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Editorial: चुनावी नतीजे अस्वीकार करने के बयानों से क्या साबित हो रहा

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What are the statements of rejecting the election results proving

What are the statements of rejecting the election results proving: कांग्रेस ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव परिणामों को अस्वीकार्य कह कर क्या प्रदेश की जनता की ओर से दिए जनादेश का अपमान नहीं  किया है? लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है और इसका हक प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है। हालांकि चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस के नेताओं की ओर से जिस प्रकार के बयान सामने आ रहे हैं, वे न केवल अभिव्यक्ति की आजादी का मजाक बना रहे हैं, अपितु चुनाव आयोग की शुचिता पर भी सवाल उठा रहे हैं। यही वजह है कि आयोग ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को पत्र लिखकर कांग्रेस नेताओं की ओर से चुनावी परिणामों को अस्वीकार करने संबंधी बयानों पर आपत्ति जताई है। आयोग ने इस संबंध में कहा है कि कांग्रेस नेताओं का अस्वीकार्य वाला बयान लोकतंत्र में अनसुना है। आयोग ने शब्दों का विशिष्ट चयन करते हुए यह भी समझाया है कि किस प्रकार ऐसी टिप्पणियां वैधानिक एवं नियामक ढांचे के अनुसार अभिव्यक्त लोगों की इच्छा को अलोकतांत्रिक तरीके से खारिज करने की दिशा में कदम है। दरअसल आयोग का साफ कहना है कि जिस प्रकार की टिप्पणियां की गई हैं, वे स्वीकार्य लोकतांत्रिक ढांचे के अनुरूप नहीं है। अगर देखा जाए तो कांग्रेस को इस चुनाव में जीत हासिल हो जाती तब भी क्या ईवीएम का मुद्दा इसी प्रकार उठता?

 गौरतलब यह है कि कांग्रेस ने इस संबंध में चुनाव आयोग को शिकायत दी है। पार्टी के नेताओं ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ आयोग के समक्ष इस संबंध में शिरकत की है। हरियाणा के इतिहास में इस चुनाव को बेहद अनूठा माना जाएगा, क्योंकि इस बार राजनीतिक दलों ने चुनावी परिश्रम की पराकाष्ठा को छू लिया था। लेकिन चुनाव के दौरान ईवीएम कोई मुद्दा नहीं थी, लेकिन जब परिणाम सामने आए तो कांग्रेस ने 20 सीटों पर ईवीएम की बैटरी को 99 प्रतिशत बताकर इसे मुद्दा खड़ा कर दिया। हालांकि आयोग की ओर से इस संबंध में स्पष्ट किया गया है कि ईवीएम से छेड़छाड़ की कोई आशंका नहीं है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक में रखा जा चुका है, वहीं चुनाव आयोग बार-बार राजनीतिक दलों को इसके लिए आमंत्रित कर चुका है कि ईवीएम को हैक करके दिखाओ। या फिर इनसे छेड़छाड़ को साबित करके दिखाओ।

हालांकि आजतक ईवीएम से छेड़छाड़ को आधिकारिक रूप से साबित नहीं किया जा सका है। अब प्रदेश मेें अपनी चुनावी रणनीति की खामियों को परखने के कांग्रेस नेता उस जनादेश को ही अस्वीकार कर रहे हैं, जिसे बहुमत से प्रदेश की जनता ने दिया है। प्रश्न यह है कि अगर एक जाति विशेष का ही वोट कांग्रेस को नहीं मिला होता तो वह संभव है, इतनी सीटें भी इस चुनाव में हासिल नहीं कर पाती। प्रदेश की राजनीति में जातिवाद की बात इस बार के चुनाव में बहुत पुरजोर तरीके से हुई है। यह भी साबित तथ्य है कि कांग्रेस ने दलित समाज को हतोत्साहित किया। इसकी बानगी कुमारी सैलजा के प्रति अभद्र टिप्पणी और बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रति भी अशोभनीय रवैये से मिलती है।

क्या प्रदेश का ओबीसी और दलित वर्ग एक पार्टी विशेष के पीछे चलने को ही रह गया है। प्रत्येक चुनाव में जाति के आधार पर वोट का ऐसा ध्रुवीकरण होता आया है कि मन चाहे मार्जिन से उम्मीदवार जीतते आए हैं। हालांकि इस चुनाव में ऐसा अंडर करंट रहा है, जिसमें ओबीसी और दलित वर्ग ने अपने हक की आवाज को समझा, सुना और उसके आधार पर वोट किया। क्या कांग्रेस को यह बात नहीं समझनी चाहिए। प्रदेश में आम आदमी पार्टी, जजपा, इनेलो आदि ने बातों का ऐसा मायाजाल उत्पन्न किया था, जिसने आम आदमी को उलझाने के भरपूर प्रयास किए। लेकिन महज खेतीबाड़ी और आया राम गया राम की राजनीति से बाहर आ चुके प्रदेश के मतदाता ने भाजपा को फिर से चुन कर उसे यह संदेश दिया है कि इन वर्गों के हित में भी उसे कदम उठाने होंगे।

दरअसल, कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों की यह धारणा सही नहीं है कि उनकी जीत से ही लोकतंत्र कायम रहता है और उनके हारने से लोकतंत्र मरणासन्न हो जाता है। बहुमत की आवाजों का सम्मान जरूरी है लेकिन यह भी आवश्यक है कि ऐसे आरोपों का राग न अलापा जाए जो कि राजनीतिकों की कथित परिपक्वता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। देश में आपातकाल की घोषणा करके जैसी अराजकता पैदा की गई थी, वह देश नहीं भूला है। अब उसी प्रकार के बयान जारी करके जिनसे लोकतंत्र और संविधान के प्रति बगावत की बू आती है, नेता अपने भविष्य की राजनीति को भी धूमिल कर रहे हैं। आज का मतदाता युवा है और वह इस बात को बखूबी समझ रहा है कि कौन कितने पानी में है। यही इस विधानसभा चुनाव का सार भी है। 

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