कान से सुनना और मन से सुनना दोनों में बड़ा अंतर है : श्री गुप्तेश्वर जी महाराज

कान से सुनना और मन से सुनना दोनों में बड़ा अंतर है : श्री गुप्तेश्वर जी महाराज

कान से सुनना और मन से सुनना दोनों में बड़ा अंतर है : श्री गुप्तेश्वर जी महाराज

कान से सुनना और मन से सुनना दोनों में बड़ा अंतर है : श्री गुप्तेश्वर जी महाराज

भागवत कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

मुकेश कुमार सिंह

पटना (बिहार) : बिहार की पुलिसिंग व्यवस्था को सरल सहज और शौम्य बनाने के साथ-साथ शराब, दहेज हत्या, भ्रूण हत्या, बाल विवाह, विधवा विवाह, दहेज प्रथा और आपराधिक वारदातों पर मुखर होकर बोलने और अभियान चलाने वाले, बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय का अब नया अवतार लोगों के सामने है। अपने सेवा काल मे दौरान ईमानदारी और कर्तव्य की बड़ी लकीर खींचने वाले श्री पांडेय अब देश के ख्यातिलब्ध कथावाचक की श्रेणी में एक मजबूत हस्ताक्षर बन गए हैं।  श्री गुप्तेश्वर पांडेय जी महाराज के नाम से अपनी नई पहचान बना कर, अब वे देश के विभिन्न प्रांतों में भागवत कथा वाचन कर समाज के सभी लोगों को उनके असली जीवन से परिचय करा रहे हैं। बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय के पूरब बाजार स्थित जिला गर्ल्स हाई स्कूल परिसर में सात दिवसीय भागवत कथा का आयोजन बीते 26 मार्च से 1 अप्रैल तक हो रहा है। कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ के बीच श्री गुप्तेश्वर पांडेय जी महाराज ने कथा सुनाते हुए श्रद्धालुओं को भागवत कथा के महात्म्य को समझाया। उन्होंने कहा कि कान से सुनना और मन से सुनना, दोनों अलग-अलग सःस्थित है। मन तक आवाज पहुँचे, तब कथा का सही तरीके से श्रवण सम्भव है। मन को स्थिर करना तप के समान है। सांसारिक जीवन में सनातन संस्कारों की महती जरूरत है। आज के आधुनिक समय में लोग, अपने स्थूल शरीर से बाहर ही जीवन की यात्रा कर रहे हैं। मनुष्य ही ऐसी योनि है जिसमें कर्म करने की आजादी है। सनातन ग्रन्थों और शास्त्रों में असली जीवन की मुलता है। तृष्णा, लोलुपता और उहापोह में मनुष्य अपने असली जीवन औचित्य से भटक जाता है। आत्मा और परमात्मा का एक अलग विज्ञान है। श्री गुप्तेश्वर पांडेय जी महाराज ने आगे कहा कि आज जो हमारी सभ्यता और संस्कृति के अवशेष भी बचे हैं, वह सिर्फ मातृ शक्ति की वजह से बचे हैं। धन संचय और हर तरह वैभव का सृजन आज पुरुष और स्त्री दोनों का लक्ष्य और जीवन ध्येय बन गया है। मृत्य, जीव धरा का एक मात्र सत्य है। अपने जीवन काल में आपने कैसे कर्म से अपने जीवन को जिया, सिर्फ यही प्रासांगिक होता है। अन्तःयात्रा से ही मानवीय चेतना को टटोला जा सकता है। चैतन्य होना, जीवन की बड़ी कामयाबी है। बिगड़े को संवारना, उजड़े को बसाना और बेरंगी जीवन को रंगों से भरना, सफल जीवन की जरूरत है। ठाकुर को महसूसने और उनसे साक्षात्कार के लिए आध्यात्म की आंतरिक दौर जरूरी है। चित्त और मन को अपने वश में करने के बाद ही असली जीवन का अहसास कराता है। दृष्टिगत भोग की सारी चीजें मिथ्या है। लोग सिर्फ आनंद लेने में ही रम जाते हैं, उन्हें परमानंद के बारे में कोई खबर ही नहीं हो पाती है। गृहस्थ जीवन में ठाकुर को साक्षी मान कर ही अर्थवान जीवन जिया जा सकता है। इस कथा में मानव जीवन के असली औचित्य पर विभिन्य उदाहरणों से प्रकाश डाले गए। इस भागवत कथा आयोजन समिति के सागर कुमार नन्हें, पंकज गुप्ता, अभिषेक सिंह, आशीष सिंह, प्रिंस सिंह, समीर कुमार मिट्ठू, सुजीत सान्याल, गौरव सिंह, विनीत छोटू, अमरज्योति जायसवाल सहित सैंकड़ों युवाओं ने समवेत स्वर में बताया कि आज कथा का तीसरा दिन है। 29 मार्च से कथा के दौरान वृंदावन से आई टीम झांकी प्रस्तुत करेगी। समाज में बदलाव हो, इसके लिए हम युवाओं ने भागवत कथा कराने का मन बनाया। यह बेहद असम्भव कार्य था लेकिन ठाकुर जी की कृपा से यह कार्यक्रम अपने पहले दिन से ही ऐतिहासिक साबित हो रहा है।