सांस्कृतिक सम्मोहन में खिंची चली आई दुनिया की योगनियां
Yoginis of the world were drawn into cultural hypnotism
मुकेश अग्रवाल
Yoginis of the world were drawn into cultural hypnotism: योग नगरी ऋषिकेश से कोई चालीस किलोमीटर की दूरी पर बसे सिंगथाली गांव के निकट बड़ी संख्यों में विदेशी साधकों का हुजूम लगा था। इनमें ब्रिटेन, अमेरिका,इंडोशिया, ईरान, ताइवान, चीन यहां तक कि पाकिस्तान से योग के जिज्ञासु भी शामिल थे। गांव के ठीक नीचे पुण्य सलिला गंगा की लहरों का अंतर्मन को भिगोना वाला संगीत साधकों को सम्मोहित कर रहा था। जैसे ही सूर्य की रश्मियां टिहरी गढ़वाल की इस तलहटी में नवजीवन का संचार करने लगी, ये तमाम विदेशी योगी-योगनियां अपने तांबे, चांदी व मिश्रित धातुओं के पात्रों से सूर्य को अर्ध्य देने लगते हैं। ये क्रम निरंतर कई घटों तक चलता है। दरअशल, ये विभिन्न देशों, संस्कृतियों व धर्मों के साधक जल साधना के जरिये ध्यान की एकाग्रता का लक्ष्य हासिल कर रहे थे। साम्यवादी चीन, लोकतांत्रिक ताइवान, कठमुल्ला संस्कृति के वाहक ईरान व पाकिस्तान के विभिन्न धर्मी लोगों को सूर्य को अर्ध्य देते देखना रोमांचित करता है। ये योग की जोड़ने की संस्कृति का जीवंत प्रमाण ही है।
इसी बीच गंगा की धारा के मध्य एक दिव्य योगी का सूर्य को अर्ध्य देते हुए जल साधना करना योग साधकों को रोमांचित कर जाता है। उनके साथ एक ब्रिटिश साधक परछाया की तरह सदैव मौजूद रहते हैं। बेंगलुरू स्थिति योग अनुसंधान संस्थान अक्षर योग केंद्र के सूत्रधार हिमालय सिद्ध अक्षर की उपस्थिति योग साधकों को रोमांचित कर जाती है। पिछले वर्षों में आधा दर्जन से अधिक आसनों के प्रदर्शनों के जरिये विश्व विख्यात गिनीज बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड में उपस्थिति दर्ज करा चुके हिमालय सिद्ध अक्षर कअनुयायियों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। गंगा के तट पर मार्गदर्शन कर रहे योगी व योगनियों का श्रद्धा व विश्वास से निरंतर सूर्य को अर्ध्य देने एक सुखद अनुभव दे जाता है।
निस्संदेह, यह योग की ताकत ही है दुनिया की अलग-अलग शासन व्यवस्थाओं, विभिन्न महाद्वीपों, संस्कृतियों व धर्मों से जुड़े लोग यहां श्रद्धा भाव से योगिक क्रियाओं को संपन्न कर रहे थे। उनके लिये योग व ध्यान की समृद्ध परंपराएं धार्मिक विश्वासों में बाधक नहीं है। ये योग की वैश्विक सर्वस्वीकार्यता ही है कि इन युवा योग साधकों को भारत की धरती सम्मोहित करती है। ये अद्भुत सांस्कृतिक मेला नजर आता है। इस विशिष्ट योग सम्मेलन में भाग लेने वालों में कॉरपोरेट जगत के बड़े अधिकारी शामिल हैं। उनमें एक नवविवाहित युगल, एक भरा-पूरा परिवार, एक प्रेमी युगल, एक विवाह को तिलांजलि देकर आई आत्मनिर्भर युवती और एक सत्तर वर्षीय चीनी महिला भी शामिल रही। वे न केवल गंगा के महात्मय के साथ योग साधना करते रहे बल्कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति खानपान व रीतिरिवाजों से भी परिचित होते रहे। उन्होंने उत्तराखंड के रीति-रिवाजों व संस्कृति में खासी रुचि दिखायी। उन्हें तमाम विदेशी व्यंजनों के बजाय उत्तराखंड के परंपरागत खाद्य पदार्थ व मिठाइयां रास आई। खानपान में मंडवे का डोसा, अरसे, स्वाली और आलू-मूली कि थिचौंडी उन्हें अपने विशिष्ट स्वाद के लिये प्रभावित करती रही।
पिछले दिनों ताइवान की यात्रा से लौटे अंतर्राष्ट्रीय योग गुरु हिमालय सिद्ध अक्षर बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा योग को मान्यता देने से इसकी स्वीकार्यता वैश्विक स्तर पर बढ़ी है। लोग लगातार अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं। आधुनिक चिकित्सा के बजाय योग व प्राकृतिक चिकित्सा में रुचि ले रहे हैं। भारत को योग की जन्मस्थली की रूप में स्वीकार्यता मिल रही है। वे बताते हैं कि इस योगा रिट्रीट में साधकों को आसन, प्राणायाम व ध्यान के साथ योगदर्शन के आध्यात्मिक पक्ष से भी अवगत कराया गया। ये योग साधक मशीनी होती जिंदगी की ऊब से मुक्त होने के लिये भारत आते हैं। सही मायनों में योग हमारे मनोकायिक रोगों में एक अचूक दवा का काम करता है। दरअसल,रोग हमारे मन के दोषों से भी पनपते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दिल दिमाग को प्रदूषण से मुक्त करके योग साधना से सुकून हासिल करना उनकी प्राथमिकता है। वे आसपास के गंगा से जुड़े तीर्थों तक पहुंचे। देवप्रयाग का तीर्थाटन उन्हें मंत्रमुग्ध कर गया। एक पूरे दिन उन्होंने संगम पर जल साधना के जरिये आध्यात्मिक साधना के अविस्मरणीय अनुभव हासिल किये। निश्चय ही भारत से पवित्र अहसास लिये ये साधक कालांतर अपने अपने देशों में भारत के सांस्कृतिक दूत की भूमिका निर्वहन करेंगे।
दरअसल, सिंगथाली के सुरम्य प्राकृतिक अधिवास में गंगा का सानिध्य इन विदेशी योग साधकों को भावविभोर कर गया। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुषमा उन्हें मंत्रमुग्ध कर गयी। इस पंद्रह दिन को योग पर्व में उन्होंने योग की विभिन्न आयामों से रूबरू होने का शुभअवसर पाया और इसका भरपूर लाभ भी उठाया। प्रातःकालीन सत्र में आसन, प्राणायाम व ध्यान, दिन में योग जिज्ञासाओं पर मंथन और रात्रि के सत्रों में योग के बौद्धिक विमर्श में इन विदेशी मेहमानों ने सक्रिया भागेदारी निभायी। इन विदेशी साधकों की योग जिज्ञासाओं के निराकरण के लिये कई विशेष सत्र भी इस दौरान आयोजित किए गए। वहीं गंगा के तट पर रोज होने वाली संध्याकालीन गंगा आरती इन साधकों के लिये एक पर्व जैसा होता था। घाटी की गहराई में पहाड़ी इलाका होने के कारण सूर्य जल्दी ही ओझल हो जाता है ऐसे में आरती में प्रयुक्त होने वाला कई ज्योतियों वाली दीप माला इन विदेशी मेहमानों को रोमांचित कर जाती है। वे फिर अपनी योग साधनाओं में गहरे उतर जाते।
हिमालय सिद्ध अक्षर बताते हैं कि योग को वैश्विक मान्यता मिलने के बाद दुनिया के लाखों साधक भारत आकर योग की जन्मभूमि से रूबरू होना चाहते हैं। दरअसल, भौतिक सुखों की विसंगतियां इनको उपभोक्तावादी संस्कृति से विमुख कर रही है। वे सुकून की तलाश में योग की जन्मभूमि भारत इसके सम्मोहन में बंधे चले आते हैं। यह क्रम सालों साल चलता रहता है। उन्हें भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व धार्मिक सीमाएं बांध नहीं पाती। विडंबना यह है कि विदेशों में लोग जिस भौतिक संस्कति का परित्याग करने को प्रयासरत हैं, भारत में उसका अनुकरण शान समझा जाता है। ऐसे में योग का सानिध्य हमें सुखमय जीवन की राह दिखाता है।