vidhanapalika is the ideal of the country
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Editorial : विधानपालिका है देश का आदर्श, उसकी गरिमा को न पहुंचे ठेस

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vidhanapalika is the ideal of the country राज्यसभा और गुजरात विधानसभा में घटे कुछ घटनाक्रम निश्चित रूप से विधानपालिका के महत्व पर चोट करने वाले हैं, जिनसे बचा जाना चाहिए। राज्यसभा में कांग्रेस की सदस्य रजनी पाटिल ने उस समय कार्यवाही का वीडियो बनाया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  धन्यवाद प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। आज सोशल मीडिया के जमाने में जब हर समय मोबाइल फोन उसके संबंधित धारक के पास रहता है और कमोबेश वह किसी भी क्षण को बगैर वीडियो बनाए गुजरने नहीं देना चाहता, तब राज्यसभा में एक सांसद का ऐसा आचरण अनुचित ही करार दिया जाएगा। अब राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से संबंधित राज्यसभा सदस्य को बजट सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित करने की कार्रवाई यथोचित है। इस मामले की जांच विशेषाधिकार समिति से कराने के निर्देश दिए गए हैं।

सवाल यह है कि क्या सांसदों को इतने विशेषाधिकार हासिल हैं कि वे संसद की गरिमा का मखौल बनाए। तीन कृषि कानूनों को पारित किए passed three agricultural laws जाने के दौरान विपक्ष के अनेक सांसद राज्यसभा में सीटों पर खड़े हो गए थे और उन्होंने बिल की प्रतियों को भी फाड़ा था। इसके बाद हंगामा करने वाले राज्यसभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था, जिन्होंने संसद परिसर में ही धरना देना शुरू कर दिया था। अब कांग्रेस की राज्यसभा सांसद का मोबाइल फोन से सदन की कार्यवाही का वीडियो बनाना सदन की मर्यादा का उल्लंघन और बचकाना है। जब पूरी कार्यवाही राज्यसभा सचिवालय की ओर से खुद रिकॉर्ड करवाई जा रही है, तब एक सांसद का निजी वीडियो बनाना यही बताता है कि उन्हें सत्ता पक्ष एवं प्रधानमंत्री के बयानों की गरिमा का कोई ख्याल नहीं है। इसे उनकी हेकड़ी समझा जा सकता है कि वे यह बता रही हैं कि बतौर विपक्ष यह उनका अधिकार है कि वे सदन की कार्यवाही का जबकि प्रधानमंत्री अपना जवाब दे रहे हों, वीडियो बनाएं और अपने समर्थकों को इसे प्रसारित कर अपनी धाक जमाएं।

 गौरतलब है कि इससे पहले साल 2016 में भी ऐसा ही मामला सामने आया था, जब सांसद एवं इस समय पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सदन की कार्यवाही की इंटरनेट मीडिया पर लाइव स्ट्रीमिंग की थी। इसके बाद एक समिति की सिफारिशों के आधार पर उन्हें पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था। जाहिर है, ऐसा करने के पीछे संसद के नियम और कायदों की जानकारी का अभाव हो सकता है।

संसद लोकतंत्र का पवित्र पूजा स्थल है, उसका सम्मान और गरिमा किसी भी रूप में कमतर नहीं होने दी जा सकती। अब कांग्रेस की राज्यसभा सांसद रजनी पाटिल का कहना है कि उन्होंने जानबूझकर कुछ नहीं किया है, उन्होंने इसे खुद पर आरोप लगाना बताया है। इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि वे अपमानित महसूस कर रही हैं। वास्तव में हर बात में राजनीति नहीं तलाशी जानी चाहिए। जो गलत है, वह गलत है। यह ज्यादा अच्छा होता कि रजनी पाटिल खुद अपनी गलती के लिए सदन से क्षमाप्रार्थी होती, उन्हें चाहिए था कि वे इसे स्वीकार करती कि उनके इस कृत्य से सदन की गरिमा को ठेस पहुंची है, लेकिन उन्होंने सभापति की ओर से उन पर की गई कार्रवाई को अपमानित करने वाला बताया है, जोकि विस्मयकारी है। आज के राजनेता पहले ही अपने कृत्यों के लिए जनता का विश्वास खोते जा रहे हैं, उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे जनता के लिए प्रेरणा बनेंगे, लेकिन राजनेता आज के समय में गलतियों के रोल मॉडल बन चुके हैं।

एक अन्य मामला राजस्थान विधानसभा का है। यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत Chief Minister Ashok Gehlot जब बजट पेश करते समय उसे पढ़ रहे थे तो उन्होंने बीते वर्ष की गई घोषणाओं को फिर दोहरा दिया। जब गलती पकड़ में आई तो उन्होंने कहा कि बीते वर्ष का पेज इस बजट में संलग्न कर दिया गया, जिसका उन्हें खेद है। प्रश्न यह है कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है। क्या किसी ने भी बजट की प्रति को अंतिम बार चेक नहीं किया। किया खुद मुख्यमंत्री जिनसे पास वित्त विभाग है, उन्होंने विधानसभा में बजट पेश करने से पहले उसे पढ़ना जरूरी नहीं समझा। आखिर सारा कार्य अधिकारी ही करेंगे तो राजनेता क्या सिर्फ आदेश पारित करने तक ही सीमित रहेंगे। यह जांच का विषय है कि आखिर बजट में बीते वर्ष के बजट का पेज कैसे जुड़ गया।

क्या इसके पीछे विपक्ष की राजनीति है या फिर कांग्रेस के अंदर ही विरोध का नया रंग-रूप है। वास्तव में चाहे वह संसद हो या फिर विधानसभाएं इस प्रकार की कोताही नहीं होनी चाहिए। हरियाणा विधानसभा में भी शराब से मरने वालों का गलत आंकड़ा पेश कर दिया गया था। विधान पालिका पर भी काम का दबाव है लेकिन इस दबाव के बावजूद सब कुछ सही और सार्थक किया जाना जरूरी है। विधानपालिका देश का आदर्श है।  

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