caste census

Editorial: जातिगत जनगणना का मकसद हो विकास न कि राजनीति

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caste census आखिरकार बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने वह दांव चल ही दिया जिसे अभी तक ब्रह्मास्त्र के रूप में बचाकर रखा गया था। बिहार जैसे प्रदेश में जातिगत जनगणना के आंकड़े क्या करामात दिखा सकते हैं, यह भारतीय राजनीति की समझ रखने वाले बखूबी समझते हैं। वास्तव में जब पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांग की जा रही है, तब अकेले बिहार में इसे व्यवहार में लाकर नीतीश कुमार ने अपने विरोधियों खासकर भाजपा को चुनौती पेश कर दी है। 

बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के साथ ही राजनीतिक  बवंडर तेज हो गया है। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस मास्टर स्ट्रोक का कितना प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा, यह तो भविष्य में ही साफ हो पाएगा लेकिन इतना जरूर है कि इससे भाजपा की राह में रोड़े अटकने की कोशिशें फलीभूत होती दिखेंगी। कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दल केंद्र सरकार से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। बिहार की रिपोर्ट जारी होने के बाद इतना तो तय है कि केंद्र में मोदी सरकार पर इसके लिए दबाव बढ़ेगा। देशभर में विपक्षी गठबंधन की गोलबंदी के प्रमुख रणनीतिकार बने नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के सामने ऐसा पासा फेंका है, जिसके लिए भाजपा के रणनीतिकारों को अतिरिक्त रूप से सावधान हो जाना होगा। 

गौरतलब है कि देश में जातिगत जनगणना की मांग इस आधार पर जोर पकड़ रही है कि आधिकारिक रूप से जातिगत आंकड़ों की घोषणा करके उसके मुताबिक योजनाएं बनाई जाएं। राजद के प्रमुख लालू यादव इसकी मांग उठाते आ रहे हैं। जािहर है, इससे उन राजनीतिक दलों के लिए भी आसानी हो जाएगी जोकि जातिगत आधार पर ही अपनी राजनीति कर रहे हैं।
 बिहार में इस समय अत्यंत पिछड़ा वर्ग (36फीसदी) और पिछड़ा वर्ग (27फीसदी) की आबादी सबसे अधिक है। अगर इन दोनों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा 63 फीसदी पहुंचता है। ऐसे में आबादी से अनुपात में आरक्षण की मांग जोर पकड़ सकती है। बिहार की तरह ही जाति आधारित जनगणना कराने की मांग राष्ट्रीय राजनीति में भी खड़ी हो सकती है। वैसे, भाजपा ने भी इस रिपोर्ट का खुलकर समर्थन किया है, हालांकि इसे अधूरी रिपोर्ट भी बताया है।

वैसे इतना तय है कि विपक्ष का इंडिया महागठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव में इसे मुुद्दा बनाएगा। एनडीए गठबंधन ने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का कानून बनाकर जो मास्टर कार्ड चला था, उसकी काट यह जातिगत जनगणना का विपक्षी कार्ड हो सकता है। यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने 85 बनाम 15 का मुद्दा दिया था। उनका मकसद आबादी के हिसाब से आरक्षण देने का था। अब कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि अगर मध्य प्रदेश में वे सत्ता में आए तो सरकार जाति जनगणना कराएगी। बिहार से निकला जाति जनगणना का मुद्दा और फिर उसके बाद ओबीसी आरक्षण की बात अगर निकलेगी तो निश्चित तौर पर दूर तलक जाएगी।

ऐसे तथ्य हैं कि बीते दो दशक के दौरान भाजपा ने खुद को उच्च वर्ग से बाहर करके पिछड़ों, अजा और अन्य पिछड़ा वर्ग की पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है। उसने अपने स्वरूप में ऐसा परिवर्तन किया है कि उसे सवर्णों का भी साथ मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में ओबीसी के लिए योजनाओं का खुलकर जिक्र करते हैं। 2021 के मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुलकर मंत्रिमंडल में ओबीसी मंत्रियों की संख्या को बताया था। तब नड्डा ने कहा था कि मंत्रिमंडल विस्तार में 27 ओबीसी मंत्री बने हैं। यही नहीं, 12 अजा, 8 एसटी समुदाय से भी मंत्री बनाने की बात कही थी। यानी पार्टी का दिल पिछड़ा, अति पिछड़ा, अजा और सवर्णों के लिए बराबर धड़क रहा है।

 वैसे यह प्रमुख सवाल है कि क्या देश में अब जातिगत आंकड़ों के आधार पर ही विकास होगा। तब यह कैसा विकास होगा। अगर किसी इलाके में पिछड़े ज्यादा हैं तो वहां की सड़क ठीक हो जाएगी लेकिन अगर कहीं सवर्ण गिनती के हैं तो वहां काम नहीं होगा, क्योंकि वहां से वोट नहीं मिलना है। इसी प्रकार कहीं अस्पताल, स्कूल, कॉलेज खोलने के लिए भी जातिगत आंकड़ों को आधार बनाया जाएगा। यह तब है, जब समाज से जाति को खत्म करने की बात कही जाती है। हालांकि भारत जैसे परंपरावादी देश में न जाति खत्म होगी, न ही धर्म। न ही क्षेत्र खत्म होंगे और न ही उनकी राजनीति। 

यह जरूरी है कि आर्थिक आंकड़े भी पेश किए जाएं। क्या आर्थिक आंकड़ों के सामने के आने के बाद सही तरीके से सब तबके का विकास सुनिश्चित नहीं हो पाएगा। जातिगत जनगणना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन यह जरूरी है कि इन आंकड़ों को महज वोट बैंक के रूप में इस्तेमान न किया जाए। आजादी के बाद से ही देश जातियों में बंटकर लड़खड़ाता चला आ रहा है। अब जरूरत जातियों को लेकर संकुचित सोच को त्यागकर प्रत्येक समाज को विकसित बनाने की है। संविधान भी यही कहता है, उसने प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिए हैं। फिर सरकार राजनीति के लिए उनका वर्गीकरण कैसे कर सकती है।

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