जब कृष्ण ने आंसुओं से धोए थे सुदामा के चरण, मुट्ठी भर चावल से हो गए थे अमीर
Krishna Sudama Mythological Katha
Krishna Sudama Mythological Katha: भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यावस्था से कई लीलाएं और कथाएं(pastimes and tales) प्रचलित हैं. कई कथाओं में कृष्ण के मित्रों का जिक्र भी किया गया है. श्रीकृष्ण के कई मित्र थे. उनके सखा मंडली में मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, सुदामा, मधुकंड, अर्जुन, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चंद्रहास, बाकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश जैसे कई मित्र थे.
इन्हीं में एक थे सुदामा, जोकि कृष्ण के खास और प्रिय मित्र थे. कृष्ण और सुदामा की मित्रता एक मिसाल है. बचपन के दिनों में ही कृष्ण ने सुदामा को वचन देते हुए कहा था कि, मित्र तुम जब भी संकट में खुद को पाओ मुझे याद करना. मैं जरूर अपनी मित्रता निभऊंगा और बाद में श्रीकृष्ण ने अपना वचन भी निभाया.
मित्रता का रिश्ता दुनिया में सबसे खूबसूत होता है. क्योंकि यह रंग, रूप, धन-दौलत और भेद-भाव से परे होता है. आज के समय में जब भी मित्रता की बात होती है तो सबसे पहले कृष्ण और सुदामा का ही नाम आता है. कृष्ण और सुदामा से जुड़ी कई कहानियों में एक है यह कहानी.
बाल्याकाल में भले ही कृष्ण, सुदामा और अन्य मित्र एक साथ पढ़ते थे. लेकिन एक समय ऐसा आया कि जब श्री कृष्ण द्वारका के राजा बन गए और उनके मित्र सुदामा इतने गरीब हो गए कि भोजन की व्यवस्था करना भी कठिन हो गया.
सुदामा अपने परिवार का लालन-पालन करने में भी असमर्थ हो गए. तब सुदामा की पत्नी सुशीला ने उन्हें द्वारका जाकर द्वारकाधीश श्री कृष्ण से मदद मांगने को कहा. सुशीला की बात सुनकर सुदामा थोड़ा हिचकिचाए. लेकिन सुदामा के पास इसके अलावा अन्य कोई रास्ता भी नहीं बचा था. इसलिए वे मदद मांगने के लिए श्रीकृष्ण के पास जाने को तैयार हो गए.
तीन मुट्टी चावल भेंट लेकर सुदामा गए द्वारका /Sudama went to Dwarka with a gift of three handfuls of rice
कहा जाता है कि राजा, गुरु, मित्र, बेटी और मंदिर इन पांच जगहों पर व्यक्ति को कभी भी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए. यही सोचकर सुशीला पड़ोस से तीन मुट्ठी चावल मांगकर लायी और इसे पोटली में भरकर सुदामा को देते हुए कहा कि इसे कन्हैया को भेट कर दे.
सुदामा जब द्वारकानगरी में श्रीकृष्ण के महल पहुंचे तो, महल के बाहर खड़े द्वारपालों ने सुदामा को हीन भावना से देखते हुए पूछा कि वह यहां किसलिए आए हैं. जब सुदामा ने अपना परिचय दिया और कहा कि वे कृष्ण के मित्र हैं तो द्वारपालों ने भीतर जाकर यह बात कृष्ण को बताई. कृष्ण अपने मित्र सुदामा के आने का संदेश पाकर महल से द्वार के पास दौड़े-दौड़े आ गए और सखा सुदामा को गले से लगा लिया.
श्रीकृष्ण ने अश्रुओं से धोए सुदामा के पैर / Lord Krishna washes Sudama's feet with tears
कृष्ण सुदामा को महल के भीतर ले गए और उन्हें अपने राजसिंघासन पर बैठाकर अपने आंसुओं से उनके चरण धोए. कृष्ण को देख उनकी पटरानियां और महल में मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए. सभी यह सोचने लगे कि द्वारकाधीश ये किस व्यक्ति के चरण धो रहे हैं. कृष्ण ने वहां मौजूद सभी लोगों को बताया कि ये उनके सखा सुदामा हैं.
दो मुट्ठी चावल के बदले कृष्ण ने सुदामा को दी दो लोक संपत्ति / In exchange for two handfuls of rice, Krishna gave Sudama two public property
कृष्ण ने जब सुदामा से कहा कि वह उनके लिए क्या संदेश लेकर आए हैं? इतना सुनते ही सुदामा को लज्जा आ गई और उन्होंने अपनी पोटली छिपा कर कहा, कुछ भी नहीं. इतने में कृष्ण बोले- क्यों झूठ बोलते हो सखा, क्या आज भी बचपन की तरह तुम मेरे हिस्से के चावल खाना चाहते हो.
यह कहते हुए कृष्ण ने खुद ही सुदामा से वो पोटली ले ली और चावल खाने लगे. जैसे ही कृष्ण ने एक मुट्ठी चावल खाई, तो इसके बदले उन्होंने सुदामा को एक लोक की संपत्ति दे दी. इसके बाद कृष्ण ने दूसरी मुट्ठी चावल खाकर सुदामा को दो लोक की संपत्ति दे दी. लेकिन कृष्ण तीसरी मुट्ठी चावल खाने जा ही रहे थे कि रुक्मणि उन्हें रोकते हुए बोली- प्रभु! यदि आप तीनों लोक की संपत्ति इन्हें दे देंगे तो अन्य सब जीव और देवता कहां जाएंगे? रुक्मणि की बात सुन कृष्ण रुक गए. इस तरह कृष्ण ने सुदामा की मदद की और प्रेमपूर्वक उन्हें विदा किया.
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