Natural disaster serious in Sikkim

Editorial:सिक्किम में प्राकृतिक आपदा गंभीर, यह राष्ट्रीय समस्या

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Natural disaster serious in Sikkim

Natural disaster serious in Sikkim देश में जब मानसून अपने चरम पर पहुंच कर शांत हो चुका है, तब पूर्वोत्तर से आने वाली यह रिपोर्ट बेहद दर्दनाक और चिंताजनक है कि सिक्किम में बादल फटने से आई बाढ़ में 42 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है वहीं सेना के 22 जवानों समेत 109 लोग लापता हैं। सिक्किम इस समय सबसे बुरे हालात से गुजर रहा है। अभी कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में आसमान से आफत बरस रही थी, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई और हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति नदियों की भेंट चढ़ गई। प्राकृतिक आपदा कहकर नहीं आती, लेकिन जिस प्रकार से देश में हालात बन रहे हैं, वह बेहद चिंताजनक और हृदयविदारक हैं।

सिक्किम में सबकुछ एकाएक हुआ और यह कितना हैरान करने वाला घटनाक्रम रहा होगा कि सेना के 22 जवानों को संभलने का मौका नहीं मिला और वे तीस्ता नदी के जल प्रलय में बह गए। अब उनके वाहन रेत में दबे हुए मिल रहे हैं।

निश्चित रूप से सिक्किम के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है। प्रदेश में 22 हजार लोग इस आपदा से पीड़ित हुए हैं। अभी तक 2 हजार से ज्यादा लोगों को क्षतिग्रस्त मकानों से बाहर निकाला गया है। राज्य के चार जिलों में 26 राहत शिविर बनाए गए हैं, जहां पर प्रभावितों को रखा जा रहा है। राज्य सरकार की ओर से दिन-रात बचाव का कार्य जारी है। लोगों की तलाश के लिए सेना और एनडीआरएफ की टीमें बढ़ाई गई हैं। हेलीकॉप्टर और ड्रोन की भी मदद ली जा रही है। गुवाहाटी और पटना से और टीमें भेजी जा रही हैं।

सिक्किम में खराब मौसम के कारण सभी सरकारी और निजी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय को अगले कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया है। नदियों में बाढ़ का सबसे अधिक असर सडक़ों और पुलों पर पड़ता है। इस आपदा में भी सिक्किम के 11 पुल बह गए हैं। तीस्ता नदी में आई बाढ़ इन पुलों को अपने साथ बहा ले गई। ऐसे में राज्य के अंदर जिलों का एक-दूसरे से संपर्क कट गया है वहीं राज्य का बाहरी राज्यों से भी संपर्क ठप हो गया है।  

ऐसी रिपोर्ट हैं, जिनके अनुसार राज्य के चुंगथांग शहर में बाढ़ से सबसे अधिक नुकसान हुआ है, जिसमें इसका 80 प्रतिशत हिस्सा बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। राज्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण एनएच-10 के कई हिस्सों को भी क्षति पहुंची है। पाकयोंग जिले में सात लोगों की मौत हुई है जबकि मंगन में चार और गंगटोक में तीन लोगों ने अपनी जान गंवा दी। आपदा में लापता 103 लोगों में से 59 लोग पाकयोंग से हैं, जिसमें सैन्यकर्मी भी शामिल हैं। गंगटोक से 22, मंगन से 16 और नामचि से पांच लोग लापता हैं। इस दौरान कुल 26 लोग घायल हुए हैं। हालांकि सेना यहां लगातार बचाव कार्य में जुटी है, सीमा सडक़ संगठन चुंगथांग और मंगन में बचाव कार्यों में राज्य की मदद कर रहा है जहां चार महत्वपूर्ण पुल बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं।

इससे पहले हिमाचल प्रदेश में शिमला समेत राज्य के दूसरे जिलों में जिस प्रकार की तबाही का मंजर देश ने देखा है और सिक्किम में उसको फिर से दोहराते देखा जा रहा है, वह मौजूदा समय में विकास की अंधी दौड़ को प्रदर्शित करता है। सिक्किम में तीस्ता नदी के किनारों के बहुत नजदीक मकान बने हुए हैं, समझ नहीं आता कि आखिरकार ऐसा कैसे हो जाता है। देश की आबादी बढ़ रही है और उसे रहने के लिए आवास चाहिएं। ये आवास प्राकृतिक संसाधनों को खत्म करके तैयार किए जा रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी की रिसर्च में सामने आ रहा है कि महज 25 हजार की आबादी के लिए बसाए गए शिमला में इस समय 3 लाख लोग रह रहे हैं। इसके अलावा यहां हजारों की संख्या में रोजाना सैलानी पहुंच रहे हैं। इनके रहने और अन्य संसाधनों के लिए जो सेवाएं प्रयोग में लाई जा रही हैं, उन सभी का दबाव इतना हो गया है कि यह छोटा सा शहर इसे झेल पाने में नाकाम साबित हो रहा है। कमोबेश यही स्थिति प्रत्येक राज्य की हो गई है।

पूर्वोत्तर के राज्यों में भी यही हालात हैं। राज्यों विशेषकर पर्वतीय राज्यों में  आजकल जिस प्रकार से प्रकृति के उलट जाकर विकास हो रहा है, वह इन राज्यों के संसाधनों के लिए भयंकर रूप से घातक साबित हो रहा है। मैदानों में आबादी बढ़ती है तो निर्माण ऊंचाई की तरफ होने लगते हैं, लेकिन पहाड़ों पर निर्माण ऊंचाई की तरफ बढ़ते भी हैं तो उस पहाड़ को काटकर जोकि सदियों से धरती पर उगे हुए हैं और अपने स्वरूप एवं प्रकृति में जी रहे  हैं । क्या वे यह स्वीकार कर सकते हैं कि मानव अपने फायदे के लिए उनकी जगह और उनके स्वरूप को चोट पहुंचाए। प्रकृति से छेड़छाड़ बंद न हुई तो यह समस्या यूं ही विकराल होती जाएगी। बढ़ती आबादी को रोकना भी एक उपाय होना चाहिए। 

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