नववर्ष में हों नए लक्ष्य, समाज और राजनीति भी बदले दिशा
- By Habib --
- Saturday, 31 Dec, 2022
Have new goals in the new year
Have new goals in the new year नववर्ष 2023 का शुभारंभ हो चुका है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष से भी व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया को बहुत उम्मीदें हैं। वर्ष का बदलना परिवर्तन का प्रतीक है और आशा यह की जाती है कि पुरातन को परिवर्तित कर नए का अनुसंधान होगा। भारतीय समाज के संदर्भ में अगर विचार करें तो बीता वर्ष देश के लिए व्यापक परिवर्तनकारी साबित हुआ है। बीते वर्ष में समाज ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं, जोकि नकारात्मक और सकारात्मक दोनों हैं। हालांकि चर्चा ज्यादातर नकारात्मक की रही है।
समाज और राजनीति Society and Politics दोनों आपस गुंथे हुए हैं, भारतीय समाज पर राजनीति की अमिट छाया है। ऐसे में राजनीति में आए फेरबदल का व्यापक असर समाज पर रहा है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि हमें ऐसे परिवर्तन की जरूरत है जो कि स्थाई और सुमंगलकारी हो। बेशक, ऐसे परिवर्तन की परिभाषा अपनी-अपनी हो सकती है, लेकिन यह उम्मीद सभी से की जानी चाहिए कि वह सही दिशा में आगे बढ़ते हुए स्वयं के, अपने परिवार के, समाज के और देश को आगे लेकर जाएगा।
अगर बीते हुए कल पर एक नजर डालें तो यह समाज और राजनीति में इस वर्ष भारी उथल-पुथल मचाई है। समाज में भ्रष्टाचार, महिला विरोधी अपराध, हिंसा, धार्मिक उन्माद, जातीय दंगे-फसाद, राज्यों के बीच मतभेद, राजनेताओं के विचित्र बयान जैसे अनेक विषय हैं, जिन्होंने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वास्तव में यही वह समाज है, जिसे हम अपने आसपास चाहते हैं। वहीं राजनीतिक मोर्चे पर राजनीतिक दलों के बीच कटुता अब हद दर्जे की हो चुकी है। पश्चिम बंगाल इसका उदाहरण है, जहां पर एक राजनीतिक दल ने खुद को राज्य का सर्वेसर्वा मान लिया। क्या यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही है, भारत राज्यों का संघ है, इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक राज्य की अपनी पहचान है लेकिन सभी को एक ध्वज तिरंगे के नीचे ही चलना होगा।
एक राजनीतिक दल की ओर से यात्रा निकाली जा रही है, जिसमें बार-बार यह आरोप लगाया जा रहा है कि देश में नफरत फैलाई जा रही है। अगर कोई अपने प्रयासों से नहीं जीत पा रहा है तो वह किसी दूसरे की सोच और विचार को नफरत पैदा करने वाला बताएगा? अब वैचारिक कट्टरता इस हद तक बढ़ चुकी है कि अगर किसी राजकीय समारोह में जय श्री राम के नारे लग जाते हैं तो संबंधित राज्य की मुख्यमंत्री नाराज होकर कार्यक्रम से दूरी बना लेती हैं। और उन्हें मनाने के लिए राज्यपाल जोकि राज्य का संवैधानिक मुखिया है, हाथ बांधे उनके सामने खड़ा रहता है।
राजनीति में सहिष्णुता खत्म हो गई है, अब राष्ट्रीय हित ज्यादा आवश्यक नहीं समझे जा रहे। इस बार संसद का शीतकालीन सत्र एक सप्ताह पहले खत्म हो गया, यह जितनी खामोशी से हुआ, उसका कहीं जिक्र भी नजर नहीं आया। सवाल यह है कि अगर पक्ष और विपक्ष मिलकर देश की समस्याओं पर विचार करने को प्रतिबद्ध होते तो इस सत्र को आगे बढ़ाया जा सकता था। आजकल चाहे संसद हो या फिर विधानसभाओं के सत्र, कम दिन ही चलते हैं। इस दौरान सरकार जहां अपना बचाव करने में ही समय निकाल देती है, वहीं विपक्ष हंगामा करके अपने मन की मुराद पूरी करने में बीता देता है।
बीते वर्ष यह सब हो चुका है। नववर्ष में हमें इसकी आशा और उम्मीद करनी चाहिए कि राजनीति में यह बदलाव आएगा कि वैचारिक कटुता खत्म होगी और राष्ट्रीय महत्व के विषयों को लेकर सभी एकमत और एकजुट होकर काम करेंगे। बीता वर्ष प्रत्येक के लिए एक सबक छोड़कर जाता है, यह चाहे फिर सोच का हो, कर्म का हो। बीते वर्ष संचार के साधन यानी मीडिया पर भी पक्षपाती होने के आरोप लगे हैं।
हालांकि विचार करने की बात यह है कि आखिर अब निष्पक्षता रह कहां गई है। क्या समाज निष्पक्ष है, समाज में आज कोई भी सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस नहीं कर पा रहा है। अपने निजी स्वार्थ देखे जाते हैं, मानव का यह विचित्र विकास है कि वह उन मूलभूत विचारों और सोच को बहुत पीछे छोड़ आया है, जिनके जरिये वह मानव कहलाने का हकदार है। अब धन और पद बल ही सबकुछ है और उसकी प्राप्ति के लिए प्रत्येक सद्गुण को बलि किया जा रहा है। आशा की जानी चाहिए कि इसमें सुधार होगा, सच को जिंदा रखा जाना जरूरी है। एक देश का विकास तब सुनिश्चित होता है, जब उसके नागरिकों की सोच विकसित होती है। देश में आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
देश के लिए यह उपलब्धियों के गुणगान का ऐतिहासिक समय भी है, क्योंकि अंग्रेजी शासनकाल से मुक्ति के समय यह कहा गया था कि भारतीय आजादी को संभाल नहीं सकेंगे और यह देश फिर बंट जाएगा। लेकिन हम भारतीयों ने अपने आपसी मतभेदों के बावजूद देश को एक रखा है और उसे आगे बढ़ाया है। देश आज भारी अकुलाहट से गुजर रहा है, क्योंकि औपनिवेशिक सोच अब भी हावी है। लेकिन समाज, शिक्षा, संस्कृति और आचार-विचारों में हमें नूतनता लाने की आवश्यकता है।
कोरोना काल Corona period में देश ने यह सीखा है कि प्राचीन भारतीय पद्धतियां किस प्रकार हितकारी साबित हुई हैं। आज देश और दुनिया के समक्ष स्वास्थ्य की चुनौती सबसे गंभीर है। नए वर्ष में प्रत्येक का एजेंडा अपने समाज, देश और दुनिया को कुछ सार्थक देने का होना चाहिए। पर्यावरण की संभाल, ज्यादा से ज्यादा पौधों को लगाना, देसी बीज और जैविक खेती को अमल में लाना, खाद्य पदार्थों में मिलावट बंद हो, भूख-बेरोजगारी, जनसंख्या का असंतुलन रूके, जरूरतमंदों के लिए ज्यादा से ज्यादा कल्याण योजनाएं बनें ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा में जगह मिले।
नववर्ष नया एजेंडा निर्धारित करने का बेहतरीन अवसर है। देश में प्रत्येक क्षेत्र का विकास समयबद्ध होना जरूरी है। इसके लिए जहां दृढ़ अनुशासित होना होगा वहीं देशकाल और समाज के प्रति निष्ठा भाव से काम करना होगा। आशा की जानी चाहिए कि देश नए साल में उन सभी लक्ष्यों को हासिल कर लेगा, जोकि उसकी जरूरत है। एक समय देश विश्व गुरु की भूमिका में था और आज उस भूमिका का निर्वाह उसे फिर करना होगा।
-नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
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