The distance between Srinagar and Delhi is now a thing of the past:

Editorial: श्रीनगर-दिल्ली के बीच की दूरियां अब गुजरे जमाने की बात

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The distance between Srinagar and Delhi is now a thing of the past

The distance between Srinagar and Delhi is now a thing of the past: यह वही जम्मू-कश्मीर है, जहां आज से कुछ समय पहले तक आतंकवाद का वह दौर जारी था, जिसने न केवल इसे पूरे देश से बल्कि दुनिया से भी अलग-थलग कर दिया था। मोदी सरकार ने घाटी को देश से अलग करने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करके जिस प्रकार यहां के रास्ते शेष भारत के लिए खोले थे, अब उन्हीं रास्तों पर आगे बढ़ते हुए जम्मू-कश्मीर भारत में घुल मिल चुका है। श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर गगनगीर व सोनमर्ग के बीच 6.4 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण घाटी के विकास की कहानी में एक और अध्याय बन चुका है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सुरंग का लोकार्पण करके देश को वह ताकत प्रदान की है, जोकि विरोधी पड़ोसी देशों की पेशानी पर नया बल डाल रही है, वहीं आतंकियों को भी अब छिपने को मजबूर कर रही है। सोनमर्ग सुरंग का निर्माण जम्मू-कश्मीर के विकास की दिशा में मील का पत्थर का साबित होगा वहीं सामरिक दृष्टि से भी इस सुरंग ने अब विरोधी देशों के समक्ष भारत को और प्रखरता से स्थापित कर दिया है। देश के लिए अपनी सीमाओं की रक्षा सर्वोपरि है और लेह-लद्दाख में चीन के साथ लगती सीमा पर भारतीय सुरक्षा बलों का पहुंचना अब कुछ मिनटों की बात होगी।

अगर सोनमर्ग सुरंग ने देश को सीमा के आखिरी छोर तक जोड़ दिया है तो इस उद्घाटन कार्यक्रम के जरिये श्रीनगर और दिल्ली के बीच की दूरियां भी घट चुकी हैं। एक वह दौर था, जब घाटी में सरकार के सुर दिल्ली से जुदा ही रहते थे। बीती तमाम सरकारों के समय ऐसा हुआ जब राज्य सरकार अपने ही मंसूबे लेकर बैठी रही और प्रदेश का विकास आगे नहीं बढ़ सका। हालांकि अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद केंद्र सरकार ने घाटी में खुद शासन चलाया और यहां के राजनीतिक दल दिन-रात यह कहते नहीं थकते कि घाटी में लोकतंत्र को खत्म कर दिया गया है। यहां बार-बार इसकी मांग की जाती थी और विरोधी देश अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चीखते हुए ऐसा कहते थे कि घाटी के लोगों पर अन्याय और अत्याचार हो रहा है। उस समय विपक्ष के तमाम नेताओं को नजरबंद भी किया गया और इसकी पुरजोर आलोचना की गई।

हालांकि उस समय जो हुआ, वह उन हालात के लिए आवश्यक था। केंद्र सरकार ने अपने वादे के अनुसार तय समय पर चुनाव सुनिश्चित कराए और चुनाव आयोग ने अपनी भूमिका का निर्वाह करते हुए निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराए। अब बदले दौर की कहानी सुनिए कि राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी चुनाव आयोग की प्रशंसा कर रहे हैं। हालांकि उनकी नेशनल कांफ्रेंस उसी इंडिया गठबंधन की हिस्सेदार है, जोकि चुनाव आयोग को पानी पीकर कोस रहा है और देश में लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा रहा है।
   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच जो तारतम्य नजर आया है, वह आज की राजनीति के लिए सबक है। बेशक, राजनीतिक विचारधारा अपनी जगह है, लेकिन जनता के कल्याण के लिए विरोधियों को भी एक मंच पर और एक विचार के साथ सामने आना चाहिए। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी और वे एक सुलझे हुए राजनेता हैं। मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद ही उन्होंने इसकी उम्मीद जताई थी कि अब श्रीनगर और दिल्ली के बीच की दूरी खत्म होगी। जाहिर है, उनके लिए घाटी का विकास प्राथमिकता है न कि देश में ही कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भांति केंद्र के साथ टकराव रखकर विकास कार्यों से वंचित रहना। यह सच है कि विकास के लिए स्वार्थी होना पड़ता है, अगर एक राज्य सरकार यह मानकर चल रही है कि वह अपने आप में संपूर्ण है और केंद्र की उसे जरूरत नहीं पड़ेगी तो यह नासमझी होगी। जम्मू-कश्मीर किसी एक राजनीतिक दल की जरूरत नहीं है, यह देश का शीर्ष है और इसकी चमक पूरी दुनिया में भारत का गौरव बढ़ाती है। इसका विकास यह साबित करता है कि किस प्रकार देश ने किसी दुश्मन देश की कुचालों को जवाब देते हुए एक अशांत हो चुके प्रदेश में मुहब्बत और तरक्की के फूल खिलाए हैं।

हालांकि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घाटी को राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग भी की है, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने सही समय पर निर्णय लेने का आश्वासन दिया है। वास्तव में घाटी के बदल चुके हालात अब इसे देश के अन्य राज्यों की तुलना में तेजी से विकास पथ पर ले जा रहे हैं। इस अनुपम कार्य में यहां की जनता का सहयोग भी प्रशंसनीय है। घाटी में लोगों ने यह चाहा है कि यहां के हालात बदलें और चुनाव में उन्होंने भारी मतदान करके इसकी इच्छा जताई थी कि वे यहां बदलाव चाहते हैं। घाटी में परिवर्तन की बयार अब और तेज होने की उम्मीद है और यही पूरे देश की पुकार है। 

 

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