आयुष आयुर्वेद में आदिवासियों की रुचि बड़ी
AYUSH Ayurveda
(अर्थ प्रकाश / बोम्मा रेडड्डी )
विजयवाडा : AYUSH Ayurveda: (आंध्र प्रदेश) आंध्र प्रदेश मेंआदिवासियों के बहुल क्षेत्र मेंआयुष मंत्रालय द्वाराकिया जा रहास्वास्थ्य शिविरबहु उपयोगी के अलावा लोगों में लोकप्रियता भी बड़ी है
जब हमारे समाचार पत्र के संवाददाताओं द्वाराग्रामीण क्षेत्र में आदिवासियों के विभिन्न बीमारियों कीऔर कुपोषण की जानकारी मिलने के बादबहुत आदिवासीक्षेत्र पाडेरू,लंबासिंगा,अन्नवरम,चिंतापल्लीमंडल केदौरे परगए हुए थे जो अल्लूरी सीताराम राजू जिला मेंग्राम अन्नवरम के .परिसर में दो महीने से लगातार स्वास्थ्य शिविर आयोजित किया गया था जिसका शासकीय " ट्रैवल हेल्थ केयर रिसर्च प्रोग्राम " अंन्डर ट्राईबल अवेयरनेस प्रोग्राम तहत ( जिसको रीजनल आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान ) के नेतृत्व में संचालित हो रहा है
_
जिसमें हर दिन एक हर मोहल्ला में लगभग 20 / 30 महिला पुरुष इनकी स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर रहे हैं इस क्षेत्र के आदिवासियों में उपयोग में लाई जा रही पानी तालाबों से निकासी की जाती है जिसके वजह से स्किन डिजीज का प्रकोप ज्यादा देखा गया है तथा महिलाओं में शारीरिक कमजोरी विटामिन की कमजोरी के वजह से जल्दी बीमार पड़ने की गुंजाइश को अनुसंधान में पाया गया कहकर इस क्षेत्र के कैंप प्रभारी टी ज्ञानेंद्र रेड्डी से जानकारी लेने के बाद यह पता लगा कि वे लोग 2 महीने से ज्यादा समय से इस क्षेत्र के विभिन्न वार्ड और मोहल्ले में स्वास्थ्य कैंप लगा रहे हैं जहां अधिकतर स्किन डिजीज और बुखार से जुड़ी कमजोरी भी दिखाई कहा जिनको सुचारू रूप से हम दवाई दे रहे हैं जिससे फायदा हो रहा है कहा उन्होंने आगे यह भी कहा कि इनकी आदिवासी खोया कॊंडकोया भाषा को समझने में हम विभाषी व्यक्ति का सहारा लेते हैं जो उनकी भाषा को समझ कर हमें अपनी भाषा में समझता है और लगभग हम लोग हर दिन 15 20 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करके पहाड़ों पर पहुंचते हैं और वहां दवाई देते हैं फिर हमें शाम को फिर पहाड़ से उतरना पड़ता है इस तरह की रोजमर्रा के कामों में रिसर्च फेलो सदस्य ठी ज्ञानेंद्र रेड्डी बताया कि पाडेरु मुख्यालय से कैंप तक की दूरी 70 किलोमीटर रहेगा जहां से सुबह निकल कर उसे गांव में पहुंचकर कैंप लगते हैं फिर शाम को पहाड़ से उतरकर फिर हमारे स्थान पर पहुंचते हैं कहा तथा इनका पीने का पानी स्वयं लेकर जाते हैं और ग्रामीणों को पीने का पानी गर्म करके ठंडा करने के पीने की मस्क भी बताते हैं जो लोग इस नुस्खे को उपयोग कर काफी मददगार है कहा।
ज्ञानेंद्र ने बताया कि इस क्षेत्र में शासकीय योजनाएं अमल करके आदिवासियों तक पहुंचाना और उसको उपयोग में लाने के लिए यह विभाषी व्यक्ति का उपयोग होना जरूरी है तब कहीं वह योजनाएं सफल रहने की पूरी संभावना बनती है कहा उन्होंने आगे बताया कि आदिवासियों की ट्रीटमेंट के लिए हमें सबसे पहले उनके वजन को और ऊंचाई को आकलन करते हुए ब्लड टेस्ट और ब्लड शुगर टेस्ट और रैंडम टेस्ट हीमोग्लोबिन यह पूरी जांच प्रक्रिया होने के बाद ही दवाई देते हैं अब लोगों में यह प्रक्रिया के बाद जो दवाई काम कर रहा है उसे लोगों में जागरूकता बड़ी है और दवाई उपयोग करने के लिए स्वयं आगे आ रहे हैं इसके पहले वे लोग शासकीय दवाई खाने में ज्यादा संतोषजनक नहीं रहते थे लेकिन अब धीरे-धीरे यह इस पर भरोसा कर रहे हैं कहा
ज्ञानेंद्र ने कहा कि उनके बीच कामआयुष आयुर्वेद में आदिवासियों की रुचि बड़ी ।
(अर्थ प्रकाश / बोम्मा रेडड्डी )
विजयवाडा :: (आंध्र प्रदेश) आंध्र प्रदेश मेंआदिवासियों के बहुल क्षेत्र मेंआयुष मंत्रालय द्वाराकिया जा रहास्वास्थ्य शिविरबहु उपयोगी के अलावा लोगों में लोकप्रियता भी बड़ी है
जब हमारे समाचार पत्र के संवाददाताओं द्वाराग्रामीण क्षेत्र में आदिवासियों के विभिन्न बीमारियों कीऔर कुपोषण की जानकारी मिलने के बादबहुत आदिवासीक्षेत्र पाडेरू,लंबासिंगा,अन्नवरम,चिंतापल्लीमंडल केदौरे परगए हुए थे जो अल्लूरी सीताराम राजू जिला मेंग्राम अन्नवरम के .परिसर में दो महीने से लगातार स्वास्थ्य शिविर आयोजित किया गया था जिसका शासकीय " ट्रैवल हेल्थ केयर रिसर्च प्रोग्राम " अंन्डर ट्राईबल अवेयरनेस प्रोग्राम तहत ( जिसको रीजनल आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान ) के नेतृत्व में संचालित हो रहा है
_
जिसमें हर दिन एक हर मोहल्ला में लगभग 20 / 30 महिला पुरुष इनकी स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर रहे हैं इस क्षेत्र के आदिवासियों में उपयोग में लाई जा रही पानी तालाबों से निकासी की जाती है जिसके वजह से स्किन डिजीज का प्रकोप ज्यादा देखा गया है तथा महिलाओं में शारीरिक कमजोरी विटामिन की कमजोरी के वजह से जल्दी बीमार पड़ने की गुंजाइश को अनुसंधान में पाया गया कहकर इस क्षेत्र के कैंप प्रभारी टी ज्ञानेंद्र रेड्डी से जानकारी लेने के बाद यह पता लगा कि वे लोग 2 महीने से ज्यादा समय से इस क्षेत्र के विभिन्न वार्ड और मोहल्ले में स्वास्थ्य कैंप लगा रहे हैं जहां अधिकतर स्किन डिजीज और बुखार से जुड़ी कमजोरी भी दिखाई कहा जिनको सुचारू रूप से हम दवाई दे रहे हैं जिससे फायदा हो रहा है कहा उन्होंने आगे यह भी कहा कि इनकी आदिवासी खोया कॊंडकोया भाषा को समझने में हम विभाषी व्यक्ति का सहारा लेते हैं जो उनकी भाषा को समझ कर हमें अपनी भाषा में समझता है और लगभग हम लोग हर दिन 15 20 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करके पहाड़ों पर पहुंचते हैं और वहां दवाई देते हैं फिर हमें शाम को फिर पहाड़ से उतरना पड़ता है इस तरह की रोजमर्रा के कामों में रिसर्च फेलो सदस्य ठी ज्ञानेंद्र रेड्डी बताया कि पाडेरु मुख्यालय से कैंप तक की दूरी 70 किलोमीटर रहेगा जहां से सुबह निकल कर उसे गांव में पहुंचकर कैंप लगते हैं फिर शाम को पहाड़ से उतरकर फिर हमारे स्थान पर पहुंचते हैं कहा तथा इनका पीने का पानी स्वयं लेकर जाते हैं और ग्रामीणों को पीने का पानी गर्म करके ठंडा करने के पीने की मस्क भी बताते हैं जो लोग इस नुस्खे को उपयोग कर काफी मददगार है कहा।
ज्ञानेंद्र ने बताया कि इस क्षेत्र में शासकीय योजनाएं अमल करके आदिवासियों तक पहुंचाना और उसको उपयोग में लाने के लिए यह विभाषी व्यक्ति का उपयोग होना जरूरी है तब कहीं वह योजनाएं सफल रहने की पूरी संभावना बनती है कहा उन्होंने आगे बताया कि आदिवासियों की ट्रीटमेंट के लिए हमें सबसे पहले उनके वजन को और ऊंचाई को आकलन करते हुए ब्लड टेस्ट और ब्लड शुगर टेस्ट और रैंडम टेस्ट हीमोग्लोबिन यह पूरी जांच प्रक्रिया होने के बाद ही दवाई देते हैं अब लोगों में यह प्रक्रिया के बाद जो दवाई काम कर रहा है उसे लोगों में जागरूकता बड़ी है और दवाई उपयोग करने के लिए स्वयं आगे आ रहे हैं इसके पहले वे लोग शासकीय दवाई खाने में ज्यादा संतोषजनक नहीं रहते थे लेकिन अब धीरे-धीरे यह इस पर भरोसा कर रहे हैं कहा
ज्ञानेंद्र ने कहा कि उनके बीच काम करने का अनुभव जिंदगी में एक बहुत अच्छा अनुभव है और इस तरह का सेवा करने में भी आनंद आता है कहा करने का अनुभव जिंदगी में एक बहुत अच्छा अनुभव है और इस तरह का सेवा करने में भी आनंद आता है कहा