जो धरती पर एक बार आया वह जरूर जायेगा: मनीषी संत मुनि श्री
जो धरती पर एक बार आया वह जरूर जायेगा: मनीषी संत मुनि श्री
चंडीगढ 12 सिंतबर हर व्यक्ति जो भी इस दुनिया मे आया है वह एक न एक दिन जरूर जायेगा यह अटल सच्चाई है लेकिन इस जन्म व मृत्यु के बीच का समय हमारे खुद के पास है इसे कैसे संवारना है और जीवन पथ पर कैसे आगे बढना है यह हम पर ही निर्भर करता है। हमारे मन के विचार ही हमे अच्छे व बुरे की तरफ अग्रसर करते है। आप अपने दिमाग का उपयोग कैसे करते हैं। आपको अपने भीतर करुणा की जगह बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए तब हम ज्यादा बेहतर जीवन जी पाएंगे। उहमारे जीवन का उद्देश्य सिर्फ दिन काटना नहीं है बल्कि आत्मशांति की खोज है। जब आपके जीवन में संतोष होगा तो आप असफलताओं से आहत नहीं होंगे। जब आप दूसरों के साथ तुलना करते हैं तो आपको अपना कद हमेशा छोटा ही नजर आता है क्योंकि कोई न कोई ऐसा व्यक्ति मिल ही जाता है जो आपसे दौड़ में आगे खड़ा होता है। खेल की दुनिया में भी जो रिकॉड्र्स बने हैं वे एक न एक दिन टूटेंगे ही। इसलिए तुलना ऐसी चीज है जो आपको असफलता के रास्ते पर ले जाती है लेकिन तरक्की की तरफ बढऩे का रास्ता भी यही है। लेकिन सच्ची तरक्की ता यही है कि आपको अपने भीतर संतोष हो कि आपने अच्छा काम किया। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने सभा को संबोधित करते हुए कहे।
मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा कभी भी परिस्थितियां हमारी असफलता के लिए जिम्मेदार नहीं होती हैं। हमारा दिमाग या मन ही असफलता के लिए जिम्मेदार होता है। जब किसी भी स्थिति हमारे मन में यह भाव रहता है कि हम असफल हो गए तो समझिए कि आप असफल हुए वरना तो आप जहां भी हैं वही आपकी सफलता है। असल में मन बंधन या आजादी को जन्म नहीं देता है बल्कि वह तो एक बर्तन है जिसमें आप जो भी डालेंगे वह उसी तरह से उस पर काम करना शुरू कर देगा। उआपका मन ही आपके भीतर स्वर्ग या नरक रचता है। यह सब इस पर निर्भर करता है कि आप अपने दिमाग का उपयोग कैसे करते हैं। उदाहरण के लिए एक चाकू खतरनाक नहीं होता है लेकिन अगर आप गलत ढंग से इसका उपयोग करते हैं तो वह खतरनाक है और अगर समझदारी से उपयोग करते हैं तो वह उपयोगी है। अगर आप मन को भी इसी तरह गलत दिशा में लगाते हैं तो दुख ही पैदा होगा लेकिन अगर आप मन को सही दिशा में ले जाते हैं आपका जीवन बेहतर होगा।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया हर व्यक्ति को अपने मन को साधने के प्रति सतर्क रहना चाहिए। सोचिए अगर आपका सामना गुस्से से होता है तो आप भी गुस्से में आ जाते हैं तो इसका मतलब है कि अभी आपको अपने मन को साधने की बहुत जरूरत है। अगर आप चीजों को करुणा से देखते हैं तो मानिए कि आपने चीजों में सुधार कर लिया है।जब तक आपका मन चीजों का ठीक से सामना करना नहीं सीखता है तब तक उलझने बनी ही रहेंगी। तब तक आप अनुभवी नहीं कहलाएंगे। उआखिर अनुभव है क्या?