Union Cabinet approves one country-one election

Editorial: एक देश-एक चुनाव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी

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Union Cabinet approves one country-one election

Union Cabinet approves one country-one election: एक देश एक चुनाव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद अब इसे इसी सत्र में संसद में पेश करने की तैयारी चुनाव सुधारीकरण की दिशा में एक और कदम है। एक साथ पूरे देश में चुनाव कराने की इस प्रक्रिया को लेकर तमाम सवाल  देश में पूछे जा रहे हैं। बेशक, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने उन देशों की चुनाव प्रणाली का अध्ययन किया है, जहां पर एक साथ चुनाव हो रहे हैं। लेकिन भारत के संदर्भ में चुनाव अलग ही परिप्रेक्ष्य में देखे जाते हैं। इस समय जब ईवीएम को चुनाव धांधली का विपक्ष ने पर्याय बना लिया है और हरियाणा जैसे शांत एवं प्रगतिशील सोच के प्रदेश की जनता के जनादेश को जब विपक्ष स्वीकार करने से इनकार कर देता है, तब यह विचार अहम हो जाता है कि क्या वास्तव में देश में एक चुनाव की अवधारणा को अमल में लाना संभव होगा। दरअसल, जब पूरी सृष्टि बदल रही है, तब हम क्यों नहीं अपनी रवायतों को नए स्वरूप में देखें।

कोविंद कमेटी की सिफारिश है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ और दूसरे फेज में ग्राम पंचायतों के चुनाव कराए जाएं। वास्तव में एक साथ चुनाव की अवधारणा कोई शिगूफा नहीं है, यह समझे जाने की बात है कि आखिर देश और विधानसभाओं के चुनाव के दौरान दो या तीन महीने तक देश के विकास की रफ्तार क्यों बाधित हो। क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि चुनाव एक दीर्घकालीन प्रक्रिया नहीं अपितु एक निर्धारित समय के अंदर पूरा कराए जाने वाला कार्य हो, उसके बाद फिर से देश में विकास कार्यों के लिए काम होने लगे। चुनाव आचार संहिता देश एवं राज्यों में सरकारी कार्यों की गति को बाधित कर देती है, हालांकि एक साथ चुनाव होने की सूरत में समय की बर्बादी को रोका जा सकता है। एक देश-एक चुनाव मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन देश में राजनीतिक विरोध का ऐसा जुनून है कि सही कार्यों के समर्थन में भी नेता एक साथ नहीं आते हैं।

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सुधारीकरण के सबसे बड़े पैरोकार बन चुके हैं और उनकी अगुवाई में ऐसी नीतियां एवं कार्यक्रम देश में लागू हो चुके हैं, जिनके संदर्भ में अभी तक कल्पना ही की जा सकती थी। देश में एक साथ लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की जरूरत पर लंबे समय से चर्चा जारी है। यह कहा जाता है कि अगर एक साथ चुनाव हुए तो इससे खर्च में भारी कटौती की जा सकेगी। खर्च में कटौती पर संशय नहीं होना चाहिए। चुनाव आयोग ने जो सुधार किए हैं, उनकी बदौलत ही अब चुनाव कब आए और कब परिणाम आकर माननीयों का शपथ ग्रहण समारोह हो जाता है, पता ही नहीं चलता। दरअसल, वन नेशन, वन इलेक्शन का विचार सार्थक रूप से लिया जाना चाहिए। हालांकि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए भारी संसाधन और मानव मशीनरी की जरूरत होगी। यह मामला सुरक्षा से भी जुड़ा होगा। हालांकि वन नेशन-वन इलेक्शन के संबंध में विपक्ष की ओर से विरोध की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने इस अवधारणा को अव्यवहारिक बताया है वहीं यह भी कहा है कि जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी। हालांकि लोकतंत्र में चुनाव से कौन इनकार कर सकता है, पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में चुनाव एक उपयुक्त प्रक्रिया है, अपने प्रतिनिधि चुनने की। ऐसे में अगर एक साथ पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे न केवल समय बचेगा अपितु खर्च भी बचेगा। यह भी देखे जाने की बात है कि आज के समय में चुनाव सबसे ज्यादा खर्चीला काम हो गया है। एक समय इसकी चर्चा होती थी कि उम्मीदवारों के द्वारा किस प्रकार इतना भारी -भरकम खर्च किया जाता है, हालांकि समय के साथ अब ऐसी बहसें बंद हो चुकी हैं।

 हालांकि इसके लिए संविधान में संशोधन और राज्य विधानसभाओं की मंजूरी भी ली जानी जरूरी होगी। इस समय कुछ राज्यों को छोडक़र अन्यों में विपक्ष की सरकारें हैं, क्या ऐसा हो सकेगा कि विपक्ष के नेता इस बिल का समर्थन करें। इसी समय विरोधी राजनीतिक दलों की ओर से इसे भाजपा का जुमला करार दिया जा रहा है। यह बात देश को पूछनी चाहिए कि क्या हम परंपरागत तौर-तरीकों से ही बंधे रहेंगे। जब नई संसद बनती है तो तब विपक्ष इसका विरोध करता है, जब महिलाओं के हित में 33 फीसदी आरक्षण का बिल पास होता है तो तब विपक्ष इसे छलावा करार देता है। आखिर हर बात में राजनीति क्यों होती है। वास्तव में सुधारीकरण जारी रहना चाहिए और उन आरोपों की अनदेखी होनी चाहिए, जिनमें चुनाव जीतने के लिए संविधान बदलने का राग अलापते हुए जनता को गुमराह किया गया। इस देश का संविधान सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन क्या सर्वश्रेष्ठ को भी समय के अनुसार और प्रासंगिक नहीं होना चाहिए?

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