To get the special blessings of Lord Ganesha, fast on Wednesday

भगवान गणेश जी की विशेष कृपा पाने के लिए करें बुधवार का व्रत

To get the special blessings of Lord Ganesha, fast on Wednesday

To get the special blessings of Lord Ganesha, fast on Wednesday

To get the special blessings of Lord Ganesha, fast on Wednesday- हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक वार अलग-अलग देवी देवताओं को समर्पित है, हर वार का अपना अलग-अलग महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित माना जाता है, कुछ लोग गणेश भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए बुधवार का व्रत भी करते हैं। बुध ग्रह का रंग हरा होता है इसलिए इस दिन हरे  रंग की वस्तुएं दान करना और हरे वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बुधवार के व्रत की शुरुआत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से की जानी चाहिए। लगातार 21 बुधवार ये व्रत रखा जाना चाहिए। इस व्रत के दिन स्नान के बाद हरे रंग के कपड़े पहनने चाहिए और सुबह में भगवान गणपति की पूजा करनी चाहिए। पूजा के अंत में भगवान गणेश जी की आरती अवश्य करें। व्रत का मतलब होता है, धारण करना, अर्थात संकल्प लेना। मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने वाले जातक के जीवन में सुख, शांति और यश बरकरार रहता है. साथ ही उसके अन्न और धन के भंडार कभी खाली नहीं होते हैं।

इस व्रत में नियम, संयम, और संकल्प निहित होता है। व्यक्ति को अपने जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता को प्राप्त करने के लिए संकल्प और नियमों की आवश्यकता पड़ती है। संकल्प से ही संयम जागृत होता है। जितना संकल्प मजबूत होगा, व्यक्ति उतना ही संयमित जीवन जी सकने की ऊर्जा अपने अंदर विकसित कर सकता है। व्रत से हमारे अंत:करण की शुद्धि होती है। व्रत मानसिक शांति की दिशा में एक चमत्कारिक लाभ पहुचाता है। 

बुधवार व्रत कथा: बुधवार के व्रत की कथा पौराणिक ग्रंथों में निहित है। बहुत समय पहले की बात है कि एक साहूकार का नया-नया विवाह हुआ था। उसकी पत्नी मायके गयी हुई थी। नया-नया विवाह था, साहूकार का परिवार भी कुछ खास बड़ा नहीं था, जो रिश्तेदार थे उनके घर बहुत दूर थे। अब साहूकार को अकेलापन खाये जा रहा था। उससे रहा न गया और साहूकार जा पंहुचा ससुराल। साहूकार की बड़ी आवभगत हुई लेकिन ससुराल में तो अपनी पत्नी से खुलकर बात करना दूर सूरत देखना तक मुश्किल हो रहा था।

अगले ही दिन साहूकार ने कह दिया कि विदाई की तैयारी कर लीजिये हमें निकलना है। अब संयोगवश वह दिन था बुधवार का, सास-ससुर ने समझाने का प्रयास किया कि बेटा आज बुधवार का दिन है इस दिन बेटी की विदाई नहीं करने का रिवाज़ है। लेकिन साहूकार नहीं माना और कहा मैं इन सब बातों को नहीं मानता आप हमें जाने का आशीर्वाद दीजिये। अब अपने दामाद के आगे सास-ससुर की कहां चलने वाली थी, बेटी की विदाई कर दी गई।

अब चलते-चलते रास्ते में साहूकार की पत्नी को प्यास लग जाती है। साहूकार जैसे पानी लेने के लिये जाता है तो वापस आते ही उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहता। अपने ही हमशक्ल को गाड़ी में पत्नी की बगल में बैठे देखता है। उसकी पत्नी भी एक शक्ल के दो-दो व्यक्तियों को देखकर परेशानी में पड़ गई कि उसका पति कौन सा है। जैसे ही साहूकार ने पत्नी के पास बैठे व्यक्ति से पूछा कि वह कौन है तो पलट कर जवाब दिया कि भैया मैं तो फलां नगर का साहूकार हूं और फलां नगर से अपनी पत्नी को लेकर आ रहा हूं तुम बताओ तुम कौन हो जो मेरा वेश धर कर यहां मुझसे सवाल-जबाब कर रहे हो, ऐसे बहस बाजी करते-करते दोनों में झगड़ा बढ़ गया।

झगड़े को देखते हुए राज्य के सिपाही वहां आ पंहुचे और साहूकार को पकड़ लिया। अब सिपाही भी चक्कर में प? गए कि दोनों की शक्ल तो एक समान है। उन्होंने साहूकार की पत्नी से पूछा कि उसका पति इनमें से कौन सा है, वह बेचारी क्या जवाब देती। तब साहूकार ने हाथ जोड़ लिये और भगवान से विनती करने लगा कि हे भगवन यह आपकी क्या माया है। तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख याद कर कुछ देर पहले ही तूने अपने सास-ससुर की आज्ञा न मानकर भगवान बुध का अपमान किया और बुधवार के दिन तू अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा जबकि तुझे इस दिन गमन नहीं करना चाहिये था।

 यह स्वयं बुध देव हैं जो तुम्हें सबक सिखाने के लिये तुम्हारे वेश में हैं। तब साहूकार ने कान पकड़ कर माफी मांगी और आगे से कभी भी ऐसा न करने का वचन किया और बुधवार को नियमपूर्वक व्रत पालन करने का संकल्प किया। तब जाकर साहूकार के रूप में प्रकट हुए बुध देवता अंतर्ध्यान हुए और साहूकार अपनी पत्नी को लेकर घर जा सका। इस घटना के पश्चात साहूकार और उसकी पत्नी दोनों नियमित रूप से बुधवार का व्रत पालन करने लगे।

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मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस कथा को कहता है या सुनता है या फिर पढ़ता है उसे बुधवार के दिन यात्रा करने से किसी तरह का दोष नहीं लगता और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। बुध ग्रह की शांति और सर्व-सुख के इच्छुक स्त्री-पुरुष बुधवार के इस व्रत कर सकते हैं। ज्ञान, बुद्धि, कार्य, व्यापार आदि में उन्नति के लिये भी बुधवार का व्रत बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है। बुधवार के दिन बुद्ध देवता के साथ-साथ भगवान गणेश जी की पूजा का विधान भी है। 

बुधवार व्रत विधि

प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में उठें और इसके बाद अपनी दिनचर्या के काम को पूर्ण कर, गंगा जल का छिडक़ाव करके पूरे घर को शुद्ध करना चाहिए। तांबे के पात्र में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। पूजा की जगह पर पूर्व दिशा में मुख करना शुभ होता है, संभव न हो तो उत्तर दिशा की ओर चेहरा कर पूजा की शुरुआत करें, आसन पर बैठें और भगवान गणेश की फूल, धूप, दीप, कपूर, चंदन से पूजा करें, दूर्वा अर्पित करना शुभ माना जाता है, पूजा के अंत में गणेश जी को मोदन अर्पित करें, आखिर में मन ही मन भगवान का ध्यान करते हुए ''? गं गणपतये नम:'' मंत्र का 108 बार जाप करें।शाम को पूरे दिन के उपवास के बाद एक बार फिर भगवान गणेश की पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनी जाती है। फिर आरती की जानी चाहिए। सूर्यास्त के बाद भगवान को अगरबत्ती, दीप, गुड़, भट्ट (उबला हुआ चावल), दही का चढ़ावा दिया जाना चाहिए और उसके बाद प्रसाद वितरित किया जाता है। अंत में प्रसाद को स्वयं खाना चाहिए।