क्या राजनीति में अपने विरोधी को जवाब हिंसात्मक शैली में ही दिया जा सकता है?
Why fire in the uniform of the Sangh
क्या राजनीति में अपने विरोधी को जवाब हिंसात्मक शैली में ही दिया जा सकता है, कोई और जरिया नहीं हो सकता? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस के संबंध में सोशल मीडिया पर ऐसा फोटो ट्वीट किया है, जोकि पार्टी की शैली पर सवाल उठाता है। पार्टी ने आधिकारिक रूप से आरएसएस का पुराने गणवेश यानी हाफ निक्कर में आग लगी दिखाई है और उसके नीचे 145 दिन लिखे हैं। यह यात्रा के दिनों की गणना को दर्शाता है। यह प्रश्न अहम है कि आखिर कांग्रेस अगर देश जोड़ो की बात करते हुए यात्रा निकाल रही है तो फिर वह इस प्रकार नफरत भरे और उत्तेजक कारनामे क्यों कर रही है? पार्टी के प्रवक्ता ने भी इस संबंध में बेहद लचर बयान दिया है, उनका कहना था कि पुतला जलाना कांग्रेस का लोकतांत्रिक अधिकार है। बेशक, लोकतंत्र में विरोध दर्ज कराना भी अधिकार है और इसके लिए पुतले भी फूंके जा सकते हैं, लेकिन कोई यह तो बताए कि मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस को आरएसएस का पुतला फूंकने की जरूरत पड़ रही है। कांग्रेस शुरू से आरएसएस का विरोध करती आई है और दो बार इस संगठन पर प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है। आरएसएस खुद को राष्ट्रवादी, भारतीय संस्कृति का वाहक संगठन बताता है। आखिर इसमें इतना क्या बुरा है कि कांग्रेस आरएसएस के नाम से ही गश खाती है।
कांग्रेस इस समय अनेक समस्याओं को झेल रही है, उसके वरिष्ठ नेता पार्टी से बाहर जा रहे हैं। गुटबाजी चरम पर है और प्रत्येक राज्य में अनेक गुट बन चुके हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव होने हैं। वह कौन नेता होगा, जोकि अध्यक्ष बनेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। राहुल गांधी को पार्टी नेता फिर से अध्यक्ष पद की बागडोर सौंपने को तैयार हैं, लेकिन वे हैं कि मानने को तैयार नहीं हैं। हालांकि अब कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा जरूर निकाल रहे हैं। इस यात्रा के जरिए पार्टी का दावा है कि उसे भारी समर्थन हासिल हो रहा है। पार्टी यह भी दावा कर रही है कि भाजपा को इससे दिक्कत होने लगी है। पिछले दिनों राहुल गांधी की महंगी टीशर्ट को लेकर सवाल उठे थे, हालांकि फिर कांग्रेस ने भी केंद्रीय गृहमंत्री के पटके की कीमत पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस यह मानने को भी तैयार नहीं है कि देश में इस समय गैर कांग्रेसी सरकार चल रही है। राज्यों में हारने और लगातार दो लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बावजूद पार्टी ऐसा प्रतीत करवा रही है कि वह इस यात्रा के बाद भारी जनसमर्थन के साथ वापसी करेगी। कांग्रेस की इस मंशा का देश सम्मान कर रहा है, क्योंकि लोकतंत्र में विपक्षी राजनीतिक दलों का ताकतवर होना जरूरी है और अगर वे सरकार बनाने की स्थिति में आते हैं तो और सही है।
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लेकिन क्या पार्टी को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि आखिर उसकी ओर से ऐसा बेतुका कारनामा क्यों किया गया। क्या यह सरेआम किसी संगठन के प्रति नफरत का प्रदर्शन नहीं है और देश में तनाव एवं हिंसा को बढ़ावा देने की कोशिश नहीं है। भाजपा का इस संबंध में सवाल अहम है कि क्या पार्टी नफरत के सहारे भारत को जोडऩा चाहती है। गौरतलब है कि कांग्रेस की ओर से इस दौरान एक ओर ट्वीट किया गया है, जिसमें पार्टी ने साफ-साफ भाजपा और आरएसएस पर नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया है। उसका कहना है कि भारत को नफरत की जंजीरों से मुक्त करने और भाजपा-आरएसएस द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई के लिए हम एक-एक कदम आगे बढ़ रहे हैं।
कांग्रेस के लिए आज की तारीख में राज्यों और केंद्र में सत्ता अगर दूर की कौड़ी हो गई तो वह इसका बदला भाजपा-आरएसएस पर नफरत का आरोप लगा कर पूरा कर रही है। गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट मिल चुकी है, बावजूद इसके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोदी पर अनर्गल आरोप लगाते आ रहे हैं। आरएसएस और वीर सावरकर के संबंध में कांग्रेस का रवैया हमेशा से अनुचित रहा है, हालांकि धर्मनिरपेक्षता की पैरोकार पार्टी ने कभी भी उन दलों के संबंध में कुछ नहीं कहा, जिनकी बुनियाद ही सांप्रदायिकता की है। आज देश में मुस्लिम समाज को भी तरक्की के उतने ही अवसर प्राप्त हो रहे हैं, जितने दूसरे वर्गों को। लेकिन एक समय मुस्लिम समाज वोट बैंक से ज्यादा अहमियत नहीं रखता था। कांग्रेस एक तरह से उसे पूरी तरह अपनी तरफ मानती आई है। आज अदालतें अगर हिंदू पूजा स्थलों के संबंध में सकारात्मक फैसले दे रही हैं तो यह भी कांग्रेस को समाज तोडऩे वाली गतिविधि लग रहा है, हालांकि देश अब समझने लगा है।
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कांग्रेस अगर भाजपा पर नफरत की राजनीति का आरोप लगा रही है तो क्या कांग्रेस को 1984 के सिख विरोधी दंगों का जवाब नहीं देना चाहिए। पिछले साल कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने कहा था कि पूरे भारत में केरोसिन छिडक़ दिया गया है और सिर्फ एक तीली जलाने की आवश्यकता है। इसके बाद मई में उदयपुर में चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने कहा था कि कुछ महीने इंतजार कीजिए, पूरे देश में आग लग जाएगी। आखिर इस तरह के बयान किसे शोभा देते हैं। एक राजनीतिक को संजीदगी के साथ अपनी बात कहनी चाहिए, क्योंकि उसकी बातों को कम से कम उसके समर्थक को सुनते और उस पर अमल करते हैं। सियासत का यह कैसा फंडा है कि यहां सिर्फ अपना हित ही सोचा जाता है। आरएसएस एक समाजसेवी संगठन है और उसकी विभिन्न शाखाएं हैं, जिनके जरिए वह समाज कल्याण के कार्यों को कर रहा है। उसकी यह छवि निर्मित करना देश और समाज को गुमराह करने की कितनी बड़ी साजिश है। कांग्रेस को अगर भाजपा के प्रति आक्रामक होना है तो वह राजनीतिक मुद्दों को लेकर सामने आए। लेकिन एक संस्था के पुराने गणवेश निक्कर में आग लगी दिखाकर पार्टी अपनी मनोदशा पर ही सवाल खड़े कर रही है। उसे पहले अपने घर को जोडऩे की आवश्यकता है। कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह खुद को आज की तारीख में देश के लिए प्रासंगिक पार्टी के रूप में पेश करे। जनता यह भी जानना चाहती है कि अगर कांग्रेस को वह समर्थन दे जिससे वह केंद्र में सरकार बना सके तो क्या वह देश में विकास की इसी रफ्तार को बनाए रख पाएगी? हालांकि यह अभी दूर की बात नजर आती है, लेकिन फिर साल 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के समक्ष चुनौती बनने के लिए पहले खुद को बदलना होगा और सकारात्मक राजनीति की मिसाल पेश करनी होगी। यह कैसे होगा, इसका पता लगाना पार्टी का काम है, लेकिन देश शायद इस प्रकार के ऊट पटांग कारनामे जिनमें किसी निक्कर में आग लगा दी जाए, शायद स्वीकार नहीं करेगा। आगे बढऩे के लिए खुद को तराशना होता है, न कि विरोधी की पतलून में आग लगने के सपने देखकर खुश होकर कामयाबी मिलेगी।