There should be no politics on the inauguration of Ram temple.

Editorial: राम मंदिर उद्घाटन पर न हो राजनीति, यह क्षण सभी के लिए पूजनीय

Edit3

There should be no politics on the inauguration of Ram temple

भगवान राम के अयोध्या में बन रहे मंदिर को लेकर जिस प्रकार की राजनीति देश में चल रही है, वह निश्चित रूप से चिंताजनक एवं अप्रिय है। इस समय कांग्रेस समेत दूसरे कई राजनीतिक दलों ने 22 जनवरी को होने वाले श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने से इनकार कर दिया है। इन विपक्षी दलों ने मंदिर निर्माण कमेटी की ओर से भेजे गए निमंत्रण पत्र को ठुकरा दिया है। वास्तव में इन राजनीतिक दलों के ऐसा किए जाने पर कोई आश्चर्य भी नहीं होता।  उनका यह रवैया उस समय से कायम है, जब राम मंदिर निर्माण की देश में अलख जगनी शुरू हुई थी।

आखिर ऐसा क्यों न होता, जब सनातन धर्म के आराध्य भगवान श्री राम के अयोध्या में जन्म स्थान पर मंदिर का निर्माण करने की मांग उठी। उस स्थल पर एक अन्य धर्म का विवादित ढांचा था, जिसे बाद में राम भक्तों ने अपनी श्रद्धा के प्रहार से ध्वस्त कर दिया। यह जग प्रसिद्ध है कि उस स्थान पर वह विवादित ढांचा कैसे कायम हुआ। लेकिन सही को कौन स्वीकारता है, जब तक उसके लिए लड़ाई न लड़ी जाए। भाजपा की अनुषंगी धार्मिक इकाइयों ने इस मांग को उठाया और फिर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इस अलख को पूरे देश में जगाया कि उस विवादित ढांचे की जगह एक भव्य राम मंदिर बने। बाद में यह मामला छोटी अदालतों से होता हुआ सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा और माननीय अदालत ने उस जगह को सनातनियों को सौंप दिया।

गौरतलब है कि जब राम मंदिर के निर्माण की मांग को लेकर यात्रा निकाली जा रही थी तो इन विपक्षी दलों और उनके नेताओं ने उस यात्रा को रोकने और उसे खंडित करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। उस समय भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में रोका गया और फिर यूपी में आने के बाद भी उसके पहिये थाम दिए गए। यह भी कितना आश्चर्यजनक है कि सर्वोच्च न्यायालय में राम मंदिर को लेकर सुनवाई के दौरान कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दलों की ओर से भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठाए गए थे। अदालत के अंदर ऐसे तर्क दिए गए थे, और ऐसी बातें कही गई थी, जिससे हिंदू धर्म का अस्तित्व ही नकार दिया गया था। अब जब श्री राम मंदिर बनकर तैयार है और वहां भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होनी है, तब इन राजनीतिक दलों की ओर से वहां जाना अपने आप में एक सवाल होगा ही। आखिर किस मुंह से ये नेता वहां जा भी सकते हैं।

कांग्रेस के नेताओं ने शुरू से ही ऐसी धर्मनिरपेक्षता का मुंहखौटा लगा रखा है, जिसे वे अपने हित में उतारते और लगाते रहते हैं। देश की सर्वाधिक आबादी हिंदू धर्म को मानने वाली है, क्या यह कोई अधर्म है। आखिर जिस धर्म में ईश्वर ने किसी को जन्म दे दिया, उसका अनुषंगी होना अपराध है, उसके देवी-देवताओं का पूजन करना अपराध है। फिर आखिर क्यों विपक्ष के नेता अपने हित के लिए हिंदू धर्म की अनदेखी और उसका अपमान करते हुए अन्य धर्म को इतना महत्व देते हुए धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते हैं। आजकल राम मंदिर को लेकर जिस प्रकार की बहस, बयानबाजी और तर्क-वितर्क दिए जा रहे हैं, यह सब तब नहीं होता, जब कोई मस्जिद बन रही होती है या फिर कोई अन्य धार्मिक स्थल। उन स्थलों को पूरा आदर मान देते हुए स्वीकार किया जाता है, लेकिन अब राम मंदिर के लिए राजनीति करते हुए अशोभनीय बयान दिए जा रहे हैं।

कांग्रेस वह पार्टी है, जोकि अपनी मरणासन्न अवस्था से बाहर निकली है, लेकिन यह विचित्र है कि इसके बावजूद वे देश में बदलाव को नहीं अपना सकी है। उसके नेताओं की ओर से देश के अनेक हिंदू धार्मिक स्थलों की यात्रा करके कोई संदेश देने की कोशिश की गई है, लेकिन इसके बावजूद यह स्वीकार्य नहीं हुआ है। हालांकि अब राम मंदिर को लेकर जिस प्रकार से आधिकारिक रूप से पार्टी नेताओं की ओर से इसे भाजपा और आरएसएस का इवेंट बताया गया है, वह अशोभनीय है। निश्चित रूप से भाजपा ने इस दिन के लिए साधना की है और यूपी में इस समय उसकी सरकार है तो वह इसका श्रेय लेना चाहेगी। लेकिन यह अवसर राजनीति से कहीं ज्यादा देश के आराध्य भगवान राम के मंदिर के उद्घाटन का है। इस समय अगर पक्ष-विपक्ष के नेता वहां उपस्थित होंगे तो इससे पूरे देश एवं विश्व में एकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश जाएगा।

वैसे भी राम सबके हैं, उनकी शिक्षाओं और आदर्शों को अपनाकर कोई भी अपने जीवन को धन्य कर सकता है। राजनीति न करके विनीत भाव से इस अवसर पर प्रार्थना करना सभी के लिए मंगलमय होगा। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: बंगाल में टीएमसी को लाना चाहिए अपने रवैये में सुधार

Editorial:कड़कती ठंड का कहर जारी, अभी बचाव ही एकमात्र समाधान

Editorial: ट्रक चालकों की हड़ताल से देश में सप्लाई हो रही प्रभावित