जीवन मे मोबाईल का प्रयोग कैसे कम करे इस बात पर सोच विचार करे: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

जीवन मे मोबाईल का प्रयोग कैसे कम करे इस बात पर सोच विचार करे: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

Use of Mobile in Life

जीवन मे मोबाईल का प्रयोग कैसे कम करे इस बात पर सोच विचार करे: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

चंडीगढ, 18 सिंतबर: इन दिनों स्मार्टफोन व मोबाइल फोन लोगों पर हावी होते जा रहे हैं। युवा ही नहीं, बल्कि बच्चों से लेकर बड़ों तक को इसकी लत लग चुकी है। ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि कहीं आप स्मार्टफोन का जरूरत से  ज्यादा इस्तेमाल कर अपना समय तो बर्बाद नहीं कर रहे हैं? स्मार्टफोन की सेटिंग्स में जाकर नोटिफिकेशन बंद कर दें। इससे बार-बार आपका ध्यान फोन की नोटिफिकेशन बीप बजने पर नहीं जाएगा। यदि किसी को आपसे कोई जरूरी काम होगा तो वह आपको सीधे कॉल कर लेगा। दिन के कुछ घंटे आप अपना डाटा ऑफ़ रखें यानी कि इंटरनेट बंद रखें।  ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन तुलसीसभागार मे विशेष कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा घर पर अपने बडे बुजुर्गाे के पास समय बिताये, बच्चो को ज्ञानवर्धक कहानियां सुनाये उनके साथ खेल खेलकर आप मोबाइल से दूरी बना सकते है। अपने फोन को चेक करने का समय निश्चित करें, उसी दौरान आप सभी अपडेट्स देख लें, बार-बार देखने से भी आपके काम की ज्यादा अपडेट्स आ जाएगी, ऐसा तो होने से रहा पक्का मन बना लें कि सुबह उठते ही कुछ घंटे फोन से दूर रहेंगे और रात को सोने के कुछ घंटे पहले ही फोन को दूर रख देंगे। जब आप फोन से थोड़ी दूरी बनाकर चलेंगे तो स्वत: ही आपका मन दूसरे पसंदीदा कामों में लगने लगेगा, साथ ही आप कई अन्य तरह की परेशानियों से भी बच जाएंगे।

मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया जीव का अगला भव और वर्तमान जीवन को सुधारना चाहते है तो संतो की दो मिनट भी संगती कर लेना ताकि जीवन सुवाषित हो सके। बच्चों पर अल्पायु में ही संस्कार कैसे करे? संस्कार की नींव अर्थात अनुशासन। प्रत्येक कृतिके यदि यदि अनुशासन, नियम नहीं बनाए, तो वह कृति अपूर्ण होती है। प्रात: उठने से लेकर रात्रि सोने तक अनुशासन का अचूकता से पालन करें, अध्यात्म में शीघ्र प्रगति होती हैं। उसके लिए बाल्यावस्था में ही अनुशासन का संस्कार बालमनपर अंकित करना चाहिए। देखने में आ रहा है कि परिवारों में बच्चों से भावनात्मक रिश्ते छिन रहे हैं। एक बड़ी संख्या में माता-पिता को आर्थिक दबाव, कारोबार और भौतिकता से ही फुर्सत नहीं है। बच्चों को भौतिकतावादी सुविधा,ं देकर आज वे अपनी सामाजिक भूमिका की इतिश्री समझ रहे हैं। लिहाजा बच्चे या तो घर की चहारदीवारी मे बंद होकर तकनीक के खिलौने से खेलते हैं या फिर कंप्यूटर एवं वीडियो के पर्दे पर किसी चरित्र को मारने का आनंद उठाते हैं।