सत्संग का नशा अद्भुत है, सत्संग का नशा या तो किसी पर चढ़ता नहीं है और चढ जाए तो उतरता नहीं: क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव
Siddhachakra Mahamandal Vidhan
Siddhachakra Mahamandal Vidhan: परम पूज्य श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चयसागर जी गुरुदेव के शिष्य परम पूज्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव ने चण्डीगढ़ सेक्टर 27B में चल रहे सिद्धचक्र महामण्डल विधान के सातवें दिन धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा — सत्संग का नशा अद्भुत है, सत्संग का नशा या तो किसी पर चढ़ता नहीं है और चढ जाए तो उतरता नहीं है। प्रभु को उतरने को मजबूर कर देता है। जिस प्रकार लोहे पर रंग लगा देने पर उसमें जंग नहीं लगती उसी प्रकार जीवन पर भक्ति/सत्संग का रंग चढ़ जाए तो उस पर वासना रुपी जंग नहीं लगती, सत्संग से बैकुंठ/स्वर्ग मिलता है पल भर का सत्संग आपकी जिंदगी बदल सकता है बशर्ते इसके लिए आप तैयार हो। सत्संग में बैठने से ही सबको लाभ ही लाभ होता है यदि कोई आदमी सत्संग की भाषा ना समझे तो उसको कौन सा लाभ होता है? अरे भाई! यदि अंधा आदमी बाग में जाता है तो बाग की खूबसूरती को तो नहीं देख सकता लेकिन फूलों की खुशबू तो ले ही सकता है। सत्संग में यदि कोई भाषा को नहीं समझता तो भी उतनी देर कम से कम पाप कर्मों से तो बच ही जाता है। अतः जीवन में करने योग्य दो ही काम है ‘सन्त समागम, प्रभु भजन’ जितना हो सके उतना अपने जीवन का सदुपयोग करें। बाल ब्रह्मचारी पुष्पेन्द्र शास्त्री जी के निर्देशन में सिद्धचक्र महामण्डल विधान का भक्ति भाव के साथ सभी भक्तों ने मिलकर भगवान को 512 अर्घों से अर्चन किया। विधानकर्ता परिवार श्रीमान धर्म बहादुर जैन एवं नवरत्न जैन, सन्तकुमार जैन आदि ने पधारे हुए सभी महानुभावों का स्वागत सम्मान किया।
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