महिलाएं संतान के सुखी जीवन के लिए करती है जीवित्पुत्रिका व्रत, देखें क्या है खास
- By Habib --
- Friday, 06 Oct, 2023
Women observe Jeeviputrika fast for the happy life of their children
जीवित्पुत्रिका व्रत स्त्रियां अपनी संतानों के सुखी जीवन के लिए करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जीमूत वाहन का व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं विशेषकर पुत्रों के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसे निर्जला रखा जाता है। इसे के उत्तरी भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में विशेष रूप से मनाया जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। अश्वत्थामा ने बदले की भावना से प्रेरित होकर उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। लेकिन उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना भी जरुरी था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उस शिशु की रक्षा हेतु अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उस शिशु का नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। जीवित पुत्रिका व्रत को ही बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से जाना गया।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जंगल में एक चील तथा लोमड़ी रहती थी। चील तथा लोमड़ी ने एक दिन कुछ स्त्रियों को व्रत रखकर पूजा करते हुए देखा। तब लोमड़ी और चील ने भी व्रत देखा। लेकिन लोमड़ी भूख के कारण बेहोश होने लगी और उसने चुपके से खाना खा लिया। लेकिन चील भूखे-प्यासे व्रत रही। इसलिए चील के सब बच्चे भली प्रकार जीवित रहे लेकिन लोमड़ी के बच्चे एक-एक कर चले बसे।
रखें इन बातों का विशेष ख्याल
हिन्दू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का खास महत्व होता है। इस व्रत को अक्सर निर्जला रहा जाता है इसलिए इस व्रत में अपनी सेहत का खास ख्याल रखें। अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
ऐसे करें जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन पूजा
जीवित्पुत्रिका व्रत में मन से संकल्प लें। इस दिन स्नान से पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर दें। साथ ही एक छोटा-सा तालाब भी वहां बना लें। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर रख दें। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल (या मिट्टी) के पात्र में स्थापित कर दें। फिर उन्हें सजाने के लिए पीली और लाल रुई लें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजा करें। मिट्टी तथा गाय के गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाएं। उन दोनों के मस्तकों पर लाल सिन्दूर लगा दें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजन करना चाहिए। उसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा पढ़े तथा दूसरों को भी सुनाएं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की तारीख और शुभ मूहूर्त
जीवित्पुत्रिका पर्व तीन दिनों तक चलता है। इस पर्व की शुरुआत सप्तमी तिथि पर नहाय खाय परंपरा से होती है, इसमें स्त्रियां पवित्र नदी में स्नान के बाद पूजा का सात्विक भोग बनाती हैं। दूसरे दिन अष्टमी को निर्जला व्रत रखा जाता है। नवमी तिथि पर इसका पारण किया जाता है।
नहाय खाय पर कुछ खास खाने की है परंपरा
जीवित्पुत्रिका व्रत से पहले नहाय खाय की भी परम्परा होती है। इस व्रत में नोनी का साग खाया जाता है। नोनी में केल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है। इसके पीछे वजह है कि व्रती को लंबे उपवास से पहले खाने से कब्ज आदि की शिकायत नहीं होती है और पाचन भी ठीक रहता है। कुछ स्थानों में इस व्रत और पूजा के दौरान झिंगनी/ सतपुतिया की सब्जी भी खाई जाती है। सतपुतिया आमतौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं। सतपुतिया उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्रों में अधिक होती है।
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