अमरनाथ में जहां हादसा हुआ रास्ते की पूरी कहानी
अमरनाथ में जहां हादसा हुआ रास्ते की पूरी कहानी
जम्मू। अमरनाथ यात्रा का रास्ता कांटों का सफर है, जहां जरा सी भी लापरवाही मौत के घाट उतार सकती है। ऐसे में अब बादल फटने की आपदा ने वहां ठहरे यात्रियों के हालात बेहद मुश्किल कर दिए हैं।
जानकारी के अनुसार नीचे से ऊपर जाने में क़रीब 48 घंटे लग जाते हे।
अमरनाथ यात्रा के लिए पहले पहलगाम के नुनवान बेस कैंप पहुते ही में जम्मू में लगने वाली चिलचिलाती और उमसभरी गर्मी से राहत मिलती हे और बाद में कश्मीर की वादियों में चीड़ के पेड़ों के आगोश में देर शाम तंबू में ठिकाना मिल जाता हे रात बढ़ने के साथ ठंडी हवाओं का शोर बढ़ जाता हे और अगली सुबह और उसके साथ शुरू होने वाले रोमांच का इंतजार होता हे।
अगली सुबह 5 बजे निकल जाते हे बर्फीला पानी मुंह पर लगा, एक सेकेंड को लगा कि करंट मार गया, लेकिन लंगर और भंडारों की गर्म-गर्म चाय और नाश्ते ने जोश को फिर जिंदा कर देता हे अमरनाथ यात्रा में इस बार करीब 140 लंगर लगे हैं। इनमें ज्यादातर दिल्ली, पंजाब, राजस्थान के हैं।
जत्थे के हजारों यात्री स्नान के बाद नुनवान कैंप से चंदनवाड़ी की ओर निकल जाते हे नुनवान कैंप से चंदनवाड़ी 16 किमी है और टैक्सी से ये सफर आधे घंटे में पूरा हो जाता है। चंदनवाड़ी कैंप से सिक्योरिटी चेक के बाद ही बाबा बर्फानी की यात्रा शुरू होती है।
पहले जत्थे में शामिल ज्यादातर यात्री पैदल ही ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई करना शुरू कर देते हे 15 साल के बच्चे से लेकर 75 साल के बुजुर्ग तक जोशीले अंदाज में 'बम भोले-बम भोले'के जयकारों लगाते हुए और कुछ यात्री घोड़ों और पालकी के जरिए भी निकलते हे लेकिन भीड़ पैदल वालों की ही होती हे
पहला पड़ाव पिस्सू टॉप…
यात्रियों का पहला पड़ाव था- पिस्सू टॉप। एकदम सीधी खड़ी चढ़ाई, एक तरफ कल-कल बहती नदी दूसरी तरफ खाई। एक पल को लगा कि हजारों लोग कैसे ये खड़ा पहाड़ चढ़ेंगे, लेकिन देखते देखते यात्रियों के ग्रुप आगे बढ़ना शुरू हुए।
साढ़े तीन किमी की खड़ी चढ़ाई, चार घंटे में चढ़ने के बाद पिस्सू टॉप पर पहुंचते हैं। इस पॉइंट पर यात्री थोड़ा आराम करते हैं और फिर लंगर में कुछ खाना-पीना करके अगले पड़ाव यानी शेषनाग की ओर रवाना हो जाते हैं।
पहाड़ों के कोने-कोने पर सुरक्षाबलों का पहरा है। जवान एक तरफ यात्रियों को आतंकी खतरों से सुरक्षा दे रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कठिन यात्रा में लोगों की मदद कर रहे हैं।
कुल 35 किलो का लोहा शरीर पर लादकर ये जवान यात्रियों की सुरक्षा में 12 घंटे ड्यूटी दे रहे हैं। और इस तरह के करीब डेढ़ लाख जवान सुरक्षा में तैनात हैं।
दूसरा पड़ाव शेषनाग…
अगले पड़ाव शेषनाग के लिए कूच kr पैदल यात्री करीब 5 घंटे की पैदल चढ़ाई के बाद शेषनाग पहुंचे। यहां पहुंचते ही सुंदर झील नजर आई जो तीन तरफ से बर्फ से ढंकी थीं। झील का पानी आकाश की तरह नीला था।
इसी झील से थोड़ा आगे यात्रियों के लिए बेस कैंप बना h le रात बिताने के लिए कैंप में ठिकाना ढूंढने का चैलेंज होता हे लेकिन बिना ज्यादा मशक्कत के कैंप में सभी यात्रियों को जगह मिल जाती हे
3590 मीटर की ऊंचाई पर है शेषनाग झील और इस झील को तीन तरफ से पहाड़ों ने घेरा हुआ है। ज्यादा ऊंचाई के चलते यहां ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे सांस लेने में दिक्क्त महसूस होती है।
तीसरा पड़ाव पंचतरणी…-
शेषनाग बेस कैंप से पंचतरणी के लिए रास्ता 14 किलोमीटर का h lekin हाथों में तिरंगा और ‘बम भोले’ के नारों के यात्री यहां से रवाना हो जाते हे
पहले 2 किमी की खड़ी चढ़ाई और फिर बर्फ के अगल-बगल से गुजरते संकरे रास्ते। ऑक्सीजन की कमी के बीच खड़े पहाड़ों से गुजरता यात्रियों का कारवां। शेषनाग से चलने पर पहला पड़ाव आया महागुण स्टॉप।
करीब 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस जगह पर फाइव स्टार लंगर लगा रखे हे ।
पांच ग्लेशियर्स का संगम है पंचतरणी
पंचतरणी, पांच ग्लेशियर पहाड़ों से घिरा हरा भरा मैदान है। इन्हीं ग्लेशियर से निकलने वाले पानी से पंचतरणी नदी बनती है। पहलगाम रूट से जाने पर अमरनाथ गुफा पहुंचने से पहले का ये सबसे बड़ा यात्री कैंप है।
पंचतरणी घाटी में ही हेलिकॉप्टर बेस बना हुआ है। घाटी में फड़फड़ाते हेलिकॉप्टर हर एक मिनट देखे जा सकते हैं। पैदल आने वाले यात्री अपनी दूसरी दिन की यात्रा पूरी करने के बाद यहीं आराम करते हैं और तीसरे दिन यहां से गुफा का 6 किमी का अगला सफर करते
पंचतरणी से गुफा का रास्ता सबसे कठिन रास्ता है। सीधी खड़ी चढ़ाई, धूल-बड़े पत्थरों वाले बेहद संकरे रास्ते, दोनों तरफ सैंकड़ों फीट गहरी खाई और श्रद्धालुओं की भीड़। रास्ते में आगे बढ़ते हुए आता है संगम पॉइंट।
बालटाल से आने वाला रास्ता इस पॉइंट पर मिलता है और संकरे से रास्ते पर ट्रैफिक दोगुना हो जाता है। लंबी-लंबी कतारों में श्रद्धालुओं को इंतजार करना होता है।
2 किमी पहले घोड़ेवालों को रोक दिया जाता है
करीब 2 किमी पहले ही घोड़ेवालों को रोक दिया जाता है और यहां से गुफा तक पैदल सफर करना होता है, हालांकि पालकी से श्रद्धालु गुफा तक जा सकते हैं।
दल चलने वाले यात्रियों को घोड़ों से भी दो-चार होना पड़ता है। रास्ते का ज्यादातर हिस्सा ऐसा है, जहां जरा सी भी लापरवाही मौत के घाट उतार सकती है। ऐसे में अब बादल फटने की आपदा ने वहां ठहरे यात्रियों के हालात बेहद मुश्किल कर दिए हैं।