सूरज की रोशनी जरूरी नहीं! समंदर की गहराई में मिल गई डार्क ऑक्सीजन, विज्ञान जगत में खलबली

Dark Oxygen a Deep Sea Discovery

Dark Oxygen a Deep Sea Discovery

समुद्र से: Dark Oxygen a Deep Sea Discovery: गहरे समुद्र में डार्क ऑक्सीजन के मुद्दे पर दुनिया भर के वैज्ञानिक बंटे हुए नजर आ रहे हैं. ऑक्सीजन के मुद्दे पर लाखों वर्ष पहले से आ रही परंपरा को लगातार चुनौती मिल रही है. पहले से ये विश्वास था कि सूरज की रोशनी में पौधे प्रकाश संश्लेषण की मदद से ऑक्जीजन का निर्माण करते हैं.

डार्क ऑक्सीजन को लेकर 2.7 अरब साल पहले से जीवन की उत्पत्ति को लेकर आ रही उस धारणा को लेकर अब संदेह पैदा हो गया है, जिसमें ये कहा जाता रहा है कि जीवन तभी संभव हो पाया जब जीवों ने ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू किया था. और इस ऑक्सीजन के लिए सूरज के प्रकाश की जरूरत होती है.

डार्क ऑक्सीजन थ्योरी को लेकर वैज्ञानिकों में बहस छिड़ी है कि क्या समुद्र की गहराई में सूरज की रोशनी की गैर मौैजूदगी में सागर की तलहटी में मौजूद खनिज पदार्थों से ऑक्सीजन पैदा होता है. कुछ साइंटिस्ट इस धारणा को स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ इस धारणा को चैलेंज करते हैं कि समुद्र की गहराई में खनिज पदार्थों से सूर्य की रोशनी के बगैर ऑक्सीजन का निर्माण होता है.

डार्क ऑक्सीजन की इस अवधारणा को लेकर बीते जुलाई में नेचर जियो साइंस के जर्नल में शोध प्रकाशित हुआ था. इस शोध में डार्क ऑक्सीजन की वजह से जीवन की उत्पत्ति को लेकर बात सामने आई थी. तब से इसको लेकर तगड़ा डिबेट चल रहा है. वैज्ञानिकों के इस रिसर्च के बाद खनिज कंपनियों के लिए समुद्र के गर्भ में छिपे खनिज पदार्थ और अहम हो गए हैं.

समुद्री खोज से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र की घाटी में मिले आलू के आकार के ये खनिज पदार्थ पानी की धारा को अलग करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इस कड़ी में इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अलग हो जाते हैं.

वैज्ञानिकों की इस धारणा की वजह से 2 अरब 70 करोड़ साल पहले जीवन की उत्पत्ति को लेकर आ रही उस धारणा को झटका लगा है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि सूरज की रोशनी की मौजूदगी में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से ऑक्सीजन का निर्माण होता है. स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मैरीन साइंस ने अपनी इस रिसर्च को प्रकाशित करते हुए कहा है कि इस डीप शी डिस्कवरी की थ्योरी से जीवन की उत्पत्ति को लेकर एक प्रश्न खड़ा हो गया है.

पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र में ऑक्सीजन को लेकर बहुत कम जानकारी है. साथ ही समुद्र में खनिज पदार्थों की खुदाई से पर्यावरण को खतरा है.

पर्यावरण संगठन का कहना है कि ग्रीन पीस संस्था ने समुद्री खनिन पदार्थों के खनन पर रोक को लेकर जोर-शोर से आवाज उठाई थी. साथ ही खनन की वजह से पर्यावरण को बड़ा संकट बताया था. समुद्री खनिजों और डॉर्क ऑक्सीजन को लेकर हो रहे ये आंदोलन इसकी प्रासंगिकता को भी रेखांकित करते हैं.

बता दें कि डॉर्क ऑक्सीजन को लेकर प्रशांत महासागर के क्लेरियन-क्लिपर्टन जोन में पानी के भीतर इस बात की खोज की गई है. ये इलाका मैक्सिको और हवाई द्वीप के बीच है. यहां पर खनिज कंपनियों की खुदाई पर नजर लगी हुई है.

रिसर्च में ये पाया गया है कि समुद्र के 4 किमी नीचे बहुत सारे खनिज पदार्थ बिखरे पड़े हैं. इन खनिज मिनरल में मैगनीज, निकिल और कोबॉल्ट जैसी धातुएं शामिल हैं. इन धातुओं का उपयोग कार की बैटरीज और लो कॉर्बन टेक्नोलॉजी बनाने में किया जाता है.

कनैडियन कंपनी द मेटल डार्क ऑक्सीजन के इस रिसर्च को लेकर आंशिक रूप से आर्थिक मदद कर रही है. द मेटल कंपनी इस चीज को लेकर जानने के लिए प्रयास कर रही है कि इससे पर्यावरण तंत्र को कितना नुकसान हो रहा है. इसने समुद्री पारिस्थितिकीविद् एंड्रयू स्वीटमैन और उनकी टीम के रिसर्च रिपोर्ट की तीखी आलोचना की है और कहा है कि यह "पद्धतिगत खामियों" से ग्रस्त है।

द मेटल्स कंपनी के पर्यावरण प्रबंधक माइकल क्लार्क ने इस रिसर्च रिपोर्ट को लेकर कहते हैं कि कि ये निष्कर्ष "तार्किक रूप से पहले कभी न देखी गई घटना की तुलना में खराब वैज्ञानिक तकनीक और घटिया विज्ञान के कारण अधिक दिखाई देते हैं.

इसी कड़ी में वैज्ञानिक समुदाय में स्वीटमैन के रिसर्च को लेकर कई लोगों ने संदेह व्यक्त किया गया है. साथ ही कुछ वैज्ञानिकों ने उनके निष्कर्षों को अस्वीकार कर दिया. जान लें कि बीते जुलाई से अब तक 5 एकेडेमिक शोधपत्र और समीक्षा पब्लिश करने के प्रस्तुत किए जा चुके हैं. इन सबमें स्वीटमैन के निष्कर्षों का खंडन किया गया है.

स्वीटमैन के निष्कर्षों पर जर्मनी के कील स्थित जियोमर हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर फॉर ओशन रिसर्च के बायोजियोकेमिस्ट मैथियास हेकेल कहते हैं कि स्वीटमैन ने अपने अवलोकनों और परिकल्पना के लिए कोई सबूत नहीं पेश किए हैं. उनकी पिपोर्ट के प्रकाशन के बाद भी कई सवाल अधूरे हैं. इसलिए, अब इसको लेकर वैज्ञानिकों को और प्रयोग करने की जरूरत है, ताकि ये साबित किया जा सके कि ये सही है या गलत है.

फ्रांसीसी राष्ट्रीय महासागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, इफ्रेमर के भू-रसायन विज्ञान शोधकर्ता ओलिवियर रूक्सेल कहते हैं कि वैज्ञानिक समुदाय में इसको लेकर आम सहमति नहीं है. उन्होंने कहा कि गहरे समुद्र से धातु या किसी भी चीज का नमूना लेना हमेशा एक चुनौती भरा काम होता है. उनका ये भी कहना था कि यह भी संभव है कि माप उपकरणों में फंसे हुए हवा के बुलबुले की वजह से समुद्र की तलहटी में ऑक्सीजन का पता चला हो.

ओलिवियर रूक्सेल ने गहरे समुद्र में स्थित लाखों वर्ष पुराने पिंडों के बारे में भी संदेह जताया था. जिसमें ये कहा गया कि इन पिंडों की बैटरी खत्म हो जाने पर भी ये पर्याप्त विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं।

उन्होंने सवाल किया कि समुद्र के खनिज पदार्थों वाली गांठ में विद्युत करंट उत्पन्न करने की क्षमता को बरकरार रखना कैसे संभव है, जबकि जिनका निर्माण बहुत ही धीमी गति से होता है.

इस सब सवालों को जानने के लिए संवाद एजेंसी एएफपी ने जब वैज्ञानिक स्वीटमैन से संपर्क किया तो उनका एक ही जवाब था कि वो इन सब बातों का अनौपचारिक जवाब तैयार कर रहे हैं. ओलिवर ये भी कहते हैं कि वैज्ञानिक लेखों में इस तरह की बातें बहुत आम बात हैं और इससे विषयवस्तु आगे बढ़ती है।