टूटेगा मिथक या होगा सत्ता में बदलाव, किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट, शुरू हुआ कयासों का दौर

टूटेगा मिथक या होगा सत्ता में बदलाव, किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट, शुरू हुआ कयासों का दौर

टूटेगा मिथक या होगा सत्ता में बदलाव

टूटेगा मिथक या होगा सत्ता में बदलाव, किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट, शुरू हुआ कयासों का दौर

नैनीताल : Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 : मतदान के बाद अब पार्टी ओर प्रत्याशियों ने अपना आकलन करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही जनता भी कयास लगाने लगी है। कौन प्रत्याशी कहां से जीत रहा है, किस पार्टी की सरकार बन रही है...इन सब बातों को लेकर चर्चाओं का दौर तेजी से चल रहा है। इस बार के चुनाव परिणाम कई मामलों में अहम होंगे। भाजपा की सरकार दोबार सत्ता में आती है तब भी या कांग्रेस सरकार बनाती है तब भी। आम आदमी पार्टी ने भी उत्तराखंड में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। वह दोनों पार्टियों का समीकरण बना-बिगाड़ सकती है। अलग राज्य बनने के बाद अब तक हुए चुनावों पर गौर करें तो दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा ने उत्तराखंड में सरकार बनाई है। इसलिए यह मिथक भी बना हुआ है कि उत्तराखंड में राजस्थान की तरह हर बार सरकार बदल जाती है। देखने वाली बात होगी कि उत्तराखंड में इस बार यह मिथक फिर कायम रहता है या नया इतिहास बनेगा। दस मार्च को वोटिंग के दिन तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाएगी।

कांग्रेस को परिवर्तन तो भाजपा को मोदी का भराेसा

इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए काफी मायने रखता है। राज्य बनने के 2002 में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी। जबकि 2007 में भाजपा ने सरकार बनाई और 2012 के चुनाव में एक फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस के हाथ सत्ता आई। 2017 के चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई। यानी अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में सूबे की सत्ता दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा के पास रही है। कांग्रेस के लिए सत्ता में पुनर्वापसी का सबसे बड़ा परिवर्तन ही आधार बन रहा है, जबकि भाजपा को पीएम मोदी पर भरोसा है। भाजपा के लोगों का कहना भी है कि उत्तराखंड में लोगों ने पीएम मोदी के चहेरे पर वोट किया है।

जानिए कैसे बंटता रहा उत्तराखंड में वोट प्रतिशत

राज्य बनने के बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में कुल मतदान का 26.91 प्रतिशत वोट कांग्रेस तो जबकि 25.45 प्रतिशत वोट भाजपा को मिला। वहीं 10.93 फीसद वोट लेकर बसपा ने चौंकाया। उस चुनाव में 16.30 प्रतिशत वोट निर्दलियों को मिला था। साल 2007 के चुनाव में भाजपा के हिस्से में 31.90 प्रतिशत वोट आए तो कांग्रेस ने भी अपना रुतबा बढ़ाते हुए 29.59 प्रतिशत मत हासिल किए। वहीं बसपा को 11.76 प्रतिशत तो निर्दलियों को 10.81 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। 2012 की बात करें तो इस बार भी भाजपा-कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा। दोनों दलों को क्रमश: 33.13 और 33.79 प्रतिशत मत मिले। जबकि बसपा का मत प्रतिशत बढ़कर 12.19 प्रतिशत पर जा पहुंचा। वहीं निर्दलियों को 12.34 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। वर्ष 2017 में भाजपा ने सर्वाधिक 46.51 प्रतिशत मत पाकर सारे रिकार्ड तोड़ दिए तो कांग्रेस के प्रदर्शन में मामूली अंतर के साथ वह 33.49 प्रतिशत पाकर पुन: दूसरे नंबर पर रही। वहीं बसपा का मत प्रतिशत गिरकर 6.98 पर जा पहुंचा तो निर्दलियों को 10.04 प्रतिशत पर ही संतोष करना पड़ा।

इस बार घटेगा या बढ़ेगा हार-जीत का अंतर

वर्ष 2017 के विस चुनाव में भाजपा ने जहां 57 सीटें पाकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था, वहीं कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई थी। इनमें एक मात्र सीट हल्द्वानी की ऐसी थी, जो इंदिरा ह्दयेश ने साढ़े छह हजार वोटों के अंतर से जीती थी, जबकि दो सीटें एक हजार से भी कम अंतर, चार सीटें दो हजार से भी कम अंतर और चार सीटें चार हजार से भी कम अंतर से कांग्रेस ने जीती थीं। भाजपा के पूरन सिंह 148 वोटों से जीते थे तो कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद सिंह कुंजवाल को मात्र 399 वोटों से जीत मिली थी। वहीं भाजपा की रेखा आर्य ने मात्र 710 तो भाजपा की ही मीना गंगोला ने मात्र 805 वोटों से जीत दर्ज की थी। माना जा रहा है कि बीते चुनाव में मोदी मैजिक की वजह से ऐसा हुआ था, इस बार हार-जीत का यह अंतर घट-बढ़ सकता है।