Asking questions about money is serious

Editorial: पैसे लेकर सवाल पूछना गंभीर, पूरा सच आए देश के सामने

Edit1

Asking questions about money is serious

यह आरोप अपने आप में अत्यंत गंभीर है कि पश्चिम बंगाल से टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पैसे लेकर लोकसभा में सवाल पूछती हैं। पश्चिम बंगाल में जहां कई तृणमूल सदस्य व मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे हैं, वहीं अब पार्टी की सांसद पर इस तरह के आरोप लगना पेचीदा मामला हो जाता है। सांसद महुआ मोइत्रा पर आरोप न सिर्फ गंभीर भ्रष्टाचार का है, बल्कि सदन की गरिमा गिराने और विशेषाधिकारों के हनन का आरोप भी लगा है। उन पर पैसे और गिफ्ट के बदले विदेश में बसे एक उद्योगपति मित्र के हितों के लिए संसद में सवाल पूछने का आरोप है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी ऐसा मामला सामने आ चुका है। यह साल 2005 की बात है, जब सांसदों पर ऐसे आरोप लगे तो उनकी संसद से सदस्यता चली गई। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर अब सांसद महुआ मोइत्रा पर इसका आरोप लगाया है। कहा गया है कि महुआ ने अब तक सदन में 61 सवाल पूछे हैं, जिसमें से 50 एक उद्योगपति के कारोबार से जुड़े रहे हैं। निश्चित रूप से इन आरोपों की जांच होनी चाहिए। भारतीय राजनीति में कब किस पर किस प्रकार के आरोप लग जाएं यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन ऐसे में यह आवश्यक है कि उन आरोपों के संबंध में सच सामने आए। हालांकि राजनीतिक रूप से यह मामला चर्चित हो गया है और अब सबकी नजर इस पर है।

दरअसल, सांसद निशिकांत ने लोकसभा अध्यक्ष को बताया है कि दिल्ली के एक अधिवक्ता ने इस मामले की पूरी पड़ताल की है, लोकसभा में महुआ की ओर से पूछे गए सवालों की लिंक अटैच की है और साथ ही यह भी बताया है कि पूछे गए सवाल किस तरह एक ही उद्योगपति से संबंधित थे। वास्तव में एक पहलू यह भी है कि कुछ सवालों को अदाणी समूह से जोड़ा जाता था, जिसके खिलाफ महुआ के उद्योगपति मित्र की कंपनी संघर्ष कर रही होती थी। निशिकांत ने इस मामले में पूरी जांच कमेटी बिठाने और कार्रवाई करने की मांग करते हुए टीएमसी सांसद की फायरब्रांड छवि पर भी सवाल उठाए हैं।

हालांकि टीएमसी सांसद की ओर से कहा गया है कि वे किसी भी जांच का स्वागत करेंगी। बेशक, सांसद महुआ का राजनीतिक रूप से ऐसा ही बयान आना चाहिए। हालांकि हाल ही में उनके संबंध में कुछ ऐसे विवरण भी सामने आए हैं, जिन पर राजनीति और समाज में सवाल उठ रहे हैं। बेशक, एक सांसद की भी निजी जिंदगी है, लेकिन भारतीय संदर्भों में क्या किसी सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति यानी एक माननीय को खुलेआम शराब पीते और सिगार के कश लगाते देखना क्या विचित्र अनुभव नहीं है। सांसद होना कोई ऑनरशिप हासिल कर लेना नहीं है, अपितु यह बेहद जिम्मेदारी का पद है। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि प्रत्येक माननीय का जीवन पारदर्शी और दूसरों के लिए प्रेरक होगा। क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर यह इस पद की गरिमा को हीन करेगा और जनता के बीच गलत संदेश जाएगा।

पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में कहा जा रहा है कि ऐसा करने के पीछे मंशा परोक्ष रूप से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश होती थी। रिपोर्ट के अनुसार महुआ मोइत्रा मई 2019 में चुनकर लोकसभा पहुंचीं। आठ अगस्त 2019 को उन्होंने पेट्रोलियम मंत्रालय से पारादीप पोर्ट ट्रस्ट से जुड़ा सवाल पूछा था। तब पारादीप के साथ 2018 में उद्योगपति जिन्हें सांसद का मित्र बताया गया है, के साथ समझौता हुआ था। 18 नवंबर को महुआ ने फिर से पेट्रोलियम से जुड़ा सवाल पूछा और अदाणी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। 2005 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने ऐसे ही एक मामले की जांच कराई थी। महज 23 दिन के अंदर आई रिपोर्ट के बाद सदन ने एकमत से इसकी आलोचना करते हुए सदस्यता खारिज कर दी थी। अब सांसद महुआ पर भी इसका खतरा गहरा रहा है।

देश में इस समय कांग्रेस के नेतृत्व मेंं महागठबंधन की कवायद जारी है। इंडिया नाम से इस गठबंधन की नींव भी पड़ चुकी है। गठबंधन के नेताओं पर ईडी, सीबीआई की ओर से छापे की कार्रवाई चल रही हैं। ऐसे में इस मामले को भी अगर राजनीति से प्रेरित करार नहीं दिया जाए, इसमें पर्याप्त संशय है। वास्तव में ईडी, सीबीआई की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताना भी नेताओं के लिए ढाल होती है, हालांकि मामला जब अदालत के समक्ष जाता है तो ईडी को भी जवाब देना पड़ता है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को अपने ऊपर लगे आरोपों के संबंध में पूरा सच देश के समक्ष रखना होगा। उनकी पार्टी के नेतृत्व को भी इस बारे में जवाब देना चाहिए, संसद को इसका अधिकार है कि वह ऐसे मामलों में सख्त निर्णय ले। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: मनोहर सरकार के फैसले बने नजीर, प्रदेश में विकास की बयार

Editorial: गर्भपात से एक जिंदगी बची तो दूसरी मिटेगी, यह सही न्याय होगा?