Will there ever be a solution on SYL

Editorial: एसवाईएल पर क्या कभी निकल सकेगा कोई समाधान

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Will there ever be a solution on SYL

Will there ever be a solution on SYL: नॉर्थ जोन स्टैंडिंग काउंसिल कमेटी की बैठक में पंजाब सरकार का यह रूख फिर सामने आया है, जिसमें उसने सतलुज यमुना लिंक नहर के मसले पर साफ शब्दों में न कहा है। पंजाब की ओर से पहले भी अनेक बाद यह कहा जा चुका है कि उसके पास दूसरे राज्यों को देने को एक बूंद अतिरिक्त पानी है। ऐसे में यह प्रश्न गंभीर हो जाता है कि आखिर फिर इस मसले का समाधान कैसे होगा।

पंजाब की ओर से ऐसे बयानों के बाद हरियाणा में भी राजनीति गर्मा जाती है और दोनों ओर से बयान आने लगते हैं। सर्वोच्च अदालत इस मामले में पंजाब सरकार को निर्देश दे चुकी है, वहीं केंद्र सरकार भी लगातार दोनों राज्यों के बीच बैठकों के जरिये मामले का समाधान करने की जुगत में है। लेकिन हैरानी होती है कि सिर्फ बैठकों, बयानों और फैसलों के सिवा कोई एक्शन नहीं हो रहा। आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा और जनता मूक होकर यह सब देखती रहेगी। पंजाब ने अब हरियाणा से यमुना के पानी में हिस्सेदारी मांगी है। जाहिर है, पानी  के वितरण का मामला इतना सहज नहीं रह गया है कि उसे कमेटी की बैठक में सुलझाया जा सके।

वास्तव में यह मामला अब अपने चरम पर पहुंच चुका है। यह पूरी तरह से राजनीतिक मसला है और पंजाब में चाहे कोई भी सरकार आए, उसके सामने पंजाब के निवासियों की मांग के मद्देनजर किसी दूसरे राज्य की सरकार और फिर न्यायपालिका से रार ठानने के अलावा कोई चारा नहीं बच रहा। ऐसे में यह प्रश्न वहीं का वहीं कायम रहेगा कि क्या कभी इस मामले का समाधान निकलेगा। क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसी सख्त करेगा जिससे पंजाब नहर बनाने और हरियाणा को पानी देने को बाध्य हो जाए। अगर ऐसा होता है तो क्या पंजाब शांत रह सकेगा? पंजाब एवं हरियाणा के बीच एसवाईएल के पानी को लेकर तकरार का दौर अंतिम चरण में पहुंच चुका है। हर बार एक नई बैठक की तारीख सामने आती है, लेकिन कोई सहमति हुए बगैर बैठक खत्म हो जाती है।

बीते साल तत्कालीन केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के आग्रह पर फिर पंजाब एवं हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच बैठक हुई थी। यह बैठक इसलिए बुलाई गई थी ताकि केंद्र सरकार जिसे सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना है, दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा करके किसी नतीजे पर पहुंच सके। लेकिन इस बैठक में नए मसले ही सामने आए। पंजाब की ओर से कहा गया कि हरियाणा के पास पानी के लिए कई चैनल हैं। यमुना-शारदा लिंक से उन्हें पानी मिलता है, जबकि पंजाब के पास सतलुज दरिया अब एक नाले में तब्दील हो चुका है। तय शर्तों के अनुसार पंजाब को 52 एमएएफ पानी मिलना चाहिए लेकिन इस समय केवल 14.5 एमएएफ पानी ही मिल रहा है। भूजल भी 600-700 फुट तक गिर चुका है और पंजाब डार्क जोन में है।

 गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय एसवाईएल नहर के संबंध में पंजाब सरकार को आदेश दे चुका है। माननीय न्यायालय की यह टिप्पणी हालिया दिनों में सर्वाधिक सख्त टिप्पणी है कि आप इस मामले का समाधान करें वरना कोर्ट को कुछ करना पड़ेगा। निश्चित रूप से यह मामला समाधान की मांग कर रहा है, लेकिन राजनीति इसके आड़े आ रही है। कुछ समय पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों को मिल बैठ कर इस मामले का हल निकालने को कहा था, इसके लिए एक कोर कमेटी बनाने की भी सलाह दी गई थी, हालांकि पंजाब सरकार की ओर से तब भी यही कहा गया था कि उसके पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए एक बूंद पानी नहीं है।

वास्तव में बीते समय के दौरान पंजाब सरकारों का रवैया ऐसा रहा है कि वे संविधान का पालन करती नजर नहीं आई, उन्होंने केवल अपने राजनीतिक हितों को ही सर्वोपरि रखा। साल 2004 में तो शिअद सरकार ने एसवाईएल और इस संबंध में अन्य ऐसे फैसलों को विधानसभा में कानून पारित कर एकतरफा रद्द ही कर दिया था। एसवाईएल के लिए जिस जमीन पर नहर बननी थी, वह जमीन उनके मालिकों को लौटा दी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इस कार्रवाई को अवैध ठहरा चुका है। दरअसल, एसवाईएल पंजाब के लिए नाक का सवाल है, लेकिन हरियाणा के लिए भी यह मुद्दा जीवन प्रणाली है। अब लगता है, सारा दारोमदार सर्वोच्च न्यायालय पर आ गया है। इस मामले का हल अब वक्त की बड़ी मांग है। 

 

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