Editorial: तीन नए कानूनों ने देश में न्याय की उम्मीद को प्रबल किया
- By Habib --
- Monday, 01 Jul, 2024

Three new laws
Three new laws strengthened the hope for justice in the country: पहली जुलाई से देश में तीन नए कानूनों के लागू होने से बहुत बड़ा परिवर्तन संभव हो चुका है। इन तीन नए कानूनों ने देश में इस धारणा को स्थापित किया है कि अब न पुलिस की चलेगी और न ही अपराधियों की, अपितु अपराध होने की सूरत में सबकुछ न्यायपूर्ण तरीके से डिजिटल प्रक्रिया के तहत होगा। अंग्रेजों के बनाए कानूनों की आड़ में पुलिस जिस प्रकार से काम करती आई है, अब उसके लिए अपराधियों को बचाना मुश्किल होगा। पीड़ित और प्रताड़ित के लिए नए कानून संबल बनकर सामने आएंगे, इसकी आशा है।
निश्चित रूप से इन कानूनों के जरिये देश में न्यायिक प्रणाली का स्वरूप पूरी तरह से बदलता नजर आ रहा है। क्या इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी कामयाबी नहीं कहा जाएगा कि पूर्ण बहुमत की सरकार के रहते वे इन तीन नए कानूनों को अमलीजामा पहना सके। हालांकि इन तीन कानूनों पर सवाल भी उठ रहे हैं, जिनका समाधान आवश्यक है, हालांकि किसी भी बदलाव की स्थिति में उसका विरोध होता ही है। अंग्रेजों के समय में बनी भारतीय दंड संहिता का स्वरूप स्वदेशी नहीं था और उसमें सब कुछ छिपा हुआ प्रतीत हो रहा था। हालांकि नए कानूनों में तीनों संहिताओं का स्वरूप आज के अपराध एवं बदले हुए माहौल के अनुसार है।
इन कानूनों को लेकर न्यायपालिका से जुड़े लोगों की विभिन्न राय है। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नए कानूनों की जिस प्रकार से प्रशंसा की है, उससे देश में नए विचार सामने आ रहे हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इन कानूनों को समाज के लिए ऐतिहासिक अवसर बताया है। उनका यह भी कहना है कि देश आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए तैयार है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि नए कानून तभी सफल होंगे, जब वे लोग इन्हें अपनाएंगे, जिन पर इन्हें लागू करने का जिम्मा है। वास्तव में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का यह कहना सर्वथा उचित ही है कि नए कानून तभी सफल होंगे, जब इनकी व्यापक स्वीकारोक्ति होगी। हालांकि कानून की उपयोगिता एक समाज के लिए कभी कम नहीं होती, लेकिन यह भी तय है कि कानूनों को सभ्य समाज में भी सहज भाव से स्वीकार नहीं किया जाता, कानून तभी प्रभावी होता है, जब उसे लागू कराया जाता है। इस समय देश के अंदर तमाम ऐसे कानून हैं, जोकि पुराने पड़ चुके हैं और उनमें सजा का निर्धारण भी संशयपूर्ण होता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा है कि नए कानूनों के कारण देश ने आपराधिक न्याय संबंधी नए कानूनी ढांचे के नूतन युग में प्रवेश किया है। इन कानूनों में पीड़ितों के हितों की रक्षा के लिए और अपराधों की जांच एवं अभियोजन में कुशलता के लिए जरूरी सुधार किए गए हैं। वास्तव में तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के जरिये भारत उस दौर में प्रवेश करने जा रहा है, जब उसकी न्याय प्रणाली बेहद तेज, सुगम और प्रभावी होगी।
यह बात समझने की है कि आखिर भारतीय अदालती प्रणाली इतनी मंद गति कार्य क्यों करती है। जब हम अदालत में लाखों केस के लंबित होने और कई पीढ़ी न्याय की प्रतीक्षा में बैठी होने जैसी बातें सुनते हैं तो क्यों नहीं इस पर विचार करते कि इस प्रणाली को बदले जाने की जरूरत है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब मोदी सरकार ने इस दिशा में सोचा और नए कानूनों को संसद से पारित कराया। एक देश, एक समाज की जीवन प्रणाली इतनी सुगम क्यों नहीं होनी चाहिए कि अगर अपराध घटता है तो आरोपी की तुरंत पहचान हो और अदालत के कठघरे में पेश उस पर सजा निर्धारित की जाए और आगे बढ़ जाए। बेशक, यह कार्य अदालतों का ही है कि निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए वहीं अपराधी बच न पाए। हालांकि होता यह है कि इसी अदालती प्रणाली में खामियों के जरिये दोषी बच निकलता है और निर्दोष को सजा हो जाती है।
गौरतलब है कि नए कानूनों में प्रावधान है कि किसी भी मामले का निपटारा पुलिस को तीन साल के अंदर करना ही होगा। वहीं दुष्कर्म और पोक्सो एक्ट के तहत जांच दो माह के अंदर पूरी करनी होगी। कानून के तहत पीड़ित को 90 दिनों के अंदर अपने मामले की प्रगति रिपोर्ट हासिल करने का अधिकार होगा। केवल पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर कोई केस रद्द नहीं किया जा सकेगा। शिकायत देने के तीन दिन के अंदर एफआईआर दर्ज होगी। दुष्कर्म एवं सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में पहले से ज्यादा सख्ती का प्रावधान किया गया है। इससे संभव है कि महिलाओं के प्रति अपराधों में कमी आएगी और अपराधी डरेंगे। वास्तव में कानून और अपराध के बीच क्षण भर की दूरी होती है। मानवीय प्रवृत्ति कानूनों के अनुसार जीने की नहीं होती अपितु इसे मजबूरी में स्वीकार किया जाता है, हालांकि ऐसी मनोवृत्ति पर रोक लगाने के लिए न्याय तंत्र का इतना प्रभावी होना जरूरी है कि अपराधी को लगे कि अपराध घटने के तुरंत बाद उसे दंड मिलना तय है। इससे समाज में बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
यह भी पढ़ें:
Editorial:संसद में पक्ष-विपक्ष को साथ चलने की निभानी होगी परंपरा
Editorial: चंडीगढ़ में 24 घंटे दुकानें खोलने का निर्णय सही, पर सुरक्षा जरूरी
Editorial: नेता विपक्ष के रूप में राहुल गांधी की भूमिका का स्वागत