मैनपुरी की जीत से मुलायम परिवार हुआ एकजुट, लेकिन राह में अभी कांटे हैं बहुत
अखिलेश यादव परिवार को एकजुट करने में भी रहे कामयाब
Mainpuri Loksabha Byelection Results: समाजवादी पार्टी के पर्याय मुलायम सिंह यादव ने पार्टी को जिस प्रकार से आगे बढ़ाया, वह निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में एक उदाहरण है। प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी सपा ने अपना हिस्सा बनाए रखा। मुलायम सिंह यादव (Mulayam singh yadav) अपने नाम की भांति थे, सबके साथ मिल जाते थे। उनके निधन से सपा के सामने यह चुनौती थी कि अब वह कैसे आगे बढ़ेगी, हालांकि उनके निधन से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट को फिर से जीत कर पार्टी प्रमुख और मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh yadav) ने यह साबित कर दिखाया है कि सपा सही हाथों में है और वह उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल बनी रहेगी। बावजूद इसके रामपुर में हार और खतौली सीट पर पराजय यह बताती है कि सपा की डगर में बहुत कांटे हैं।
मैनपुरी की जीत मुलायम को श्रद्धांजलि
अखिलेश यादव ने राज्य में विधानसभा चुनाव भी अपने बूते ही लड़ा था। उनकी सभाओं में उमड़ी भारी भीड़ यह बताने को काफी थी कि प्रदेश में एक बड़ा वर्ग सपा के साथ है। उस समय प्रचार के दौरान मुलायम सिंह यादव कहीं नजर नहीं आए थे। अब लोकसभा उपचुनाव के दौरान अखिलेश यादव का वही जलवा बरकरार रहा। उन्होंने इस चुनाव को अपने पिता को बतौर श्रद्धांजलि लड़ा और क्षेत्र की जनता ने भी यह समझा। मुलायम सिंह यादव के परिवार ने इसे प्रतिष्ठा का मामला बनाकर पेश किया। उनकी बहू और अब नवनिर्वाचित सांसद डिंपल यादव ने इसे परिवार के मान-सम्मान की लड़ाई बताया।
परिवार की विरासत को लेकर था द्वंद्व
दरअसल, मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनकी प्रतिष्ठा से जोडक़र उपचुनाव को एक मुद्दे के रूप में बना दिया गया। शुरुआती दिनों में धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव के बीच मुलायम की विरासत को बांटने और बढ़ाने की बात चली। लेकिन, परिवार इस पर एकजुट होता नहीं दिखा। इसके बाद अखिलेश ने पत्नी डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतारने का दांव चल दिया। इस दांव में अखिलेश के राइट हैंड प्रो. रामगोपाल यादव और लेफ्ट हैंड शिवपाल यादव बन गए। मैनपुरी का रण परिवार की जीत के लिए महत्वपूर्ण हो गया। परिवार मैदान में उतरा तो मुलायम की विरासत को सहेजते हुए मतदाताओं ने मैनपुरी में रिकॉर्ड जीत को डिंपल की झोली में डाल दिया। मैनपुरी में मुलायम की विरासत को बचाने में अखिलेश कामयाब हुए। संदेश यादवलैंड में गया है कि परिवार एकजुट है। यह तब है, जब चुनाव परिणाम के ही दिन मुलायम सिंह यादव के भाई और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय कर लिया। यानी अब पूरा परिवार एक झंडा, एक पार्टी के तले आगे बढ़ेगा। शिवपाल भी अब समाजवादी पार्टी के झंडे तले अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगे।
तो यादव वोट बैंक सपा के ही साथ
मैनपुरी इस मायने में भी महत्वपूर्ण हो गया था कि क्या यादव वोट बैंक में भाजपा सेंधमारी कर सकती है? योगी सरकार के मंत्री और मैनपुरी से विधायक जयवीर सिंह ने पहले ही कहा था कि शिवपाल यादव के सामने मैनपुरी में अस्तित्व का सवाल है। शिवपाल ने अपना अस्तित्व सपा में तलाश लिया। इसके चलते भाजपा की हार हुई। हालांकि, यादव वोट बैंक हमेशा से सपा के साथ रही है। अगर इसमें बंटवारा किसी भी स्थिति में होता, तभी भाजपा के लिए कोई चांस इस तरफ था। वोट बैंक एकजुट रहा तो हार तय थी। हुआ भी यही। यही वजह रही कि मैनपुरी के चुनावी मैदान में शिवपाल का मुद्दा खूब उछाला गया। करहल विधानसभा सीट पर चुनावी मैदान में उतरे सीएम योगी आदित्यनाथ तक ने शिवपाल का मुद्दा उछाला। उसका कोई खास असर होता नहीं दिखा। शिवपाल बहू डिंपल यादव के लिए वोट मांगते दिखे। जसवंत नगर में डिंपल को रिकॉर्ड वोटों से जीत दिलाने में उनकी भूमिका अहम रही। ऐसे में पार्टी में उनकी वापसी का असर यादव वोट बैंक को एकजुट रखने में सहायक साबित होगा।
रामपुर का किला क्यों नहीं बचा पाए
रामपुर विधानसभा उपचुनाव (Rampur byelection won by bjp) में समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। मैनपुरी में जीते लेकिन रामपुर में अपना किला गंवा बैठे, आखिर ऐसे कैसे हुआ। समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेता आजम खान का यह करीब चार दशक पुराने गढ़ में सेंधमारी हो चुकी है। ठीक वैसे ही जैसे आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट जैसे किले में भाजपा ने पहले सेंधमारी की थी। रामपुर से निकलते संदेश कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में पहली बार भाजपा के प्रति मुस्लिमों का प्रेम इतने बड़े पैमाने पर झलकने लगा है। पसमांदा मुसलमानों के जरिए मुस्लिमों के एक बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश हो रही है। रामपुर में भी पसमांदा मुसलमानों को ध्यान में रखते हुए उपचुनाव से पहले कई घोषणाएं हुई। कई कार्य शुरू किए गए। आजम खान चुनावी मैदान में उतरे तो उन्होंने भी इसका जिक्र किया। आजम खान ने चुनावी सभाओं में कहा कि जिस प्रकार से भाजपा रामपुर में पसमांदा मुस्लिमों के लिए कार्य करती दिख रही है। अगर पूरे देश में वह सभी मुसलमानों के लिए करना शुरू कर दें तो फिर सारा झमेला ही खत्म हो जाएगा। आजम लगातार भाजपा पर मुस्लिम विरोधी राजनीति का आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन, रामपुर में भाजपा ने आजम विरोधी राजनीति के जरिए उनका किला ढहा दिया।
उपचुनावों के नतीजे से बदलेगी प्रदेश की राजनीति
मुलायम सिंह यादव ने जिस माय (मुस्लिम+यादव) (what is Muslim-yadav equation) समीकरण को प्रदेश की राजनीति में स्थापित चुनावों के परिणाम को अपने पक्ष में करने का सिलसिला शुरू किया था। मैनपुरी का रिजल्ट उसी का परिणाम भर है। इस जीत की धमक में रामपुर और खतौली विधानसभा उपचुनाव के परिणामों की अनदेखी उचित नहीं होगी, क्योंकि ये दोनों उपचुनाव के परिणाम प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाले साबित होंगे। विश्लेषक समझते हैं कि अगर इन समीकरणों के सहारे सभी राजनीतिक दल आगे बढ़े तो 2024 के आम चुनाव में एक अलग कहानी उत्तर प्रदेश में लिखी जा सकती है। यह कहानी 2013 में भाजपा के पांव पसारने के दौर से आगे की पटकथा हो सकती है। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदलाव के संकेत हैं, यहां हुए उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के मदन भैया ने जीत दर्ज की है। जाट बहुल इस इलाके में भाजपा की हार उसकी चिंता बढ़ाने वाली है।