चुनाव आयोग पर सर्वोच्च फैसला सही, क्या अब बंद होंगे आरोप
- By Habib --
- Friday, 03 Mar, 2023
Supreme verdict on Election Commission is correct
Supreme verdict on Election Commission is correct भारत में लोकतंत्र की रक्षा के लिए निर्वाचन आयोग की भूमिका हमेशा एक न्यायाधीश की भांति रही है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस संस्था पर आरोपों की बारिश भी होती रही है। निर्वाचन आयोग एकाएक चर्चा में तब आया, जब टीएन शेषन इसके मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने। उन्होंने इस संस्था के लिए वह भूमिका तय की, जिसको निभाना आज प्रत्येक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के लिए आवश्यक है। पिछले कुछ समय के दौरान निर्वाचन आयोग पर सत्ताधारी दल के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं, उसने अगर ईवीएम को वोटिंग में लागू किया तो उस पर भी आरोप लगे हैं।
हालांकि अब जब सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश और नेता विपक्ष मिलकर करेंगे तो आशा की जाती है कि विपक्ष ऐसे आरोप लगाने से गुरेज करेगा। हालांकि राजनीति में अगर सब कुछ नियमों के अनुसार चलने लगे तो फिर बात ही क्या है।
यह फैसला आखिर आया क्यों है, इस पर विचार होना चाहिए। आरोप यह है कि निर्वाचन आयोग सत्ता पक्ष के हित में काम करता है। इसलिए ऐसे चुनाव आयुक्त नियुक्त किए जाएं जोकि निष्पक्ष हों। सबसे पहले तो यह सवाल है कि आखिर विपक्ष के आरोपों पर यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए कैसे पहुंच गया। क्या सर्वोच्च न्यायालय को भी वास्तव में लगता है कि ऐसा कुछ हो रहा है। क्या वास्तव में ऐसे किसी निगरानी तंत्र को बनाए जाने की जरूरत है। जब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीशों की नियुक्ति के संबंध में कोलेजियम प्रणाली के बजाय केंद्र सरकार नई नियुक्ति प्रणाली लाने की बात कहती है तो उसका विरोध होता है, लेकिन चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति के लिए नियुक्ति प्रणाली बनाए जाने का फैसला आता है। क्या न्यायपालिका में किस प्रकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है, इसका पता आम जनता को है।
बेशक, यहां तुलना नहीं की जा रही है, लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर चुनाव आयोग के आयुक्तों पर यह तोहमत क्यों कि वे सत्ता पक्ष के फायदे के लिए ही काम करते हैं, इसलिए उनकी नियुक्ति प्रणाली ही ऐसी टेढ़ी होकि प्रधानमंत्री की पसंद नेता विपक्ष को न भाए और नेता विपक्ष की पसंद प्रधानमंत्री या फिर मुख्य न्यायाधीश को रास न आए।
वास्तव में निर्वाचन आयोग स्वायत्त संस्था है, उस पर देश में चुनाव कराने की जिम्मेदारी है। बीते वर्षों की तुलना में निर्वाचन आयोग आजकल जिस प्रकार से काम कर रहा है, वह भारत समेत पूरी दुनिया के लिए आदर्श है। पहले चुनाव का कार्यक्रम बेहद परेशान करने वाला होता था, उम्मीदवार और नेता जनता का दम निकाल देते थे, लेकिन आजकल मतदाता शांति से अपना मन बनाता है, वोट देना जाता है और निश्चित तारीख को परिणाम आने के बाद नई सरकार के बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। न कोई दंगा-फसाद, न ही उठा-पटक। न बेवजह की भागदौड़। न बैलेट बॉक्स लुटने का भय। अब विपक्ष के नेता अगर ईवीएम में गड़बड़ का आरोप भी लगाते हैं तो वह उनकी हार की निराशा ही होती है। क्योंकि चुनाव आयोग की चुनौती के बावजूद कोई विपक्षी नेता ईवीएम में गड़बड़ करके नहीं दिखा सका है। ऐसा हो चुका है, जब खुद आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा था कि वे आएं और साबित करें कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय Supreme Court का यह फैसला दीर्घकालीन परिणाम देगा। बेशक ऐसे आरोपों का लगना कम नहीं होगा लेकिन अब जो नियुक्ति की जाएंगी उनमें सत्तापक्ष से प्रधानमंत्री और विपक्ष से उसका नेता एवं सीजेआई होंगे। जाहिर है, ऐसे में संबंधित अधिकारी की जिसे चुनाव आयुक्त लगाया जाएगा, से अपेक्षा बढ़ जाएगी। यह चाहा जाएगा कि वे क्योंकि हर पक्ष और विपक्ष की एक राय से उस कुर्सी पर पहुंचे हैं, ऐसे में वे स्वतंत्र और निर्विवाद होकर काम करेंगे। हालांकि आशंका इसकी है कि इसके बावजूद कहीं विपक्ष प्रधानमंत्री और सीजेआई पर एक होने का आरोप न लगा दे। देश में ऐसा हो चुका है, जब अनेक बार सत्ता पक्ष के इशारे पर सीजेआई के चलने का आरोप विपक्ष लगा चुका है।
यह सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ की ओर से आया फैसला है और इसे पूर्ण बहुमत से दिया गया है, यानी यह देश की न्यायपालिका की आवाज है कि लोकतंत्र को जिंदा और स्वतंत्र रखने के लिए विधानपालिका ऐसा प्रावधान करे जिसमें चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और बढ़े। बेशक इसके लिए संसद को कानून बनाना होगा। हालांकि देश के भविष्य के लिए ऐसे फैसले निर्णायक साबित होंगे, इनके जरिये इसका विश्वास होता है कि देश में कुछ भी गलत नहीं होने दिया जाएगा। यही लोकतंत्र का मूल होता है।
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