आरक्षण कब तक जरूरी!
- By Krishna --
- Monday, 14 Nov, 2022
Till when is reservation necessary?
Till when is reservation necessary? : देश में अब गरीब सवर्णों की भी सुनी जाने लगी है तो यह वक्त की मांग भी है। गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण जरूरी (Reservation necessary for poor upper castes) है। इसके साथ ही आरक्षण के समग्र आधिकारिक स्वरूप में फिर बदलाव की शुरुआत हो जाएगी। हालांकि, यह महत्वपूर्ण फैसला सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से किया है। तीन न्यायमूर्ति इस व्यवस्था के पक्ष में थे, जबकि प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र ने इस आरक्षण के खिलाफ मत देते हुए इसे अवैध और भेदभावपूर्ण करार दिया है। पांच जजों की पीठ की ओर से बहुमत से आए इस फैसले के बाद सवर्ण गरीबों को दस प्रतिशत आरक्षण मिलना जारी रहेगा। अभी तक संशय बना हुआ था कि गरीब सवर्णों को आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं, क्योंकि आरक्षण की व्यवस्था तो अनुसूचित जातियों-जनजातियों व अन्य पिछड़ी जातियों के लिए हुई थी। संसद ने 103वें संविधान संशोधन के जरिये 2019 में आर्थिक रूप से पिछड़ों (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षण देने के लिए कानून बनाया था। सरकार के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में चुनौती दी गई थी, जिस पर अब फैसला आया है और इसका व्यापक सामाजिक-राजनीतिक असर भी विभिन्न राज्यों में दिखेगा। जाहिर है, जब संसद ने कानून बना दिया है, तो उस कानून को चुनौती देना आसान नहीं है। फिर भी दो न्यायमूर्तियों की राय विपरीत रही है, यह वास्तव में संकेत है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण देने का मामला आगामी दिनों में भी गरम रहेगा।
क्या आरक्षण (Reservation) से असंतोष को दूर किया जा सकता है? क्या आरक्षण की बढ़ती मांग को खारिज किया जा सकता है? इसी फैसले में न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा है, यह विचार करने की जरूरत है कि आरक्षण कब तक जरूरी है? उन्होंने यह भी कहा कि गैर-बराबरी को दूर करने के लिए आरक्षण कोई अंतिम समाधान नहीं है। यह सिर्फ एक शुरुआत है। मतलब आरक्षण का सवाल बहुत व्यापक है और हमें इसके लाभ-हानि पर विचार करते हुए आगे बढऩा चाहिए। पिछड़ी जातियों, जनजातियों और गरीब सवर्णों के बीच भी जो वास्तविक वंचित हैं, उनको हम लाभ पहुंचा पाएं, तो इससे बेहतर कुछ नहीं। अपने देश में अभी भी वंचितों की बड़ी संख्या है, जिसे मदद की जरूरत है। सरकारों को अपने स्तर पर कोशिश करनी चाहिए कि किसी वर्ग को कागज पर आरक्षण देने से ज्यादा जरूरी है, उस वर्ग के जरूरतमंदों तक आरक्षण को पहुंचाना, लेकिन क्या ऐसा हो रहा है?
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के इस अहम फैसले पर राजनीति भी तेज हो गई है। अधिकतर राजनीतिक पार्टियों ने इस फैसले का स्वागत किया है, तो वहीं दलित समुदाय (Dalit community) के कुछ बुद्धिजीवियों के स्वर प्रतिकूल हैं। आखिर नाराजगी कहां है और क्यों है? दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय पहले आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाने से इनकार कर चुका है। ओबीसी वर्ग (OBC Category) को जब ज्यादा आरक्षण देने की बात आती है, तब इंदिरा साहनी मामले में लगी 50 प्रतिशत की ऊपरी सीमा का हवाला दे दिया जाता है, लेकिन जब 10 प्रतिशत आरक्षण गरीब सवर्णों को मिलेगा, तब आरक्षण की सीमा वैसे ही 60 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। इसका सीधा सा अर्थ है, 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा का अब कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं रह गया है। ऐसे में, आबादी के अनुपात में अन्य पिछड़ी जातियों या ओबीसी को ज्यादा आरक्षण देने के बारे में जरूर सोचना चाहिए। राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी पिछड़ी जाति या समाज में यह संदेश न जाए कि गरीब सवर्णों को तो आरक्षण मिलने लगा, पर हमें नहीं मिला।
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