“सत्य धैर्य की परीक्षा है” आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज
Truth is the Test of Patience
चड़ीगढ़: Truth is the Test of Patience: दिगम्बर जैन मंदिर श्री महावीर जिनालय में वर्षायोग कर रहे (आचार्य श्री 108 सुबलसागर महाराज) ने धर्म सभा को संबोधित करते हुआ कहा कि हे आत्मन्! सच्चे और शांत परिणामों वालें व्यक्ति ने ही इस संसार को जीता है। यह संसार उन्हीं लोगों से जीता जाता है जो सत्य निष्ठ हैं तथा सहन शील होते है! इस दुनियाँ में चारों ओर पाप है, असत्य है। एक- दूसरे को नीचा दिखाने की होर लगी हुई है, अहंकार में डूबा हुआ मनुष्य क्या सही है, क्या गलत है कुछ भी विचार नहीं करता मात्र अपने को ही श्रेष्ठ मानता है। सत्य पर भरोसा करने वाला सहिष्णु अर्थात् सहनशील भी होता है, अर्थात् सत्य को प्राप्त भी करने के लिए वह समता, धैर्य, गंभीरता के साथ आगे बढ़ता जाता है कई संघर्षो का सामना करते हुए, सत्य को विजय अंत में अवश्य ही मिलती है इसलिए कहा है कि - "सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं |
राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के लिए क्या कुछ सहन नहीं किया? राज्य-पाठ, सिहांसन, घर परिवार सभी को छोड़ा, लेकिन सत्य को अपने पास से नहीं जाने दिया । सती अंजना ने सत्य के लिए अपमान- दुत्कार. और जंगल के कष्ट झेले। जो कि चरम- शरीरी हनुमान जी माँ थी फिर भी घर से बाहर निकाली गई। सती सीता को भी सत्य के लिए अग्नि परीक्षा देना पड़ी। जितने भी पुरुष महान बने हैं और महान हुए हैं वह सत्य और सहनशीलता के बल ही महान बने है।
जैन दर्शन में सत्य अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सत्य को समझाते अपना हुए, सत्य को प्राप्त करने के लिए, और सत्य मय होने के लिए आगम में हमारे तीर्थंकर भगवान ने अनेक उपाय बताए है। जैसे साधुओं के लिए सत्य महाव्रत, सत्य (भाषा) समिति, सत्य धर्म, सत्य भावना, सत्य (वचन) गुप्ति आदि अनेकों उपाय बताएं है सत्य को प्राप्त कर सत्यमय हो पाने के लिए । श्रावकों के लिए, गृहस्थों के लिए भी एक देश रूप से सत्य को प्राप्त करने का उपदेश दिया है । सत्यता जहाँ होगी वहाँ-वहाँ सहिष्णुता भी होगी दोनों एक दूसरे के पूरक है। असत्य से लड़ने के लिए सहन शीलता को धारण करना पड़ता है
यह संसार है यह भी सत्य है, मोक्ष है यह भी सत्य है, जीव अपना कल्याण स्वयं ही कर सकता है यह भी सत्य है तो पुरुषार्थ करें सत्य को प्राप्त करें अपने जीवन को सुख- शांति-समृद्धि से ओत-प्रोत करें।
यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी |
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