Pros and cons in parliament

Editorial:संसद में पक्ष-विपक्ष को साथ चलने की निभानी होगी परंपरा

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Pros and cons in parliament

The ruling party and the opposition will have to maintain the tradition of working together in Parliament: निश्चित रूप से 18वीं लोकसभा में सब कुछ बदला हुआ है। अपने बढ़े संख्या बल से मोहित विपक्ष जहां सरकार पर हमलावर है, वहीं सत्ता पक्ष भी बचाव की मुद्रा में है। लेकिन संसद ही वह जगह होती है, जहां पर सत्ता और विपक्ष के बीच वास्तविक युद्ध नजर आता है। आजकल संसद का विशेष सत्र जारी है, लेकिन इसमें जिस प्रकार से सत्ता एवं विपक्ष के मध्य तकरार दिख रही है, वह कृत्रिम ज्यादा है। बेशक, विपक्ष का यह अधिकार है कि वह मुद्दों को उठाए और अपनी बात को सदन के पटल पर रखे, लेकिन क्या सदन की नियमित कार्यवाही के बजाय विपक्ष की ओर से विशेष चर्चा की मांग को स्वीकारा जा सकता है। जबकि सदन के पास और भी मुद्दे होते हैं, जिन पर विचार एवं चर्चा की जरूरत होती है।

आजकल देश में नीट का मुद्दा सरगर्म है, यह जरूरी है कि इस मामले की तह तक जाकर यह पता लगाया जाए कि आखिर नीट के इतना कीचड़ युक्त होने की वजह क्या है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मामले को लेकर लोकसभा में चर्चा की मांग की थी। हालांकि कहा गया कि सदन में उन्हें बोलने से रोकने के लिए माइक ही बंद कर दिया गया। स्पीकर ओम बिरला पर इसका आरोप लगाया गया, हालांकि उन्होंने इससे साफ इनकार करते हुए कहा कि उनके पास माइक का बटन नहीं है। निश्चित रूप से यह अजीब स्थिति है। आखिर स्पीकर के पास इसका बटन कैसे हो सकता है कि वे किसी सांसद के माइक की आवाज को बंद कर दें

इस मामले में कांग्रेस और विपक्ष के अन्य नेताओं ने हल्ला मचा दिया। सभी एक-दूसरे का समर्थन करते हुए स्पीकर के खिलाफ लामबंद हो गए। हालांकि इससे पहले रोहतक से कांग्रेस सांसद भी जब राहुल गांधी के समर्थन में बोलने के लिए खड़े हुए तो कथित रूप से स्पीकर ने उन्हें डांट दिया। अब यह मुद्दा बनाया जा चुका है और हरियाणा आदि राज्यों में इसको लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। बात यहां तक ही रहती तो समझी जा सकती थी लेकिन अब स्पीकर ओम बिरला और कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा के बीच साम्यता तलाशी जा रही है। कहा जा रहा है कि दीपेंद्र हुड्डा पांच बार के सांसद हैं, लेकिन बिरला महज तीन बार के सांसद हैं। प्रश्न यह है कि क्या इस प्रकार की तुलना उचित है। ओम बिरला को बहुमत के साथ लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया है।

उन्होंने १७वीं लोकसभा के दौरान भी अपने कार्यभार को उचित प्रकार से निभाया था। हालांकि विपक्ष का आरोप है कि बिरला ने सबसे ज्यादा सांसदों को सदन से बाहर किया था। वैसे, स्पीकर की भूमिका को लेकर अभी प्रश्न उठ रहे हैं, लेकिन क्या कभी विपक्ष की सरकारों के दौरान स्पीकर की भूमिका पर गौर फरमाया गया है। जाहिर है, स्पीकर का कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण है और उन्हें एक कडक़ शिक्षक की भूमिका निभाते हुए सभी सांसदों को मौका देना होता है, इस दौरान अगर उनके रवैये में सख्ती दिखती है तो क्या इसके लिए पक्षपाती होने का आरोप लगाना सही है।

गौरतलब है कि 18वीं लोकसभा में ओम बिरला के नाम पर एनडीए सरकार ने विपक्ष से सहमति बनाने की कोशिश की थी, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद विपक्ष ने केरल से सांसद के सुरेश को लोकसभा अध्यक्ष पद पर बिरला के खिलाफ उतार दिया। इतिहास में इससे पहले ऐसे तीन ही मौके आए हैं जब लोकसभा स्पीकर पद के लिए मतदान हुआ था।   वैसे विपक्ष ने स्पीकर चुनाव के लिए वोटिंग की मांग नहीं की और ध्वनि मत से ओम बिरला को चुन लिया गया।  इसे लोकतंत्र की ताकत माना गया कि बिरला के चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने साथ-साथ जाकर स्पीकर ओम बिरला को इसके लिए शुभकामनाएं दी। वैसे इस बार की संसद में सदस्यों ने शपथ ग्रहण के दौरान जिस प्रकार का आचरण पेश किया है, वह शोभनीय प्रतीत नहीं होता। पक्ष एवं विपक्ष  के सांसदों ने अपनी मर्जी से ऐसे शब्दों का भी शपथ ग्रहण के दौरान प्रयोग किया जोकि संविधान का मखौल बनाते हैं। बावजूद इसके विपक्ष संविधान बचाने की गुहार लगाते हुए सरकार पर हमलावर हो जाता है, वहीं सत्ता पक्ष भी इसे विपक्ष की फर्जी जंग बताता है।

वास्तव में यह जरूरी है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष इस बात को समझें कि देश की जनता ने दोनों को इस बार मौका दिया है। विपक्ष को अपनी भूमिका अदा करनी है, लेकिन क्या यह जरूरी नहीं है कि वह  इतने आक्रामक तेवर न अपनाए। क्योंकि अभी सरकार के पांच साल बाकी हैं। वैसे भी सरकार अगर काम कर पाएगी तो यह उसकी नहीं अपितु देश की कामयाबी होगी। वहीं सत्ता पक्ष को भी विपक्ष को गंभीरता से लेने की आदत डालनी होगी। जाहिर है, देश की जनता का मूड बदल चुका है, मोदी सरकार को समझना होगा कि उसे बदली हुई परिस्थितियों में काम करना होगा। विपक्ष को साथ लेकर चलना उसकी जरूरत और मजबूरी दोनों है। 

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