिल से नीचे उतरना भी एकाएक संभव नहीं था। लेकिन इस बीच नगर निगम से हाइड्रोलिक लैडर कम टर्नटेबल मंगवाकर मरीजों को नीचे उतारा गया। मालूम हो, यह हादसा कितना गंभीर था, इसका पता इससे चलता है कि मरीजों और उनके तीमारदारों की जान को तो संकट था ही, आग कंट्रोल करने पहुंचे अग्निशमन विभाग के कर्मचारियों को भी सांस लेने में भारी दिक्कत हुई। यह हादसा उन्हें भी आजीवन याद रहेगा, क्योंकि एक चिकित्सा संस्थान में आगजनी के बाद क्या हो सकता है, इसका अंदाजा हर किसी को होता है। पीजीआई में चौथी और पांचवीं मंजिल पर आग लगने का मतलब यह है कि यहां से बच निकलना मुश्किल ही नहीं असंभव होता। लेकिन इसके बावजूद जिस भी तरीके से हुआ हो, लेकिन यहां मरीजों, उनके तीमारदारों और अन्य लोगों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया।

वैसे प्रशासन की ओर से अग्निशमन विभाग को यह निर्देश देना कुछ लेटलतीफी भी नजर आती है कि नगर निगम के तहत आते सभी अस्पतालों का फायर ऑडिट कराया जाए। यह नियमित चलने वाली गतिविधि होनी चाहिए। प्रशासक ने इस प्रकरण के संबंध में जानकारी ली है। बताया गया है कि स्वास्थ्य विभाग के पूर्व सेक्रेटरी यशपाल गर्ग के समय ही ऐसा ऑडिट हुआ था। अब सेक्टर-11 फायर स्टेशन ऑफिसर की ओर से रिपोर्ट में कहा गया है कि पीजीआई में संबंधित इमारत के लिए फायर एनओसी नहीं ली गई थी। इसके अलावा फायर फाइटिंग सिस्टम में कई जगह लीकेज मिली है। आखिर ऐसी खामियां कैसे छोड़ी जा सकती हैं। कहा गया है कि पीजीआई ने 2021 में एनओसी के लिए आवेदन किया था, लेकिन नॉर्म्स पूरे नहीं हो सके थे। वास्तव में चंडीगढ़ प्रशासन और पीजीआई प्रशासन को इस अग्निकांड को पूरी गंभीरता से लेना होगा, बचाव हो गया लेकिन ऐसा हादसा भविष्य में न हो, इसके पूरे जत्न करने होंगे। 

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