घातक हथियारों की बढ़ती जा रही है होड़, hypersonic missile विश्व शांति के लिए खतरा साबित हो रही है
घातक हथियारों की बढ़ती जा रही है होड़, hypersonic missile विश्व शांति के लिए खतरा साबित हो रही है
नई दिल्ली। कोई भी युद्ध सबसे पहले मानसिक स्तर पर लड़ा जाता है। ऐसा भी होता है कि कई मसले बिना जंग लड़े कूटनीतिक दांवपेच से ही हल कर लिए जाते हैं। इसके बावजूद मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है, जब विभिन्न हथियारों को शक्ति दिखाने और उनके बल पर कोई मोर्चा फतह करने का जरिया न माना गया हो। सच्चाई यही है कि हथियारों के मामले में दुनिया तीर-कमान, तलवारों और तोपों के मुकाबले आज बहुत आगे निकल आई है।
आज दुनिया के कई मुल्कों के पास परमाणु बम हैं, अंतरिक्ष से जंग लड़ने के साजोसामान हैं, ड्रोन हैं और वे मिसाइलें हैं, जिन्हें एक जगह से दागकर दुनिया के किसी भी हिस्से में हमला किया जा सकता है। अत्याधुनिक हथियारों में तब्दील हो गईं ये मिसाइलें किसी भी जंग का रुख कैसे मोड़ सकती हैं, इसका उदाहरण आज रूस-यूक्रेन युद्ध में मिल रहा है। मार्च में रूस ने यूक्रेन युद्ध में पहली बार दो हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया। रूस के मुताबिक, मिसाइलों ने नाटो के सदस्य देश रोमानिया की सीमा से सटे इलाके में यूक्रेनी सेना के उन बड़े भूमिगत गोदामों को खत्म कर दिया, जहां उसके हथियार रखे गए थे।
पहली बार हाइपरसोनिक वार
दुनिया में यह पहला अवसर है, जब एक युद्ध में हाइपरसोनिक मिसाइल जैसे बेहद आधुनिक हथियार का इस्तेमाल हुआ है। करीब दो हजार किलोमीटर तक मार करने वालीं रूसी किंजाल हाइपरसोनिक मिसाइलें मैक-10 यानी ध्वनि की गति से 10 गुना तेज रफ्तार से तय लक्ष्य को भेद सकती हैं। ये मिसाइलें 12 हजार से 14 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ सकती हैं। इनकी गति माहौल के अनुसार बदल सकती है। लक्ष्य के स्थान बदलने पर इनके उड़ान मार्ग में भी परिवर्तन किया जा सकता है। ऐसे में आज की तारीख में इनसे बचाव का कोई उपाय नहीं है। यानी ऐसा कोई भी मिसाइल सुरक्षा कवच (डिफेंस सिस्टम) नहीं है, जो किंजाल मिसाइलों की रोकथाम कर सके।
उल्लेखनीय है कि इन मिसाइलों को चार साल पहले खुद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह कहते हुए पेश किया था कि इनके जरिये नाटो के युद्धपोतों और मिसाइल सिस्टम का आसानी से मुकाबला किया जा सकता है। रूस यहीं रुके नहीं रहना चाहता है, बल्कि वह अवांगार्ड मिसाइल सिस्टम भी विकसित कर रहा है, जिसके तहत उसकी मिसाइलें ध्वनि की गति से 27 गुना ज्यादा रफ्तार से उड़ सकती हैं। उन्हें उड़ान भरने के बाद रास्ता बदलने की खूबी और तीखे मोड़ वाले घुमावदार मार्ग पर भी उड़ान भरने की क्षमता से लैस किया जा रहा है। हाइपरसोनिक मिसाइलों के मामले में रूस बेशक आगे है, पर अमेरिका, चीन, उत्तर कोरिया और भारत समेत कई देश भी हैं, जो अपनी सेनाओं को इन घातक मिसाइलों से लैस करना चाहते हैं। हाल में पाकिस्तान ने ठोस ईंधन से चलने वाली, जमीन से जमीन पर मार करने वाली और परमाणु हथियार ले जाने वाली जिस बैलिस्टिक मिसाइल शाहीन-3 का परीक्षण किया है, उसकी रेंज 2750 किलोमीटर तक है।
शक्ति संतुलन की जरूरत
यूं तो कह सकते हैं कि यूक्रेन पर हाइपरसोनिक मिसाइलों के हमले ने इनके प्रति दुनिया में नई चाहत पैदा कर दी है। अब पूरी दुनिया में इस पर विचार होने लगा है कि अगर कोई देश शत्रुओं से अपनी सीमाओं की सुरक्षा करना चाहता है तो शक्ति संतुलन के लिए हाइपरसोनिक मिसाइलें एक अनिवार्यता हैं। जो देश पहले से इन पर काम कर रहे हैं, वहां हाल में इनके परीक्षण में तेजी देखी गई है। जैसे मार्च 2022 में ही अमेरिकी सेना ने बताया कि अमेरिका की डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी ने हवाई जहाज से दागी जाने वाली एक हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है, जो मैक-5 यानी ध्वनि से पांच गुना तेज गति से उड़ान भरने में सक्षम है। दावा है कि अमेरिका प्रतिद्वंद्वी रूस से आगे निकलने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइलों के विकास के लिए एक कार्यक्रम चला रहा। अमेरिका इन मिसाइलों पर कितना जोर दे रहा है, इसका खुलासा अमेरिकी रक्षा मंत्रलय पेंटागन द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मांगे गए बजट से होता है, जिसमें से 4.7 अरब डालर का फंड हाइपरसोनिक हथियारों के शोध और विकास के लिए रखा गया है। चीन से संभावित खतरे के खिलाफ तैयारी के रूप में अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने आकस नाम का जो संगठन बनाया है, उसके तहत यह घोषणा भी की गई है कि ये देश मिलकर हाइपरसोनिक हथियार बनाएंगे।
‘स्पुतनिक क्षण’ के खतरे
इसमें संदेह नहीं है कि रूस इस मामले में सबसे आगे है, लेकिन अमेरिका, रूस, भारत, उत्तर कोरिया, फ्रांस, जापान, आस्ट्रेलिया और चीन समेत कई अन्य देश भी हाइपरसोनिक मिसाइलों को विकसित करने पर तेजी से काम कर रहे हैं। चीन इन मिसाइलों के मामले में रूस और अमेरिका को चुनौती देने की हैसियत में आ गया है। पिछले साल अक्टूबर में अमेरिकी सेना प्रमुख ने चीन में हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण की पुष्टि की थी। चीन ने जिस मिसाइल का परीक्षण किया था वह पूरी दुनिया में मार कर सकती है। अमेरिकी सेना के ज्वाइंट चीफ आफ स्टाफ के चेयरमैन मार्क माइक ने उस मिसाइल टेस्ट को ‘स्पुतनिक क्षण’ करार दिया था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1957 में अंतरिक्ष में पहला मानव निर्मित उपग्रह स्पुतनिक लांच कर तत्कालीन सोवियत संघ ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया को चौंका दिया था। अंतरिक्ष अनुसंधान में सोवियत संघ की बढ़त से अमेरिका में काफी खलबली मची थी। फिर अमेरिका ने रूस से पहले चंद्रमा पर इंसान को उतार कर अपनी बढ़त दर्शाई थी। आज के दौर में चीन के हाइपरसानिक मिसाइल परीक्षण को भी अमेरिकी सेना उसी नजर से देख रही है। उधर उत्तर कोरिया भी जब-तब घातक मिसाइलों का परीक्षण कर दुनिया को चिंता में डालता रहा है
सच है रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में नए किस्म की हाइपरसोनिक मिसाइलों की होड़ पैदा कर दी है। हाइपरसोनिक मिसाइलें क्रूज मिसाइलों की तुलना में कई गुना ज्यादा घातक होती हैं। ये तेजी से लक्ष्य तक पहुंच जाती हैं। भूमिगत ठिकानों तक को नुकसान पहुंचाती हैं। इसलिए ज्यादातर देश इन्हें जल्द ही अपने सैन्य बेड़े में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी बताना जरूरी है कि हाइपरसोनिक मिसाइलें वैश्विक सैन्य संतुलन के लिए बड़ा खतरा हैं। वजह यह है कि जो देश ऐसी मिसाइलें बना नहीं सकते या कहीं से खरीद नहीं सकते, वे ताकतवर मुल्कों के सामने उसी तरह असहाय स्थिति में होंगे, जिस तरह आज यूक्रेन खुद को रूस के समक्ष महसूस कर रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में नए किस्म की हाइपरसोनिक मिसाइलों की होड़ बढ़ा दी है। ऐसे घातक हथियार वैश्विक सैन्य संतुलन के लिए बड़ा खतरा हैं। वजह यह है कि जो देश ऐसी मिसाइलें नहीं बना सकते या कहीं से खरीद नहीं सकते, वे ताकतवर मुल्कों के सामने उसी तरह असहाय स्थिति में होंगे, जिस तरह आज यूक्रेन खुद को रूस के समक्ष महसूस कर रहा है