Vinesh Phogat

Editorial: विनेश फौगाट ने पदक न सही लेकिन दुनिया को जीत लिया

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Vinesh Phogat may not have won a medal but she won the world

Vinesh Phogat may not have won a medal but she won the world: पेरिस ओलंपिक में भारतीय पहलवान विनेश फौगाट के साथ जो घटा है, वह अचंभित करने वाला है। यह सोच कर ही रगों के अंदर बहता खून जम जाता है कोई चार साल तक इस दिन के लिए हर घड़ी संघर्ष करता है, वह अवसर भी आता है लेकिन फिर एकाएक उसे डिसक्वालीफाई करके न केवल बेइज्जत कर दिया जाता है, अपितु उसका जीता हुआ मैडल भी उसे नहीं दिया जाता। विनेश फौगाट को लेकर देश के 140 करोड़ लोग भाव विह्वल हैं और सभी का मन आंदोलित है।

भारत पहले ही पेरिस ओलंपिक में इस बार बहुत सराहनीय नहीं कर पाया है, लेकिन जितने भी हमारे खिलाड़ी हैं, उन्होंने जी जान लगा दी। कुश्ती ऐसा खेल है, जिसमें देश को पदक की उम्मीद थी और विनेश ने पिछली बार की ओलंपिक विजेता को हरा कर अपने देश के लिए इसकी उम्मीद जगा दी थी कि सिल्वर तो पक्का है, और अगर सब कुछ सही रहा तो गोल्ड भी हमारा होगा। हालांकि मुकाबले से ठीक पहले महज 100 ग्राम वजन ने विनेश की राह में ऐसे रोड़े अटकाए, कि न केवल उनका अपितु पूरे देश का दिल टूट गया। विनेश फौगाट 53 किलोग्राम में मुकाबला करती आई हैं, लेकिन इस बार वे 50 किलोग्राम के भार वर्ग में मुकाबले में उतरी थीं। हालांकि इस 50 किलोग्राम में भी 100 ग्राम वजन ज्यादा हो रहा था और इस 100 ग्राम को कम करने के लिए उन्होंने अपने जीवन को संकट में डाल लिया था, लेकिन फिर भी यह कम नहीं हो सका और ओलंपिक कमेटी ने नियमों का हवाला देते हुए उन्हें मुकाबले से बाहर कर दिया और सिल्वर पदक भी नहीं दिया।

यह बेहद गंभीर और असंवेदनशील मामला भी है। बेशक, ओलंपिक कमेटी के नियम सख्त हैं और यह जरूरी भी है। क्योंकि जितने सख्त नियम होंगे, मुकाबले उतने ही चरम परिणाम देने वाले होंगे। उसी आधार पर यह भी साबित होगा कि यह खेल कोई गांव-देहात, राज्य, देश एवं महाद्वीप स्तर के नहीं हैं,अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं। हालांकि विनेश फौगाट के मामले में भी जिस प्रकार ओलंपिक कमेटी का रूख सामने आया है, वह एकतरफा लगता है। अब यह भी जांच का विषय है कि आखिर एक खिलाड़ी के साथ जब पूरा स्टाफ होता है, तब किस प्रकार से ऐसी घटनाएं घट जाती हैं। लेकिन इस घटना के बावजूद विनेश फौगाट के मामले ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया। यह कितना बड़ा विषय है, इसका अंदाजा इस बात से मिलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन की अध्यक्ष पीटी ऊषा को ओलंपिक समिति के समक्ष विरोध दर्ज कराने को कहा। इस बीच कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में अपील की गई, मुकाबले को फिर से आयोजित कराने का आग्रह किया गया। लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया।

गौरतलब है कि विनेश इस तरह के हालात से पहली बार दो-चार नहीं हुई हैं, साल 2016 में वर्ल्ड ओलंपिक क्वालीफाइंग इवेंट में उनका वजन 48 किलोग्राम कैटेगरी में 400 ग्राम ज्यादा मिला था। उन्होंने दूसरे क्वालीफाइंग राउंड में फिर मुकाबले में उतर कर ओलंपिक के लिए अपना स्थान पक्का किया था। यह घटना यह भी बताती है कि एक पहलवान एवं एक खिलाड़ी का जीवन कितना दुर्गम और कठोरता से भरा होता है। एक खिलाड़ी की जीत पर सभी खुश हो जाते हैं, लेकिन उसकी हार पर उसे अकेला छोड़ देते हैं। हालांकि एक खिलाड़ी ही जानता है कि उस जीत के लिए और उस हार के लिए भी उसने कितना पसीना बहाया है।

विनेश फौगाट ने इस घटना के बाद संन्यास की घोषणा की है। हालांकि यह बहुत जल्दी में लिया गया फैसला लगता है। बेशक, यह उनके लिए कठिन समय है, लेकिन उन्होंने संघर्ष और मुकाबले की अपनी इच्छाशक्ति को अभी थकने नहीं देना है। पूरे देश और दुनिया ने देखा है कि किस प्रकार उन्होंने इस मुकाबले को लड़ा है। यह उनकी हार नहीं है, अपितु परिस्थितियों का ऐसा जंजाल है, जिन्होंने उसकी जीत के सूरज के समक्ष चुनौतियों की आंधी ला दी।

उन्होंने इस ओलंपिक में भारत के लिए सबसे बड़ा पदक जीता है और वह पदक अंतिम क्षणों तक संघर्ष एवं अपने देश के लिए लड़ने के साहस का है। निश्चित रूप से इस पूरे प्रकरण की जांच अवश्य होनी चाहिए कि यह सब कुछ स्वाभाविक तरीके से हुआ या फिर इसके पीछे कोई साजिश रही। हालांकि ऐसा होने का महज आरोप ही लगाया जा सकता है, क्योंकि जो हुआ वह सब परिस्थितिजन्य है। बावजूद इसके भविष्य के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हमारे खिलाडिय़ों के समक्ष ऐसी चुनौतियां खड़ी न होने पाएं। वहीं देश को ओलंपिक में पदक जीतने की अपनी इच्छाशक्ति को और ज्यादा प्रबल बनाना होगा।

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