There is a need to enact concrete laws against the perpetrators of heinous acts.
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घृणित कृत्यों वाले अपराधियों के खिलाफ ठोस कानून बनाने की जरूरत

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United Nations chief Antonio Guterres: संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस का यह बयान कि हर 11 मिनट में दुनिया में एक महिला की हत्या उसके करीबी साथी या परिवार के सदस्य द्वारा कर दी जाती है, बिल्कुल सही और हालात की भयावहता को जाहिर करने वाला है। आज विश्व भर में महिलाओं के प्रति अत्याचार अपने चरम पर पहुंचते दिख रहे हैं। तालिबानी संस्कृति दुनिया के हर देश में मुखरता दिखा रही है। ईरान में अगर एक महिला बुर्का पहनने के कट्टरपंथियों के आदेश के खिलाफ साहस दिखाती है तो उसकी हत्या कर दी जाती है और भारत की राजधानी दिल्ली (Capital Delhi) में अगर एक युवती लिव इन में रहते हुए अपने प्रेमी से शादी की जिद करती है तो उसकी हत्या कर शव के 35 टुकड़े कर दिए जाते हैं। यह सब सर्वाधिक चर्चित उदाहरण भर हैं, अगर बारीकी से समीक्षा होगी तो प्रत्येक देश और उसके राज्यों में तमाम ऐसे अपराध सामने आएंगे, जिनमें महिलाओं पर भयंकर अत्याचार (gruesome atrocities on women) हो रहे हैं, उनकी हत्याएं हो रही हैं और दुनिया महज यह सब होते देख रही है।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख का यह बयान अहम है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा दुनिया में सबसे बड़ा मानवाधिकार (human rights) उल्लंघन है। उनका सरकारों से यह आह्वान कि इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय (National) कार्रवाई योजना लागू की जाए, उचित है लेकिन विडंबना यह है कि महिलाओं पर एक अपराध घटने के बाद जागरूक लोगों, सरकार और न्यायपालिका (Judiciary) सक्रियता दिखाती है लेकिन फिर सब शांत हो जाता है और अगले अपराध के घटने का इंतजार होने लगता है।

दरअसल, गुटेरेस (Guterres) की यह टिप्पणी भारत में श्रद्धा वालकर की हत्या के मामले की पृष्ठभूमि में आई है, जिसने पूरे देश को हैरत में डाला हुआ है। यह मामला इसलिए चर्चित हो गया क्योंकि इसके अंदर अपराधी ने न केवल हत्या की, अपितु हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए उसके टुकड़े भी कर दिए। सवाल यह है कि आखिर यह किस प्रकार समाज निर्मित (society made) होता जा रहा है।  अगर धर्म को इस मामले से अलग रखा जाए तब भी यह समझना बेहद मुश्किल है कि लिव इन में रहने की रजामंदी के बावजूद एक युवक, एक युवती के प्रति इतना क्रूर कैसे हो गया कि उसकी हत्या ही कर दी।

जाहिर है, आधी आबादी को निशाना बनाने की यह प्रवृत्ति महिला समाज को कमतर आंकने की आम धारणा की वजह से है। आजकल देश के तमाम शहरों और गांव-देहात में महिलाओं, युवतियों, किशोरियों के प्रति ऐसे अपराध सामने आ रहे हैं, जब उनकी स्वतंत्रता (Freedom) पर आघात करते हुए उन्हें न केवल सामाजिक रूप से अपमानित किया जाता है, अपितु छेड़छाड़, रेप, एसिड अटैक और हत्या को अंजाम दे दिया जाता है। चंडीगढ़  (Chandigarh) और मोहाली में दो ऐसी वारदातें सुर्खियां बन चुकी हैं।

चंडीगढ़ (Chandigarh)  में एक मुस्लिम युवक (muslim youth) ने अपनी पहचान छिपाकर युवती से प्रेम प्रसंग किया लेकिन जब उसके विवाहित होने का सच सामने आया तो युवती के विरोध करने पर उसकी हत्या कर दी गई। यानी युवक के पास इसका अधिकार था कि वह प्रेम प्रसंग करे लेकिन युवती के पास इसका हक नहीं था कि वह युवक के धोखे का विरोध करे। यह पितृसत्तात्मक सोच का अधिनायकवादी चेहरा ही है कि पुरुष जो करे वह सही है, लेकिन महिला करे या फिर विरोध में खड़ी हो तो फिर वह अपने प्राण गंवा कर या फिर अपमानित (humiliated) होकर उसका दंड भुगते। श्रद्धा वालकर के साथ यही हुआ, शादी के लिए दबाव बनाना उसका हक था, लेकिन आरोपी आफताब को यह दबाव रास नहीं आया।
   

मोहाली (Mohali) में भी ऐसा ही मामला सामने आया है, जब एक बर्खास्त एएसआई ने एक 23 वर्षीय नर्स की अफेयर मामले में गला दबाकर हत्या कर दी और शव को छप्पड़ में फेंक दिया। लालड़ू में भी एक युवती के साथ कुछ अनुचित होने के आसार दिखे हैं, जब लव मैरिज (love marriage) की पहली एनिवर्सरी के अगले दिन ही उसने ट्रेन के आगे आकर सुसाइड कर लिया। वहीं महिला के प्रति अपराध का एक और भी उदाहरण सामने आया है।

A father raped his daughter: एक बाप ने अपनी बेटी से दुष्कर्म किया और जब उसे उम्रकैद की सजा हुई तो उसने अदालत से उसकी देखभाल के लिए रहम की भीख मांगी। यह कितना हैवानियत भरा समय उस पीड़ित बेटी के लिए रहा होगा, कि जिस बाप से यह उम्मीद की जाती है कि वह उसका संरक्षक बनकर उसे जीवन की तमाम खुशियां हासिल करने का प्रयोजन करेगा, वही जान से मारने की धमकी देकर उससे दुष्कर्म करता था। इस मामले में अदालत (court) ने अपराधी को जो सजा सुनाई और उसकी माफी की भीख पर गौर नहीं किया, वह बेहद सही और न्यायोचित है।  

chief of the United Nations संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को गुजरे जमाने की बात बनाने का आह्वान किया है, जोकि बेहद जरूरी है। निश्चित रूप से यह बेहद शर्मसार करने वाला तथ्य है कि जब मानव समाज सभी क्षेत्रों में तरक्की (improvement) हासिल करता जा रहा है, तब महिला अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता के मामले में समाज का पतन जारी है। धर्म की आड़ में या फिर पितृसत्तात्मक सोच में लिपटे लोग महिलाओं के प्रति अत्याचार करने से बाज नहीं आ रहे।

It is not only the work of the governments: यह कार्य केवल सरकारों का नहीं है, यह कार्य समाज का है कि वह महिलाओं को उनके हिस्से का हक प्रदान करे। यह हक स्वाभिमान और वैचारिक आजादी के साथ जीवन को सुरक्षित तरीके से जीने का होना चाहिए। इसीलिए उचित होगा कि इस तरह के अपराधिक प्रवृति लोगों के लिए कोई ठोस कानून बनाया जाए, जिसमें बार-बार कानूनी अड़चन (legal impediment) न आए और घृणितों कृत्यों वाले अपराधियों का खात्मा हो सके। 

 

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