बेटी को आए फर्स्ट पीरियड तो परिवार ने केक काटकर किया सेलिब्रेट, फेसबुक पर लिखा...'बेटी बड़ी हो गई है'
Father Celebrates Daughter First Period
काशीपुर: Father Celebrates Daughter First Period: पीरियड'.. 'माहवारी' 'रजस्वला' इस शब्द को लेकर भारत जैसे देश में कैसे मिथक और रूढ़िवादिता जुड़ी है इसे देखने और समझने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं.. हर घर में पीरियड से जुड़े मिथ और रूढ़ियां मिल जाएंगी, जिसे पीढ़ियों से लड़कियां झेलती आ रही हैं।
भारत के ही एक हिस्से उत्तराखंड के पहाड़ों की बात करें तो पहाड़ों में ऐसे जाने कितने रूढ़ीवादी रीति-रिवाज मिल जाएंगे, जिनकी कल्पना भी महिला स्वास्थ्य और जागरूकता के मुंह पर तमाचा है। ऐसे रस्म व रीति-रिवाज जिनकी आड़ में बेटियां पीढ़ियों से घुटती आई हैं।
इंटरनेट मीडिया में तेजी से वायरल हो रही पोस्ट (Fast viral post in internet media)
ऐसी तमाम बातों के बीच आशा की किरण बनकर उभरे हैं उत्तराखंड के काशीपुर के एक माता-पिता जितेंद्र भट्ट और भावना, जिनकी रागिनी 13 साल की बेटी है। जिन्होंने एक अनोखी और प्रेरणादायी कदम से लोगों को पीरियड और उससे जुड़ी रूढ़ियों को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है।
इनकी एक पोस्ट इंटरनेट मीडिया में तेजी से वायरल हो रही है। कुछ लोग जहां जितेंद्र की इस सोच की खुलकर तारीफ कर रहे हैं, वहीं कुछ को अभी भी ऐसे बदलाव से आपत्ति है। इसी सप्ताह मंगलवार को जितेंद्र भट्ट की पत्नी भावना ने उन्हें बताया कि उनकी 13 साल की बेटी रागिनी को पीरियड्स शुरू हो गए हैं।
बेटी थोड़ा असहज थी, लेकिन दोनों माता-पिता ने बेटी को एक साथ बैठाया और उसे बताया कि पीरियड्स उसके लिए किस तरह से स्पेशल है। ये कोई शर्म और संकोच की बात नहीं है। ये एक ताकत है। सृजन की ताकत जो सिर्फ़ उत्सव और खुशी की बात है।
इस मौके पर माता-पिता ने सभी आस-पड़ोस के लोग और अपने रिश्तेदारों को बुलाया। फिर केक काटा गया रागिनी के पहले पीरियड्स का केक... मेहमान रागिनी के पहले पीरियड शुरू होने पर उसके लिए तरह-तरह के गिफ्ट भी लेकर आए। फोटोग्राफ निकाली गईं। उस उत्सव के तमाम वीडियो बने।
केक बनाने वाले को दिया आर्डर, उसने बोला क्या... (Order given to the cake maker, what did he say...)
समाज में भी पीरियड को लेकर पहल से काफी कुछ बदल सकता है। केक का आर्डर लेने वाले दुकानदार का भी कहना है कि वाकई यह कुछ नया है और मैं भी पूरे परिवार को बधाई देता हूं। जब पहली बार मुझे आर्डर दिया गया तो मैं भी थोड़ा संभला और फिर से पूछा क्या संदेश देना है, लेकिन अगली आवाज उनके पिता की थी और उन्होंने बताया कि वह अपनी बेटी के लिए ऐसी पहल कर रहे हैं। मैं भी खुद को गौरवान्वित मानता हूं कि मैं इस पहल का एक हिस्सा हूं। आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसा बदलाव अच्छा है। अपनी तरह का ये अनोखा उत्सव लोगों को निश्चय ही एक नई सोच की तरफ़ सोचने को मजबूर करेगा।
जितेंद्र से सीख लेकर बढ़ने की जरूरत... (Need to learn from Jitendra and grow...)
पीरियड को लेकर लोगों की सोच में बहुत बदलाव आया है। शासन और प्रशासन के स्तर पर भी बहुत कुछ हो रहा है। पीरियड के दौरान साफ़-सफ़ाई, अच्छे पोषक भोजन के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन अभी भी ये योजनाएं ऊंट के मुंह में जीरा जैसी ही हैंं। ये तभी सम्भव होगा जब व्यक्तिगत रूप से हम जितेंद्र भट्ट और भावना की तरह सोचने लगेंगे। जब हम पीरियड को लेकर खुलकर बात करेंगे।
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