The dark shadow of pollution has made life difficult

Editorial: प्रदूषण की काली छाया ने जीना किया दुश्वार, अब तो संभलो

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The dark shadow of pollution has made life difficult

The dark shadow of pollution has made life difficult, now be careful: आजकल एक सवाल सभी के मन में है कि आसमान में जो धुंध जैसा है, क्या वह सच में धुंध है या फिर कुछ और है। दरअसल, यह धुंध नहीं है, यह हर वर्ष की तरफ उत्तर भारत के आसमान में छा जाने वाला प्रदूषण है, जिसकी जद से कुछ नहीं बचता। हालात कुछ ऐसे हैं कि अमृतसर में स्वर्ण मंदिर हो या फिर आगरा में ताजमहल। सब कुछ आंखों से ओझल हो गया है। देश की राजधानी दिल्ली हो या फिर चंडीगढ़ या फिर पानीपत हो या फिर जालंधर। लखनऊ हो या फिर कोई और शहर। हर जगह वायु प्रदूषण की काली छाया है। बेशक, बदल चुके मौसम में धुंध की परछाई भी शामिल है, लेकिन पराली जलने से हुए प्रदूषण और अन्य कारकों को मिलाने से दृश्यता कम से कम हो गई है और इसी वजह से हादसे भी बढ़ रहे हैं।

हरियाणा में बीते दिन हुए हादसों में पांच लोगों की मौत हो गई, वहीं 40 से ज्यादा घायल हो गए। अब इस पर भी गौर फरमाइए कि हरियाणा में 9 जिलों का एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) २०० पार हो चुका है। वीरवार को चंडीगढ़ का एक्यूआई जहां 450 रहा वहीं दिल्ली का एक्यूआई 424 दर्ज किया गया। गुरुग्राम में एक्यूआई 318 तो बिहार के सहरसा का एक्यूआई 377 दर्ज किया गया। अब ध्यान देने वाली बात यह है कि गुरुग्राम और सहरसा के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी है। शहरों में दूरी है लेकिन उनके हालात एक जैसे हैं। क्या यह सच में स्वस्थ जीवन का माहौल है।

सामने आ रहा है कि इस जहरीले धुएं की वजह से आजकल अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। एलर्जी, अस्थमा, खांसी, जुकाम जैसे रोगों से बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और युवा सभी पीड़ित हो गए हैं। हालांकि आजकल पराली जलाने के मामले भी एकाएक कम होते दिख रहे हैं। लेकिन इसकी वजह जागरूकता या फिर बिगड़े हालात को संभालने की किसानों की चाहत नहीं है, अपितु इसका कारण सेटेलाइट तस्वीरें हैं, जोकि धुंध की वजह से स्पष्ट नहीं हो रही। आजकल पंजाब एवं हरियाणा समेत दूसरे राज्यों में भी नई फसल को बोने की तैयारी चल रही है। लेकिन उससे पहले किसान फसल के अवशेषों को नष्ट करने में लगे हैं और इसी वजह से पर्यावरण में जहरीली हवा बढ़ गई है।

विशेषज्ञ बता रहे हैं कि चंडीगढ़ जैसे शहर में जिसे सिटी ब्यूटीफुल कहा जाता है, वहां लोग 6 सिगरेट के धुंए जितनी जहरीली हवा अपने फेफड़ों में भर रहे हैं। चंडीगढ़ में पीजीआई, जीएमसीएच-32, जीएमएसएच-16 में प्रदूषण की वजह से मरीजों की संख्या में बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इन दिनों में हवा का प्रसार थम जाता है, जिससे प्रदूषित हवा का संचार भी नहीं हो पाता और वह आसमान में बनी रहती है। दरअसल, यह सब बातें अपनी जगह हैं, लेकिन प्रश्न यही है कि आखिर ऐसे हालात कब तक चलेंगे। या फिर यह माना जा सकता है कि दिन प्रति दिन और प्रति वर्ष इसी प्रकार से हालात बदतर होते जाएंगे। हम देख सकते हैं कि अगले एक-दो महीने बाद हालात कुछ सुधर जाएंगे। पराली जलाने की घटनाएं बंद हो जाएंगी और तब न अदालतों में ऐसे मामलों की सुनवाई होगी और न ही सरकारों की ओर से कोई बयान दिए जाएंगे।

आम आदमी भी भूल जाएगा क्योंकि उसकी अपनी समस्याएं इतनी हैं कि बाहर के प्रदूषण पर वह क्या गौर करे। फिर इंतजार होगा साल के आखिर का। दिवाली आएगी और पटाखों से प्रदूषण की बात शुरू हो जाएगी। इसी दौरान पराली के जलाने की घटनाएं फिर घटने लगेंगे। फिर अदालतों की ओर से सरकारों को फटकार पड़ेगी, सरकारें जवाब देंगी, उन्हें निर्देशित किया जाएगा कि इतने दिनों के अंदर इस समस्या का समाधान हो। सरकारें सिर झुका कर आदेश के पालन में जुट जाएंगी। एसी कमरों जिनमें एयर फ्यूरीफायर भी लगे होंगे, चर्चा होंगी। योजनाएं बनेंगी और विशेषज्ञ सलाह देंगे, उन पर अमल किया जाएगा। और बस यही चलता रहेगा।

वास्तव में हालात बेहद खराब हो चुके हैं, इस बात को समझना होगा। किसानों पर जुर्माना चाहे कितना बढ़ा दिया जाए वे फिर भी पराली जलाएंगे। त्योहारों पर पटाखे फोड़ने से कितना भी रोका जाए, फिर भी पटाखे फोड़े जाएंगे। बात सिर्फ यह भी नहीं है कि इन्हीं से प्रदूषण फैल रहा है। देश जितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है, उतनी तेजी से इसका पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। देश की आबादी बढ़ रही है और इसकी प्रकृति को नुकसान भी बढ़ रहा है। क्या हम किसी ऐसे दिन का इंतजार कर सकते हैं जब हम कहेंगे कि अब हम प्रदूषण को रोकने का काम शुरू करते हैं। पूरा देश और दुनिया पर्यावरण असंतुलन से पीड़ित होती जा रही है और इस धरती पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह पर्यावरण को बचाने के लिए काम करे। वैसे, जो ऐसा सोचते हैं, वे यह काम कर भी रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। ऐसे में प्रयास  और संख्या को हमें बढ़ाना होगा। प्रदूषण की रोकथाम के लिए सभी को जिम्मेदारी निभानी होगी। 

 

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