क्या बीबीसी को बैन करने से देश और दुनिया में सब सही होने लग जाएगा?
बीबीसी को प्रतिबंधित करने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया है खारिज
BBC documentery on PM modi : नई दिल्ली : बीबीसी यानी ब्रिटिश ब्राॅडकास्टिंग कार्पोरेशन की 2002 के गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री इंडिया : द मोदी क्वेश्चन ने अनेक सवाल खड़े किए हैं। भारत से लेकर ब्रिटेन तक अब बीबीसी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। पत्रकारिता का पर्याय बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री अब भारत में प्रतिबंधित हो चुकी है लेकिन अब खुद बीबीसी को भारत में प्रतिबंधित कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक मेंं याचिकाएं डाली जा रही हैं। सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र की आवाज किसी मीडिया हाउस के प्रति ऐसा नजरिया रखा जा सकता है। किसी मामले के संबंध में अनेक पक्ष हो सकते हैं, हालांकि लक्षित भावना के साथ काम करना गैरकानूनी कहा जाएगा लेकिन क्या विश्व में निष्पक्ष समाचार प्रसारण में बीबीसी की भूमिका और इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जा सकते हैं? गौरतलब है कि यह बहस अब देश-दुनिया में जारी है। भारत में एक पक्ष बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री और उसमें उठाए गए सवालों को सही मानता है, हालांकि विपक्ष की पसंद ऐसे ही विषय होते हैं, जिनके जरिये वह अपने आप को सुर्खियों में रखता है।
सुप्रीम कोर्ट में क्यों ऐसी याचिका
सुप्रीम कोर्ट में ऐसी याचिका डाली गई थी, जिसमें बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। हालांकि इस याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मौखिक रूप से सवाल किया कि कोई डॉक्यूमेंट्री देश को कैसे प्रभावित कर सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री और 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े आरोपों पर भारत में बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की याचिका खारिज कर दी। जस्टिस संजीव खन्ना और एम.एम. सुंदरेश की खंडपीठ ने 2002 के गुजरात दंगों पर डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली हिंदू सेना के अध्यक्ष द्वारा दायर जनहित याचिका को पूरी तरह से गलत करार दिया।
आखिर एक डॉक्यूमेंट्री कैसे प्रभावित कर सकती है देश
सुनवाई के दौरान, पीठ ने पूछा कि एक डॉक्यूमेंट्री देश को कैसे प्रभावित कर सकती है, उसने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, पूरी तरह से गलत है, यह कैसे तर्क दिया जा सकता है? आप चाहते हैं कि हम पूरी तरह से सेंसरशिप लगा दें? यह क्या है? याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने पीठ से याचिकाकर्ता को सुनने का आग्रह किया और तर्क दिया कि बीबीसी जानबूझकर भारत की छवि खराब कर रहा है। गौरतलब है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को केंद्र सरकार ने ऐसे ही आरोपों के चलते देश में प्रसारित करने पर प्रतिबंध लगाया है। इसमें कहा गया है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री भ्रामक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं देश की छवि को खराब करने वाली है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों में यह स्वीकार नहीं किया है।
गौरतलब है कि अदालत ने पत्रकार एन. राम, अधिवक्ता प्रशांत भूषण और तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर संयुक्त याचिका और अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा द्वारा दायर एक अन्य याचिका के साथ याचिका को टैग करने के आनंद के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया। इस महीने की शुरूआत में, एन.राम और अन्य की दलीलों पर कार्रवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र से पीएम मोदी पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के अपने फैसले से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश करने को कहा था।
आनंद ने पीठ से उस पृष्ठभूमि की जांच करने का आग्रह किया जिसमें भारत आर्थिक शक्ति के रूप में उभरकर शक्तिशाली हुआ है और भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूछा कि वह बीबीसी पर प्रतिबंध लगाने की अपनी याचिका के समर्थन में इन सब पर बहस कैसे कर सकती हैं।
पीठ ने साफ कहा- हमें और समय बर्बाद नहीं करना चाहिए
पीठ ने कहा : हमें और समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। रिट याचिका पूरी तरह गलत है और इसमें कोई योग्यता नहीं है। इसलिए इसे खारिज किया जाता है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और अन्य द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने मीडिया नेटवर्क पर प्रतिबंध लगाने के लिए जनवरी में केंद्र को एक प्रतिवेदन दिया था, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। केंद्र ने सोशल मीडिया और ऑनलाइन चैनलों पर डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, हालांकि इसे देश भर के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रदर्शित किया गया है। याचिका में तर्क दिया गया है कि डॉक्यूमेंट्री भारत और उसके प्रधानमंत्री के वैश्विक उत्थान के खिलाफ गहरी साजिश का परिणाम है। याचिका में डॉक्यूमेंट्री के पीछे की साजिश की जांच की भी मांग की गई है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2022 की गुजरात हिंसा से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शामिल किया गया है, न केवल उनकी छवि को धूमिल करने के लिए प्रसारित किए गए नरेंद्र मोदी विरोधी प्रचार का प्रतिबिंब है, बल्कि यह बीबीसी द्वारा भारत के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने के लिए हिंदू धर्म विरोधी प्रचार भी है।
क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध सही है
गौरतलब है कि चुनाव के समय अनेक बार गोधरा कांड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथित रूप से संलिप्त रहने के आरोप विपक्ष लगाता रहा है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माैत का सौदागर बताया था। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा था। अपने ऊपर लगे इन आरोपों का प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा हमेशा खंडन करते आए हैं। उन्होंने हमेशा इन आरोपों को अनुचित बताया है कि वे गोधरा कांड के बाद हुए दंगों को रोकने में विफल रहे। मालूम हो, सर्वोच्च न्यायालय की ओर से एक विशेष जांच टीम गठित की गई थी, जिसने गोधरा दंगों में प्रधानमंत्री मोदी और दूसरे नेताओं की भूमिका की जांच की थी। जांच टीम ने साल 2012 में अपनी 541 पन्नों की रिपोर्ट में दावा किया था कि वह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी की इन दंगों में किसी भूमिका का कोई सबूत हासिल नहीं कर पाई।
वास्तव में सवाल यह है कि अगर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, तब देश में आरोप लगें या फिर देश के बाहर। कोई राजनेता आरोप लगाए या फिर कोई मीडिया हाउस, क्या उसे प्रतिबंधित करना सही है? क्या यह सही नहीं होता कि केंद्र सरकार बीबीसी से अपने दावों की पुष्टि करने की मांग करती और कानूनी तरीके से इस मामले से निपटती। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया और अब बीबीसी को प्रतिबंधित करने की याचिकाएं डाली जा रही हैं। क्या यह तरीका लोकतंत्र में विरोध की आवाजों को बुलंद होने से रोकने की कोशिश नहीं है?