Why is the Congress facing the threat of sabotage in Haryana

Editorial: हरियाणा में कांग्रेस के सामने भितरघात का खतरा क्यों

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Why is the Congress facing the threat of sabotage in Haryana

Why is the Congress facing the threat of sabotage in Haryana हरियाणा में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 25 मई निर्धारित है। जैसे-जैसे यह दिन नजदीक आ रहा है, राज्य में चुनावी घमासान तेज हो रहा है। प्रदेश में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन जजपा एवं आम आदमी पार्टी और इनेलो की ओर से भी अपने हथियार तेज कर लिए गए हैं। निश्चित रूप से हरियाणा में मतदाता की नब्ज समझना किसी भी राजनीतिक विश्लेषक के लिए आसान नहीं है। हरियाणा वह प्रदेश है, जिसने आया राम-गया राम की कहावत को जन्म दिया था, हालांकि अब यहां का मतदाता भी इतना परिपक्व हो चुका है कि उसके चेतन का अंदाजा लगाना आसान नहीं है।

प्रदेश में राजनीतिक दलों के लिए इस बार के चुनाव करो या मरो की स्थिति वाले हैं। इन चुनावों में अनेक राजनीतिकों का भविष्य दांव पर है। यह चुनाव ऐसे होंगे, जिसमें हार या जीत के बाद अनेक राजनेताओं को रिटायरमेंट लेनी ही होगी। इन चुनावों में प्रत्येक दल का अपना दावा है। भाजपा की ओर से जब सभी 10 सीटों पर जीत का दावा किया जा रहा है, वहीं कांग्रेस गठबंधन भी सभी सीटों पर जीत का दावा पेश कर रहा है। अभी तक के हालात ऐसे हैं कि देश के दूसरे हिस्सों में प्रचार में जुटे भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों को अब प्रदेश की ओर रुख करना पड़ रहा है।

यह लोकसभा चुनाव पहला ऐसा चुनाव होगा, जिसमें प्रत्याशियों के नाम की घोषणा करने में कांग्रेस को इतना समय लग गया। हालांकि भाजपा की ओर से बहुत पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई थी। कांग्रेस के लिए यह चुनाव निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है। इसका अंदाजा इससे भी लगता है कि पार्टी के प्रदेश प्रभारी की ओर से पार्टी नेताओं को पत्र लिखकर कहा गया है कि विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के दौरान यह देखा जाएगा कि लोकसभा चुनाव के दौरान किस प्रकार का प्रदर्शन पार्टी नेताओं का रहा है। यानी अगर लोकसभा चुनाव में किसी नेता का पार्टी उम्मीदवार के समर्थन में प्रचार के दौरान प्रदर्शन हल्का रहा तो फिर विधानसभा चुनाव में उसके नाम पर गौर शायद न किया जाए।

बेशक, इस प्रकार की चेतावनी कांग्रेस में नई नहीं है, लेकिन यह अपने आप में उद्घाटित करने वाली बात है कि कांग्रेस को अपने नेताओं को इस प्रकार अनुशासित करने की जरूरत पड़ रही है। पार्टी की ओर से टिकट आवंटन में देर की गई और फिर स्वाभाविक रूप से जिनके नाम जिस सीट से चल रहे थे, उनको धता बताते हुए ऐसे नाम उन सीटों पर घोषित किए गए जोकि एकदम नये हैं। कांग्रेस में तमाम नेता यह अभी तक नहीं समझ  पा रहे हैं कि आखिर गुरुग्राम सीट से अभिनेता राज बब्बर को टिकट देने की क्या जरूरत आ पड़ी थी, जबकि इस सीट से हरियाणा में ही अनेक नाम सामने थे। आखिर कांग्रेस नेतृत्व ने इसका पता कैसे लगाया कि राज बब्बर ही इस सीट से उपयुक्त उम्मीदवार होंगे। वास्तव में इसी प्रकार दूसरी सीटों पर भी जो उम्मीदवार हैं, उनके पीछे संशय, किंतु-परंतु चल रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस प्रभारी को ऐसा पत्र लिखना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी में भितरघात की पूरी आशंका है।

यह लगभग तय था कि पार्टी रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा को टिकट देगी।  यह तब है, जब वे राज्यसभा सांसद भी हैं, अगर वे जीत गए तो कांग्रेस के हाथ से राज्यसभा सीट चली जाएगी। बेशक, इस सीट पर जीत-हार का गणित कांग्रेस ने लगा लिया होगा। यह कितना हैरान करता है कि हिसार सीट पर कांग्रेस ने निवर्तमान सांसद बृजेंद्र सिंह को टिकट नहीं दिया है, जबकि वे इसी उम्मीद में भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए थे। उनके पिता बीरेंद्र सिंह एवं माता भी भाजपा छोड़ चुके हैं। खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खडग़े ने बृजेंद्र सिंह को पार्टी में शामिल किया था। शुरुआत से यह समझा जा रहा था कि बृजेंद्र सिंह को पार्टी टिकट देगी, लेकिन कांग्रेस जैसा कि उसकी कार्यप्रणाली प्रसिद्ध है, एक और गुट बनने से पहले ही उसे खत्म कर दिया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह एवं उनके बेटे ने भाजपा पर तमाम आरोप लगाए थे, लेकिन अब कांग्रेस में जाकर उनकी स्थिति न घर के और न घाट के जैसी रह गई है। यह भी सुनने को आ रहा है कि हरियाणा में कांग्रेस नेताओं को बड़ी उम्मीद विधानसभा चुनाव से है। लोकसभा चुनाव में भी ऐसे चेहरे ही उतारे गए हैं जोकि उस सीट पर स्थापित चेहरों को पीछे कर सकें। यानी एक पक्ष चाहता है कि लोकसभा चुनाव में दूसरा गुट जीत न सके और जब विधानसभा चुनाव आएं तो उसे सफलता मिले। कांग्रेस की कार्यप्रणाली अद्भुत है।  

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