cases of asking questions for money

Editorial: पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में क्यों हो रही राजनीति

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तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में जिस प्रकार से आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हुआ है, वह बेहद चिंताजनक और संसदीय परंपराओं का उपहास नजर आता है। आज राजनीतिक सिद्धांत पूरी तरह से तिरोहित हो चुके हैं और अब किसी भी तरीके से खुद को बचाने के लिए प्रयास ही महत्वपूर्ण हैं। लोकसभा की एथिक्स कमेटी के सदस्यों पर जिस प्रकार के आरोप मोइत्रा की ओर से लगाए गए वे संवेदनशील हैं। लेकिन मोइत्रा पर जो आरोप लगे हैं, वे भी सामान्य नहीं हैं। मोइत्रा ने शिकायत दी है कि उनसे बेहद निजी सवाल पूछे गए और अब इन्हीं कथित सवालों को लेकर वे केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। यह मामला संसद की सुरक्षा और एक सांसद पर देश के भरोसे के टूटने का भी है।

यह बेहद गंभीर आरोप है कि संसद के अंदर एक सांसद किसी उद्योगपति के अहसान चुकाने के लिए उसके निर्धारित सवालों को पूछ रहा है। निश्चित रूप से इस मामले में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। यह भी कितना आश्चर्यजनक है कि तृणमूल कांग्रेस ने पहले तो अपनी सांसद पर लगे आरोपों से ही किनारा कर लिया था, लेकिन अब राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत होकर आरोपों को झुठलाने की कोशिश हो रही है।  

दरअसल, 7 नवंबर को लोकसभा की एथिक्स कमेटी की बैठक  होनी है और इससे पहले सांसद महुआ मोइत्रा ने एक नया आरोप लगाते हुए इसके संकेत दे दिए हैं, कि वे इतनी सहजता से हार नहीं मानेंगी। उनका आरोप है कि भाजपा उनके खिलाफ आपराधिक मामले की साजिश रच रही है। ऐसे आरोप राजनीतिक कहे जाएंगे लेकिन जिस प्रकार के बयान उनकी ओर से दिए जा रहे हैं, वे ईंट का जवाब पत्थर से देने जैसे हैं। उनका कहना है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय एजेंसियों को सबसे पहले 1,30,000 करोड़ रुपये के कोयला घोटाले में अडानी समूह की मिलीभगत की जांच शुरू करनी चाहिए। आखिर यह कैसा आरोप है।

एक सांसद जिन पर गंभीर आरोप हैं, वे अपने मामले के बारे में साफ बताने के बजाय दूसरे मामलों के जरिये उसे या तो धूमिल करने में व्यस्त है या फिर उसे इसकी फ्रिक ही नहीं है। सांसद का आचार समिति की बैठक में आचरण किसी भी प्रकार से संसदीय गरिमा के अनुरूप नहीं था। यह भी कितना दिलचस्प है कि एक सांसद ने मीडिया के सामने फिल्मी तौर तरीके प्रदर्शित करते हुए पूरे मामले की गंभीरता का मखौल उड़ाया।

निश्चित रूप से यह मामला एक न एक दिन संसद की आचार समिति के समक्ष तो पहुंचना ही था। संसद की आचार समिति ने इस केस में सुनवाई से पहले आरोपों की जांच के लिए आईटी और गृह मंत्रालय से भी सहायता ली है। वास्तव में इस प्रकार के मामलों को सामान्य तरीके से लिया भी नहीं जा सकता, यह मामला उदाहरण है। अगर इस समय प्रभावी जांच और कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में हो सकता है, किसी अन्य देश के जासूस ही सांसद बनकर भारत की संसद में बैठ जाएं। जिस प्रकार से लोगों की धारणाएं बदल रही हैं, उसमें अब राष्ट्रवाद जैसी बात गौण होती जा रही है, अब तो पैसा ही सिर चढक़र बोल रहा है। सांसद महुआ मोइत्रा पर आरोप न सिर्फ गंभीर भ्रष्टाचार का है, बल्कि सदन की गरिमा गिराने और विशेषाधिकारों के हनन का आरोप भी लगा है। उन पर पैसे और गिफ्ट के बदले विदेश में बसे एक उद्योगपति मित्र के हितों के लिए संसद में सवाल पूछने का आरोप है।

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का आरोप है कि महुआ ने अब तक सदन में 61 सवाल पूछे हैं, जिसमें से 50 एक उद्योगपति के कारोबार से जुड़े रहे हैं। निश्चित रूप से इन आरोपों की जांच होनी चाहिए। सांसद निशिकांत के हवाले से यह भी सामने आ रहा है कि दिल्ली के एक अधिवक्ता ने इस मामले की पूरी पड़ताल की है, लोकसभा में महुआ की ओर से पूछे गए सवालों की लिंक अटैच की है और साथ ही यह भी बताया है कि पूछे गए सवाल किस तरह एक ही उद्योगपति से संबंधित थे। वास्तव में एक पहलू यह भी है कि कुछ सवालों को अदाणी समूह से जोड़ा जाता था, जिसके खिलाफ महुआ के उद्योगपति मित्र की कंपनी संघर्ष कर रही होती थी।

रिपोर्ट के अनुसार महुआ मोइत्रा ने आठ अगस्त 2019 को पेट्रोलियम मंत्रालय से पारादीप पोर्ट ट्रस्ट से जुड़ा सवाल पूछा था। तब पारादीप के साथ 2018 में उद्योगपति जिन्हें सांसद का मित्र बताया गया है, के साथ समझौता हुआ था। 18 नवंबर को महुआ ने फिर से पेट्रोलियम से जुड़ा सवाल पूछा और अदाणी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। इस मामले पर अब राजनीति तेज हो गई है, लेकिन पक्ष-विपक्ष के सांसदों को यह समझना होगा कि वे भविष्य के लिए एक नजीर कायम करेंगे अगर वे इस मामले की तह तक पहुंच पाए।

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