So much pollution in the air of cities

Editorial: शहरों की हवा में इतना प्रदूषण, सांस लेना भी हुआ दुश्वार

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So much pollution in the air of cities

So much pollution in the air of cities: दीपावली के पर्व को अभी कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन हरियाणा और पंजाब में प्रदूषण जिस प्रकार से बढ़ रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। हरियाणा में चार शहर ऐसे हैं, जोकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषित हैं। सोनीपत देश में तीसरे स्थान पर पहुंच चुका है और सात शहरों में सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही है। इसी प्रकार पंजाब में रविवार को 1068 जगह पर पराली जलाने से हालात बेहद खराब हो गए हैं। राज्य में वायु की गुणवत्ता लगातार कम हो रही है। रविवार के हालात तो ऐसे रहे जब एयर क्वालिटी इंडेक्स 331 बहुत खराब कैटेगरी में दर्ज किया गया है। ऐसी भी रिपोर्ट है कि संगरूर में सबसे ज्यादा पराली जलाई गई।

हरियाणा और पंजाब में यह सीजन धान की कटाई का होता है, हालांकि अब ज्यादातर जगह धान कट चुका है और खेतों की सफाई की जा रही है। किसानों के लिए पराली की सफाई का सबसे उपयुक्त जरिया यही नजर आता है कि उसे खेत में ही जला दिया जाए। हालांकि इससे पर्यावरण को और मानव स्वास्थ्य को जो नुकसान पहुंचता है, वह भीषण होता है। दिल्ली में आजकल प्रदूषण के विरुद्ध युद्ध जारी है, जोकि उचित है। दिल्ली इन दिनों में प्रदूषण की सर्वाधिक मार झेलती है। दिल्ली में इस समय कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। इसके बाद केजरीवाल सरकार ने एक नवंबर से राज्य में सिर्फ इलेक्ट्रिक, सीएनजी एवं बीएस-6 बसों को ही प्रवेश की अनुमति देने का फैसला किया है। वास्तव में यह वक्त की मांग है, लेकिन इस तरह के फैसले अल्पकालीन ही कहे जाएंगे, जरूरत दीर्घकालिक उपायों की है।

पंजाब में पराली जलने के मामलों को लेकर बीते दिनों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने पंजाब के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी थी। राज्य सरकार की ओर से पराली के प्रबंधन के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं, लेकिन किसानों की मनमर्जी बंद नहीं हो रही।

एनजीटी की ओर से कहा गया है कि अमृतसर, तरनतारन आदि जिलों में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले इस बार 63 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। एनजीटी की खंडपीठ का यह भी कहना है कि किसानों का पक्ष भी लिया गया है, जिसमें उनका कहना है कि वे खुद पराली जलाना नहीं चाहते, लेकिन उन्हें इसका विकल्प नजर नहीं आता। अब बेशक, एनजीटी की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि पराली जलाने के मामले बढ़े हैं, लेकिन पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने रिपोर्ट दी है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है।  

वास्तव में अधिकारियों को जमीनी हकीकत के मुताबिक अपनी रिपोर्ट बनानी होगी। यह सच है कि सभी किसान पराली जलाने में शामिल नहीं होते, लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर के पास इसका कोई समुचित उपाय नहीं है कि पराली का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। वे उसे न अपने घर ले जा सकते हैं और न ही उसे बेचने आदि का प्रावधान है, तब उसके निपटान का एकमात्र उपाय यही बचता है कि खेत में उसे आग लगा दी जाए।

हरियाणा के आसमान में आजकल धुंध जैसा वातावरण बना हुआ है, मौसम विज्ञानी कह रहे हैं कि इस समय हवा की गति नाममात्र की है। तापमान में ठंड बन रही है, इस वजह से प्रदूषण फैलाने वाले कण ऊपर नहीं बढ़ रहे। जाहिर है, यह कोहरा प्राकृतिक नहीं है, अपितु प्रदूषण की वजह से है। हालांकि महज पराली जलाने से यह समस्या पैदा नहीं हुई है, इसका कारण खुले में कचरा जलाने, फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकल रहा धुआं भी प्रदूषण बढ़ा रहा है। हरियाणा सरकार की ओर से इस संबंध में उच्च स्तरीय स्तर पर निगरानी तंत्र गठित किया गया है। खुद मुख्य सचिव ने इस संबंध में बैठक की है और उन लोगों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं जोकि पराली जला रहे हैं। पराली मामले को लेकर पंजाब एवं हरियाणा में वाद-विवाद प्रतियोगिता भी होती है, जिसमें दोनों राज्यों की सरकारें एक-दूसरे के यहां पराली जलने की शिकायत करती हैं।

वास्तव में प्रदूषण रोकने की कवायद फाइलों से बाहर आकर जन अभियान बननी चाहिए। पर्यावरण संरक्षण केवल मात्र सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है, यह हर नागरिक की भी आवश्यकता है। पराली जलाना एक बहुत बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा शहरों में हो रहे प्रदूषण की रोकथाम भी जरूरी है, शहरों में फैक्ट्रियों से निरंतर जहरीला धुआं निकलता रहता है, हालांकि बात सिर्फ पराली जलाने की होती है। पराली का धुआं शायद ही इतना जहरीला हो, जितना की फैक्ट्रियों का धुआं। राज्य सरकारों को प्रदूषण रोकथाम के लिए प्रभावी कदम निरंतर उठाने होंगे।

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