What is Devadasi Pratha Virgin Girls Donate in Temple

हजारों साल पुरानी रीत को आज भी मानता है ये कुल, देवदासी नाम से जानी जाती है ये प्रथा 

What is Devadasi Pratha

What is Devadasi Pratha Virgin Girls Donate in Temple

Devadasi Pratha: भारत में कई रीति-रिवाज़ आज भी कायम है और कुछ तो बहुत ही पुराने है और कुछ प्रथाओं को तो कब का छोड़ दिया गया है। ये सब कुछ समय के बदलाव व् शिक्षा के माध्यम से हुआ है। देश में ये क्रांति भी घर-घर में फैलाई गई और फिर कहीं जाकर इन सख्त प्रथाओं और रीति-रिवाज़ को खत्म किया गया है। लेकिन आज भी कुछ कुल ऐसे है जो कुछ प्रथाओं को मानते आ रहें है और इसके लिए कई तरह के बलिदान करते भी आए है। उन्ही प्रथाओं में से एक है देवदासी प्रथा। वैसे तो भारत में ये प्रथा हजारों साल पुरानी है, लेकिन समय के साथ इसका मूल रूप बदला है। देवदासी का साफ मतलब है कि देवता की दासी यानी की अपना पूरा जीवन देवता के चरणों में समर्पित कर देना। हालांकि कानूनी तौर पर इसपर रोक लगा दी गई थी लेकिन आज भी इसके एक आधे मामले सुनने को मिल जाते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

क्या है देवदासी प्रथा
देवदासी प्रथा को कुरीतियों में गिना जाता है। इस प्रथा के अंतर्गत देवी/देवताओं को प्रसन्न करने के लिए सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करना होता है। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते हैं। पहले के समय में परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था। देवता से ब्याह के चलते इन्हें देवदासी कहा जाता था। इस प्रथा के अंतर्गत दलित और आदिवासी महिलाओं को भगवान को सौंपकर आस्था के नाम पर उनका शोषण किया जाता था। 

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देवदासी बनने के लिए कोई उम्र तय नहीं
देवदासियों के लिए कोई तय उम्र नहीं है। पांच साल की लड़की भी देवदासी बन सकती है और दस साल की भी। अधिकतर देवदासी बनने वाली लड़कियां दलित परिवार या आदिवासी परिवार से होती हैं।

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छठी सदी में हुई थी शुरुआत
इतिहासकारों के मुताबिक देवदासी प्रथा की शुरुआत छठी सदी में हुई थी। अब कानूनी रूप से भले ही इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया हो, लेकिन दक्षिण भारत के तमाम मंदिरों में आज भी ये देखने को मिलती हैं। पद्मापुराण में कुवांरी कन्याओं को दान के रूप में मंदिरों में दिए जाने की बात कही गई है। शुरुआत में देवदासियों की स्थिति बहुत मजबूत हुआ करती थी और समाज में उनका सम्मान था। उस दौरान देवदासियां दो प्रकार की हुआ करती थीं। एक जो नृत्य करती थीं और दूसरी जो मंदिर की देखभाल करती थीं।

मन्नतों के बदले में बच्चियों को बनाते थे देवदासियां
पहले के समय में बीमारियों और सही से देखभाल न करने के चलते बहुत कम बच्चे ही जन्म के दौरान जीवित रह पाते थे। ऐसे में लोग मंदिरों में जाकर मन्नतें मांगते थे कि यदि मेरी संतानें जिंदा रहीं तो उनमें से एक को देवादासी बनाएंगे। 

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देवता से मिलाने के नाम पर बनाने थे संबंध
सबसे पहले कुंवारी कन्या का विवाह मंदिर के देवता से कराया जाता था। इसके बाद उन्हें मंदिर में देवता की सेवा के लिए रखा जाता था। प्रत्येक मंदिर में देवदासी के लिए एक पुरोहित को रखा जाता था। देवता से मिलाने के नाम पर पुरोहित देवदासियों के साथ संबंध बनाते थे।

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कैसे बनती थीं देवदासियां
मंदिर में लड़की को ले जाया जाता था। सबसे पहले काले रंग का कंबल बिछाया जाता है फिर उसपर लड़की को बैठा दिया जाता है। लड़की के लिए सफेद रंग की साड़ी लाई जाती है और हरे रंग की चूड़ियां और चांदी के कंगन पहनाए जाते हैं। इसके बाद 5 देवदासियों को बुलाकर उन्हें हुदो हुदो हुदो श्लोक का उच्चारण करवाया जाता है। इसके बाद उनके माथे पर सिंदूर लगा दिया जाता है और हाथ में पडलगी दी जाती है। इतना ही नहीं, गले में मणिमाला पहनाई जाती है। तब जाकर देवदासी बना जाता है।  

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