क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड टीबी डे, इतिहास और इस बार की थीम जानें
क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड टीबी डे, इतिहास और इस बार की थीम जानें
नई दिल्ली: 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे मनाया जाता है। 1882 में इसी दिन जर्मनी के रोबर्ट कॉख ने बेसिलस की खोज की थी जिसका इस्तेमाल आज टीबी के इलाज में किया जाता है। जानिए इस बीमारी के बारे में कुछ जरूरी बातें..
सबसे ज्यादा जानलेवा बीमारी
कोविड-19 से पहले टीबी दुनिया की सबसे ज्यादा जानलेवा संक्रामक बीमारी थी। साल 2020 में जहां कोविड-19 से 18 लाख लोगों की जान गई, जब कि टीबी से 15 लाख लोग मारे गए।
हर जगह मौजूद
टीबी पांचों महाद्वीप में मौजूद है लेकिन विकासशील देश अनुपातहीन रूप से प्रभावित हैं। 2020 में नए मामलों में से 43 परसेंट अकेले दक्षिणपूर्वी एशिया में सामने आए थे और 25 परसेंट अफ्रीका में। दो-तिहाई मामले आठ देशों में सीमित थे। इसमें बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे।
हजारों साल का इतिहास
जेनेटिक अध्ययनों के मुताबिक टीबी का सबसे पहले 40,000 साल पहले पता चला। लंबे समय तक वैज्ञानिकों का मानना था कि इंसानों में तपेदिक जानवरों से आता है और नव पाषाण युग में जब मवेशियों का पालना शुरू किया गया तब यह बीमारी मवेशियों से इंसानों में आई होगी।
एक मुश्किल जंग
लेकिन फिर टीबी के औषध प्रतिरोधी स्ट्रेन सामने आए और डॉक्टरों को एंटीबायोटिक कॉकटेल्स का सामना करना पड़ा। इनसे बैक्टीरिया को कुशलता से कमजोर कर दिया जाता है।
टीबी का इलाज
1921 में फ्रांस के पैस्टर संस्थान बीसीजी का टीका विकसित किया जो धीरे-धीरे दुनिया के सबसे पुराने और भरोसेमंद टीकों में से एक बन गया। सौ सालों बाद उस टीके का आज भी इस्तेमाल होता है और बच्चों में तपेदिक होने से रोकने में वह आज भी प्रभावी है।
नए फैक्ट
लेकिन हाल ही में हुए अध्ययनों ने एक अलग तस्वीर पेश की है और दिखाया है कि टीबी इंसानों में तब भी मौजूद था जब उन्होंने मवेशी पालना शुरू नहीं किया था।