Birendra Singh returns home to Congress

Editorial: बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस में घर वापसी क्या नया गुल खिलाएगी

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Birendra Singh returns home to Congress

Will Birendra Singh homecoming bring new flowers to Congress हरियाणा में पिछले कुछ दिनों में बदले राजनीतिक हालात बड़े चौंकाने वाले हैं। देश को आया राम-गया राम की कहावत देने वाले प्रदेश में राजनीति हवा से भी तेज गति के साथ रुख बदल रही है। भाजपा और जजपा का गठबंधन खत्म होने के बाद जिस प्रकार से प्रदेश के मुख्यमंत्री का चेहरा बदला, उसके बाद से भाजपा, कांग्रेस, जजपा, इनेलो में तेजी से बड़े परिवर्तन होते जा रहे हैं। अब एक नया फेरबदल पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह का वापस कांग्रेस में शामिल होना है।

बीरेंद्र सिंह ने साल 2014 में कांग्रेस से मन मोड़ लिया था और वे भाजपा में सर्वप्रिय नेता बन गए थे। भाजपा ने भी उन्हें सिर-माथे लिया था। मोदी मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री बनाया गया और उसके बाद उनकी पत्नी विधायक भी रहीं। बेटे बृजेंद्र सिंह को पार्टी ने सांसदी सौंपी। हालांकि अब पूरा बीरेंद्र सिंह परिवार कांग्रेस में शामिल हो गया है। बीरेंद्र सिंह एक पार्टी को समर्पित होकर नहीं रह सके। वैसे आज के समय में राजनीतिक निष्ठा का कोई मतलब रह भी नहीं गया है। क्योंकि बरसों पुराने कांग्रेसी एक समय भाजपा का भगवा पटका पहन चुके हैं और वे धुर भाजपाई कहलाते हैं। तब यह क्यों नहीं हो सकता की कांग्रेस से आए किसी भाजपा नेता का दिल भी डोल जाए और वह फिर से अपनी मूल पार्टी में लौट जाए। बीरेंद्र सिंह सरल ह्दय के नेता हैं, उन पर कभी कोई भ्रष्टाचार का आरोप भी नहीं लगा है। वे मूल्यों की राजनीति करते नजर आए हैं और उनकी चाहत खुद को हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में देखने की है।

वास्तव में बीरेंद्र सिंह की यह इच्छा अनेक अवसरों पर पूरी होते-होते रह चुकी है। वे भाजपा में भी इसी उम्मीद से आए थे, यहां अनेक बार उनके दिल से यह आह निकली कि वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल से वे अनेक बार नाराजगी जाहिर कर चुके थे कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। हालांकि इस विडम्बना को सभी समझते रहे लेकिन जो विधाता को मंजूर होगा, वहीं हुआ। अब प्रश्न यही है कि कांग्रेस में अपना और अपने परिवार का राजनीतिक भविष्य तलाशने पहुंचे बीरेंद्र सिंह को क्या वह सब यहां मिल जाएगा जिसकी उन्हें तलब है।

हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति अभी एक अनार सौ बीमार वाली है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा को बदलने की वजह किसे नहीं मालूम है। पार्टी में हुड्डा गुट को कुमारी सैलजा की मौजूदगी कभी रास नहीं आई और आखिरकार उन्हें हटा दिया गया। यह कहते हुए कि हुड्डा गुट को अगर सारे अधिकार दे दिए जाएं तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन सकती है। हालांकि हाईकमान ने हुड्डा गुट की इस चाहत को पूरा कर दिया लेकिन क्या किसी एक नेता की वजह से पार्टी चलती है। पार्टी में इस समय आधा दर्जन नेताओं के गुट संचालित हैं, और पार्टी उन्हीं के नाम से जानी जाती है। ऐसे में बीरेंद्र सिंह के भी एक और गुट की स्थापना से इससे इनकार नहीं किया जा सकता। बीरेंद्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होते समय पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला एवं प्रदेश अध्यक्ष उदयभान एवं अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। हालांकि यह गठजोड़ फील्ड में भी एक साथ नजर आएगा, इसमें संशय है। प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों में हुड्डा, सुरजेवाला, सैलजा, किरण चौधरी एवं अन्य नेताओं को एक साथ देखा हो, ऐसा किसे याद होगा। ऐसा भी सामने आया है कि बीरेंद्र ङ्क्षसह ने हुड्डा एवं अन्य नेताओं से खुद इसका आह्वान किया था कि वे उनकी कांग्रेस में जॉइनिंग के अवसर पर मौजूद रहे।

बीरेंद्र सिंह जैसे बड़े कद के नेता को आखिर इसकी क्या जरूरत पड़ गई। हालांकि बीरेंद्र सिंह भी समझते हैं कि कांग्रेस में आजकल सब कुछ बदल चुका है। कांग्रेस में आजकल हुड्डा गुट का हा सिक्का चल रहा है, तब यह जरूरी है कि उनके साथ तारतम्य बनाया जाए।

प्रश्न यह है कि बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में आकर प्रदेश की राजनीति को कितना प्रभावित करेंगे। कहा गया है कि उनके साथ बड़ी संख्या में उनके समर्थकों ने भी कांग्रेस की सदस्यता ली है। वास्तव में बीरेंद्र सिंह के बयानों को लेकर भी सस्पेंस बना रहता है, वे एक असंतुष्ट नेता के रूप में सबके सामने आ रहे हैं। कहने का भाव यह है कि अगर कांग्रेस में भी उनकी मंशा पूरी नहीं हुई तो वे यहां भी आलोचना का दौर शुरू कर सकते हैं। हालांकि फिलहाल तो वे अपने परिवार के राजनीतिक भविष्य को सुनिश्चित करने की नजर से कांग्रेस में आ गए हैं। यह समय बताएगा कि उनकी कांग्रेस में मौजूदगी क्या गुल खिलाती है।

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