Arjan Singh Death Anniversary: भारतीय वायुसेना का पहला फाइव स्टार अधिकारी, जिसे आजादी से पहले मिला विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस
Arjan Singh Death Anniversary: भारतीय वायुसेना का पहला फाइव स्टार अधिकारी, जिसे आजादी से पहले मिला व
Arjan Singh Death Anniversary: भारतीय सेना में कई शानदार और जांबाज अधिकारियों की लंबी सूची मिल जाएगी, लेकिन एयर मार्शल अर्जन सिंह (Arjan Singh) की कहानी कुछ ज्यादा ही अलग और बेमिसाल है. वे भारतीय वायुसेना में पांच सितारा पद वाले मार्शल ऑफ द एयर फोर्स (Marshall of the Air Force) का पद हासिल कर पाने वाले एक मात्र व्यक्ति थे. 16 सितंबर 1917 को उनकी पुण्यतिथि पर उनके योगदान को याद किया जा रहा है. उनका सबसे अहम योगदान 1965 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध (India Pakistan War) में भारतीय वायुसेना के बेहतरीन और निर्णायक नेतृत्व के रूप में माना जाता है. इसके लिए उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया था.
परिवार में सेना की परंपरा
अर्जन सिंह का जन्म अविभाजित पंजाब के लयालपुर में 15 अप्रैल 1919 को हुआ था जो आज पाकितान का फैसलाबाद शहर है. वे औलख कुल के जाट सिख परिवार से थे. इस परिवार के सदस्य पहले ही सेना से जुड़े रहते थे और परिवार की परम्पराओं का ध्यान रखते हे अर्जन सिंह की पीढ़ी चौथी पीढ़ी थी जो अंग्रेजों के भारतीय शस्त्र बलों का हिस्सा बनी थी. उनकी पिछली तीन पीढ़ियां सेना में मध्य और निचली रैंक के सैनिक के तौर पर शामिल थी.
खेलकूद में भी कमाया नाम
अर्जन सिंह सहवाल (आज के पाकिस्तान में) के मोंटगोमरी में पढ़े और एक जाने माने खिलाड़ी के तौर पर पहचाने जाते थे. वे लाहौर के गर्वनमेंट कॉलेज में तैराकी टीम के कप्तान थे और उन्होंने तैराकी में चार पंजाब और चार यूनिवर्सिटी रिकॉर्ड कायम भी किए थे. उन्होंने 1938 में क्रैनवेल के द रॉयल एयरफोर्स कॉलेज में प्रवेश किया जहां वे तैराकी, एथलेटिक्स और हॉकी टीमों के उपकप्तान थे.
द्वितीय विश्व युद्ध में पायलट
20 साल की उम्र में एम्पायर पायलट ट्रेनिंग कोर्स में अव्वल स्थान हासिल करते हुए वे एक पायलट अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए. वे नंबर 1 स्क्वाडर्न से उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत के कोहट में तैनात किए गए जहां उन्होंने वेस्टलैंड वापिती बाइप्लेन उड़ाए. पठानों के साथ युद्ध के दौरान उनका विमान क्रैश हो गया, लेकिन वे सकुशल बच गए और दो हफ्ते बाद फिर से विमान उड़ाने लगे थे. 1943 में वे स्वाडर्न लीडर बने और कमांडिंग अफसर भी बन गए. इसके बाद उन्होंने 1944 में भारतीय वायुसेना की नंबर एक स्वाड्रन का अराकान अभियान में नेतृत्व किया और उसी साल फ्लाइंग क्रास से सम्मानित भी हुए.
कोर्ट मार्शल
फरवरी 1945 में केरल के एक रिहायशी इलाके के बहुत से नीचे से उड़ान भरने के आरोप में अर्जन सिंह को कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा. वे एक ट्रेनी पायलट दिलबाग सिंह का मनोबल बढ़ाने के लिए कोशिश ऐसा कर रहे थे. अपने बचाव में उन्होंने कहा था कि ऐसी तरकीबों से हर कैडेट को फाइटर पायलट बनाने के लिए जरूरी होती हैं. बाद में यही दिलबाग सिंह भारत के एयर चीफ मार्शल भी बने. अर्जन सिं उसी साल विंग कमांडर भी बना दिए गए.
1947 में आजादी के समय
अर्जन सिंह ने 1947 में भारत की आजादी के दिन दिल्ली के लाल किले के ऊपर से उड़ान भरने वाले रॉयल इंडियन एयर फोर्स (RIAF) के पहले फ्लाई पास्ट का नेतृत्व किया. इसके बाद उन्होंने अंबाला के एयर फोर्स स्टेशन की कमान ग्रुप कैप्टन के रूप में संभाली. उन्होंने कई जगहों में प्रशिक्षण कार्य में भी योगदान दिया. 1950 में वे भारतीय वायुसेना, एओसी, ऑपरेशनल कमांड के एयर कमोडोर रहे. 1959 तक वे एयर वाइस मार्शल बन गए थे.
1965 युद्ध में भारतीय वायुसेना नेतृत्व
44 साल के उम्र में अर्जन सिंह न भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध में अपने नेतृत्व कौशल का बेहतरीन प्रदर्शन किया था. चीफ ऑफ एयर स्टाफ के रूप में उन्होंने बहुत ही चतुराई से वायुसेना का संचालन किया. पाकिस्तान के हमले के बाद जब उनसे पूछा गया कि भारतीय वायुसेना कितनी देर में हमला करने के लिए तैयार होगी तब उन्होंने फौरन जवाब दिया कि एक घंटे में. अपनी बात को कायम रखते हुए एक घंटे में ही भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान पर जवाबी हमला कर शुरुआती झटकों के बाद भी भारतीय सेना को शानदार तरीके युद्ध में हावी करवा दिया.
युद्ध के बाद अर्जन सिंह को पद्मविभूषण से सम्मानित करने के साथ ही एयर चीफ मार्शल बना दिया गया. 15 जुलाई 1969 में रिटायर होने के बाद अर्जन सिंह स्विट्जरलैंड, होली सी, लीचेन्स्टीन में भारत के राजदूत, कीनिया में हाई कमिश्नर, और 1989 से 1990 तक दिल्ली के उपराज्यपाल रहे. साल 2002 में उन्हें मार्शल ऑफ द इंडियन एयर फोर्स की पदवी दी गई जो भारतीय सेना में फील्ड मार्शल के पद के समकक्ष होता है. उसी साल उन्हें पांच सितारों से भी सम्मानित किया गया. ऐसा मुकाम हासिल करने वाले एकमात्र भारतीय वायुसेना अधिकारी थे.