महाकुंभ में सपना बनी 'हवाई चप्पल' वालों ने की हवाई यात्रा? निर्मल रानी

Maha Kumvh 2025
Maha Kumvh 2025: रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम (आरसीएस) ‘उड़ान’ का शुभारंभ करते हुये आठ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ' हम मानते थे कि हवाई सेवा केवल राजा और महाराजाओं के लिये है। यह सोच बदलनी चाहिए। मैं हवाई चप्पल पहनने वाले लोगों को भी हवाई जहाज़ में देखना चाहता हूं।' इस योजना के अंतर्गत न केवल बंद या बेकार पड़े देश के 45 हवाई अड्डों को पुनः संचालित करने बल्कि कई नये हवाई अड्डे बनाने का भी प्रस्ताव था। इन आठ वर्षों के दौरान निश्चित रूप से अनेक नये हवाई अड्डों का निर्माण भी हुआ है।
परन्तु सवाल यह है कि यह नये हवाई अड्डे और इनसे संचालित हवाई यात्रा क्या 'हवाई चप्पल' पहनने वाले लोगों को भी कुछ फ़ायदा पहुंचा रही है ? इस योजना के तहत औसतन 2500 / रुपये प्रति घंटे की उड़ान उपलब्ध कराने की घोषणा करने वाले प्रधानमंत्री का वह दावा आज आठ वर्ष बीतने के बाद भी आख़िर कितना सही साबित हो रहा है ? उस समय तो प्रधानमंत्री मोदी ने ग़रीब जनता की भावनाओं को स्पर्श करते हुये यह भी कहा था कि -'मैने ग़रीबी देखी है। ग़रीबी में जिया हूं, ग़रीबी देखने के लिए कोई यात्रा नहीं करनी पड़ती है। मुझे याद है आज तक मेरी मां के खाना बनाते हुए आंसू निकल जाते थे। इसी तरह हर मां के चूल्हा जलाते हुए आंसू निकलते हैं। इसलिए ग़रीब परिवारों को मुफ़्त गैस चूल्हा देने की योजना शुरू की है।' जबकि सच्चाई यह है कि इस योजना के बाद गैस की क़ीमत इतनी बढ़ गयी कि लाखों गृहणियां दुबारा गैस रिफ़िल तक नहीं करा सकीं।
बहरहाल सवाल यह है कि 8 वर्ष पूर्व किये गये इस लोकलुभावन दावे के बाद हवाई यात्रा को लेकर आज की स्थिति क्या है ? क्या हवाई चप्पल पहनने वाले यानी देश के ग़रीब लोग हवाई यात्रा कर पा रहे हैं ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जिस देश में सरकार स्वयं यह दावा करती हो कि हम देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन उपलब्ध करा रहे हैं उस देश के मुफ़्त राशन लेने वाले ग़रीब लोगों को हवाई यात्रा करने के लिये प्रोत्साहित करना कितना कारगर साबित हो सकता है ? यदि नहीं तो क्या 'हवाई चप्पल में हवाई यात्रा' जैसा शब्दों की 'तुकबंदी ' भरा दावा भी महज़ एक लोकलुभावन जुमला मात्र ही था ? कम से कम पिछले दिनों प्रयागराज में हुये महाकुंभ के दौरान तो यही देखने को मिला। यहाँ भी यही दावा किया जा रहा है कि 65 करोड़ लोगों ने महाकुंभ में स्नान किया। इसमें भी अधिकांश लोग वही 'राशन के लाभार्थी ' थे जो हवाई चप्पलों में या फिर नंगे पैर महाकुंभ में तीर्थ करने की ग़रज़ से आये और गये। कुंभ मेले के दौरान कई बार मची भगदड़ में भी मरने वाले बेचारे वही 'हवाई चप्पलों' वाले लोग ही थे।
रहा सवाल कुंभ मेले में 'हवाई चप्पल वालों का हवाई जहाज़' के द्वारा संगम तट पर स्नान करने हेतु प्रयागराज पहुँचने का, तो उस दौरान ग़रीबों के लिये तो हवाई यात्रा एक दुःस्वप्न बनकर रह गयी जबकि विमानन कंपनियों ने जमकर चांदी ज़रूर कूटी। भारतीय इतिहास में विमान किरायों में इतनी अनियंत्रित वृद्धि कभी नहीं हुई जितनी कुंभ के दौरान हुई। ज़रा सोचिये कि दिल्ली इलाहबाद का हवाई किराया जो सामान्य दिनों में 4 से 5 हज़ार रूपये के बीच हुआ करता था उसी विमान में कुंभ के दौरान 13 हज़ार से लेकर 80 हज़ार रूपये प्रति यात्री तक वसूला गया। यानी दिल्ली से लंदन का किराया उस दौरान औसतन इलाहबाद के किराये से 30 प्रतिशत सस्ता रहा। यही हाल उस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों से इलाहाबाद आने वाले विमानों के किराए का रहा। कभी दस गुना तो कभी बीस गुना तक ज़्यादा किराया वसूला गया। इतना ही नहीं बल्कि धनाढ्य लोगो के लिये एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर के ज़रिये संगम स्नान की सुविधा भी उपलब्ध कराई गयी। इसका किराया 35 हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति रखा गया। इससे यात्री हवाई अड्डे से सीधे संगम तक पहुंच सके। यह सुविधा इसलिए उपलब्ध कराई गयी थी ताकि इसका लाभ उठाकर श्रद्धालु बिना पैदल चले और बिना जाम में फंसे पवित्र संगम में स्नान कर सकें। फ़लाई ओला नाम की कम्पनी द्वारा इस सुविधाजनक उड़ान की व्यवस्था की गयी। निःसंदेह महाकुंभ का अवसर विमानन कंपनियों के लिये एक बड़ा व्यवसायिक आयोजन साबित हुआ जबकि हवाई चप्पलों वाले हवाई सैर को तरसते ही रह गये ?
कुंभ मेले के बाद इस बात पर भी चर्चा हुई कि प्रयागराज में उमड़े इस अभूतपूर्व जन सैलाब ने देश की जी डी पी को प्रभावित किया। उत्तर प्रदेश ने भी भारी राजस्व जुटाया। छोटे मोटे दुकानदारों व्यापारियों से लेकर, नाव,रिक्शा,टेक्सी गोया प्रत्येक व्यवसायिक क्षेत्र के लोगों ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर पैसे कमाये। परन्तु इस आयोजन को हाई टेक बनाने में कुछ बड़ी कंपनियों ने होटल के क्षेत्र में जो निवेश किया वह भी आश्चर्यचकित करने वाला था। धनाढ्य श्रद्धालुओं से 60 हज़ार से लेकर एक लाख रूपये प्रति रात्रि का किराया वसूला गया। डोम सिटी बनाये गये। इन विशेष स्थानों की पहुँच के अलग व सुरक्षित रास्ते निर्धारित किये गए। जब तक भगदड़ नहीं मची उस समय तक वी आई पी को विशेष सुविधाएँ,मार्ग,स्नान घाट व सुरक्षा आदि सब कुछ उपलब्ध कराये गये। बस यदि खुले आसमान के नीचे सर्द रातें बिताते लाखों लोग नज़र आये या भगदड़ में मरते या लापता होते दिखाई दिये तो वह वही 'लाभार्थी ' परिवार था जो मुफ़्त का राशन लेकर इन्हीं राजनेताओं से रेवड़ी लेने व 'भिखारी होने का प्रमाणपत्र' भी लेता है। और हवाई चप्पल में हवाई यात्रा करने की उम्मीद भी पाले रहता है। जबकि हक़ीक़त यही है कि महाकुंभ जैसे ऐतिहासिक आयोजन में भी 'हवाई चप्पल' वालों की हवाई यात्रा करने की तमन्ना मात्र सपना बन कर रह गयी।