किस चुनाव चिन्ह पर लगेगी महाराष्ट्र की मुहर? किसके हाथों में होगी महाराष्ट्र की सत्ता?

किस चुनाव चिन्ह पर लगेगी महाराष्ट्र की मुहर? किसके हाथों में होगी महाराष्ट्र की सत्ता?

2024 का पहले चरण का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव आज संपन्न हुआ।

 

Maharastra Election: 2024 का पहले चरण का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव आज संपन्न हुआ। जिसमें शिवसेना के दो विरोधी गुटों पर सबकी नजर है। एकनाथ शिंदे का खेमा और उद्धव ठाकरे का खेमा। जो कभी एकजुट शिवसेना कहलाते थे, जो बालासाहेब ठाकरे की विरासत का हकदार थे, वह अब भारत के सबसे राजनीतिक रूप से जीवंत राज्यों में से एक में प्रभुत्व के लिए विभाजित हो चुके हैं। देखना यह दिलचस्प होगा की इन दोनों शिवसेना में से किसकी जीत होती है।

 

23 नवंबर को होगी मतगणना

 

महाराष्ट्र में 20 नवंबर को एक चरण में मतदान समाप्त हुआ और 23 नवंबर को मतगणना होगी जो मौजूदा 228 सदस्य विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से एक दिन पहले है। राज्य में सत्ता रूढ़ि महायुती गठबंधन जिसमें शिंदे की शिवसेना, भाजपा और एनसीपी शामिल है इनका सीधा टक्कर महा विकास आघाडी में कांग्रेस यूवीटी की शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एनसीपी जो शरद पवार की है उनसे होने वाली है। 2022 में शिवसेना से अलग होकर भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे का दावा है, कि वह बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा की सच्ची भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा के गठबंधन तंत्र के साथ शिंदे विकास के वादों और ग्रामीण महाराष्ट्र के समर्थन पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भरोसा कर रहे हैं।

 

शिवसेना की विरासत के लिए संघर्ष

महाराष्ट्र में एक प्रतियोगिता देखने को मिल रही है, जिसके केंद्र में बालासाहेब ठाकरे की विरासत की लड़ाई है। एकनाथ शिंदे दिवंगत नेता के हिंदुत्व और जमीनी राजनीति के दृष्टिकोण को बनाए रखने का दावा करते हैं,जबकि उद्धव ठाकरे खुद को बालासाहेब की समावेशी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के असली उत्तराधिकारी के रूप में पेश करते हैं। शिवसेना के सिद्धांतों का सही मायने में प्रतिनिधित्व करने वाले की लड़ाई में मतदाताओं को ध्रुवीकृत कर दिया है। उद्धव ठाकरे के इस दावे पर की शिंदे ने शिवसेना को चुराया है एकनाथ शिंदे ने हाल ही में वैचारिक मतभेदों की ओर इशारा किया, उन्होंने कहा बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र की वैचारिक आधारशिला है, हालांकि उद्धव उनके बेटे हैं, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके बालासाहेब के सिद्धांतों को त्याग दिया वहीं पार्टी जिसके साथ बाला साहब ने कभी ना जुड़ने की कसम खाई थी। उद्धव ने निजी लाभ के लिए शिवसेना बीजेपी गठबंधन को लोगों द्वारा दिए गए जनादेश से समझौता किया।