the intensity of foreign policy

विदेश नीति की प्रखरता सही

Editorial

the intensity of foreign policy

The intensity of foreign policy : भारत और भारतीय विदेश नीति के आजकल पूरी दुनिया में चर्चे हैं। भारत में पहली बार हो रहा है, जब विदेश मंत्रालय प्रखर मुद्रा में है और वह अमेरिका तक को आईना दिखाने से पीछे नहीं हट रहा। पाकिस्तान को अमेरिका ने एफ 16 युद्धक विमान दिए हैं और भारत ने इस पर सीधी और तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि उसे मालूम है कि इन युद्धक विमानों का प्रयोग किसके लिए होना है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर अनेक मौकों पर उन देशों को आईना दिखाते आ रहे हैं, जिनके सामने कभी भारतीय विदेश नीति विनम्रता की हदों तक झुकती रही है। भारत ने श्रीलंका को जहां यह बताया है कि वह किस प्रकार भारतीय हितों के विरुद्ध जाकर काम कर रहा है, वहीं उसके मालिक बन रहे चीन को भी इसका अहसास कराया है कि अब भारत पुराने वक्त वाला देश नहीं है, जिसके नेता पंचशील नामक सिद्धांत लेकर कबूतर उड़ाते रहेंगे और वह भारतीय सीमा में अपनी फौजों को भेज देगा।

ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इतने खुले शब्दों के साथ भारत ने अमेरिका को पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को लेकर आईना देखने की सलाह दी है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए भारत की बेबाक आवाज है। अमेरिका की कोई भी मजबूरी हो सकती है कि वह पाकिस्तान की मदद करे। लेकिन भारत के लिए यह लाजमी है कि वह अपनी सुरक्षा का ख्याल करे और अमेरिका की ओर से पाक को सैन्य मदद मिलती है तो यह भारत के लिए चिंता का सबब होगा ही। हालांकि व्यापार के नजरिए से हो या फिर मानव संसाधन प्रदान करने दृष्टि से देखा जाए, भारत, अमेरिका के लिए पाकिस्तान की तुलना में कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि  एस जयशंकर कह रहे हैं कि अमेरिका को इस रिश्ते की मेरिट के बारे में सोचना चाहिए कि उसे इससे क्या मिला। उन्होंने तो अमेरिका को यह कह कर लताड़ लगाई है कि आप ऐसी बातों को कहकर किसी को मूर्ख नहीं बना रहे। इस प्रकरण के जरिए भारत ने आतंक-रोधी अभियान के नाम पर पाकिस्तान को दिए गए अमेरिका के एफ-16 पैकेज पर वॉशिंगटन के पाखंड की सार्वजनिक तौर पर बखिया उधेड़ दी है।

गौरतलब है कि इससे पहले समरकंद में एससीओ समिट से इतर रूस के साथ द्विपक्षीय बातचीत में भारत ने उसे यूक्रेन युद्ध को लेकर दो टूक नसीहत दी थी। बगल में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बैठे थे और पीएम मोदी ने कैमरे के सामने दो टूक कहा- यह युद्ध का युग नहीं है। पीएम मोदी का यह बयान अमेरिकी मीडिया में छाया रहा। इसे रूस को सार्वजनिक तौर पर फटकार के तौर पर देखा गया। इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति समेत तमाम नेताओं ने पीएम मोदी के इस बयान की तारीफ की। इसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पीएम मोदी के बयान को दोहराते हुए बिना नाम लिए रूस को नसीहत दी कि संघर्ष की स्थिति में भी मानवाधिकारों या अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन को सही नहीं ठहराया जा सकता।

एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सालाना सत्र में भारत की असाधारण उपलब्धियों की चर्चा की। उन्होंने बेहद गौरवान्वित करने वाले शब्दों में दुनिया को बताया है कि 18वीं सदी में भारत की ग्लोबल डीजीपी में करीब एक चौथाई हिस्सेदारी थी। लेकिन उपनिवेशवाद ने भारत को सबसे गरीब देशों में से एक बना दिया था। 20वीं सदी के मध्य तक हम सबसे गरीब देशों में से एक थे लेकिन आजादी के 75 साल बाद भारत आज गर्व से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर खड़ा है। अब 2047 तक विकसित देश बनना उसका लक्ष्य है। जयशंकर ने यह भी कहा था कि हमसे अक्सर पूछा जाता है कि यूक्रेन संघर्ष में हम किसकी तरफ हैं। हर बार हमारा जवाब एक ही होता है, सीधा-सपाट और ईमानदार। भारत शांति के पक्ष में है और मजबूती से वहां बना रहेगा। हम यूएन चार्टर और उसके बुनियादी सिद्धांतों के पक्ष में हैं। हम बातचीत और कूटनीति के जरिए समाधान के पक्ष में हैं।

यह भारत की बदली हुई विदेश नीति का ही परिणाम है कि अब वैश्विक मंच पर चीन, भारत से मुकाबला नहीं कर पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से घोषित आतंकियों को ब्लैकलिस्ट करने में चीन की तरफ से रोड़े अटकाने पर भारत ने उसकी बांह मरोड़ी है। भारत की ओर से कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र आतंकियों को प्रतिबंधित करता है और आतंक के प्रायोजक देश उन्हें बचाने के लिए आगे आ जाते हैं। यह अपने आप में बेहद कड़ी टिप्पणी है। क्योंकि हर बार यही हो रहा है। पाकिस्तान का सच पूरी दुनिया जानती है लेकिन संयुक्त राष्ट्र में जब भी पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों पर कार्रवाई की बात आती है, चीन तुरंत अपना मित्र धर्म निभाने लगता है। चीन को भारत की यह नसीहत उसके लिए गांठ बांधने योग्य है कि अपनी जवाबदेही से बचने के लिए कभी राजनीति का सहारा नहीं लेना चाहिए। दोषी को दंड से बचाने के लिए भी नहीं।    

पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीन की तरफ से एलएसी में एकतरफा बदलाव की कोशिशों का भी भारत ने बहुत ही मजबूती से जवाब दिया है। उसकी धौंस की रणनीति का भारत हर मोर्चे पर जवाब देता आ रहा है। अभी पिछले महीने ही विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि चीन ने भारत के साथ सीमा संधि का अपमान किया है जिसकी छाया द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ी है। रूस के साथ भारत के तेल खरीदने पर जब सवाल उठे तो भारत ने यूरोपीय देशों को आईना दिखाने में देरी नहीं कि जो रूस से खुद तो गैस खरीद रहे लेकिन नहीं चाहते कि कोई और देश उसके साथ कारोबार करे। अमेरिका ने जब धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को लेकर भारत को घेरने की कोशिश की तो उसे उसी की धरती से करारा जवाब दिया गया था। दरअसल, भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है और वह किसी भी तरह के दबाव की परवाह किए बिना हमेशा अपने राष्ट्रीय हितों को तरजीह दे रही है। हालांकि बदले दौर में भारत ने भी अपनी भूमिका बदल ली है, जोकि समय की मांग है। यह प्रखर राष्ट्र की प्रखर विचारधारा की परिचायक है, अब हमारी विनम्रता भी उसके लिए होगी, जोकि हमारे प्रति सह्दय होगा।