Unfortunate conflict between governor and government
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Editorial: राज्यपाल, सरकार में टकराव दुर्भाग्यपूर्ण, दोनों के पास अपने-अपने दायित्व

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Unfortunate conflict between governor and government

Unfortunate conflict between governor and government पंजाब में राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और आम आदमी पार्टी की सरकार के बीच तनातनी दुर्भाग्यपूर्ण और अनावश्यक है। लोकतंत्र में राज्यपाल को भी एक भूमिका मिली हुई है, वे संवैधानिक पद पर आसीन हैं और राज्य सरकार के साथ वे भी जनता के प्रति उत्तरदायी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि देश में प्रत्येक राजनीतिक पद संविधान के प्रति समर्पित है और संविधान का मूल देश की जनता है। दरअसल, राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित आजकल पंजाब में सीमावर्ती छह जिलों के दौरे पर हैं और वहां के लोगों से मुखातिब होते हुए उनकी समस्याओं को सुन रहे हैं।

हालांकि राज्यपाल का यह कार्यक्रम प्रदेश सरकार को नागवार गुजर रहा है और उसका कहना है कि राज्यपाल समानांतर सरकार चला रहे हैं। उसका यह भी कहना है कि राज्यपाल के बयान राजनीतिक हैं। हालांकि राज्यपाल पुरोहित ने चुनौती दी है कि उनके बयानों को राजनीतिक साबित करके दिखाएं। आम आदमी पार्टी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का आरोप लगाती है, लेकिन क्या उसकी ओर से राज्यपाल के प्रदेश में दौरों और जनसामान्य की दिक्कतों के प्रति चिंतित होने को राजनीतिक करार दिया जाएगा।

राज्यपाल पुरोहित Governor Purohit एक सजग और संवेदनशील राजनेता हैं। आमतौर पर राज्यपाल की भूमिका यहीं तक निर्धारित कर दी गई है कि वे राजभवन में ही रहेंगे और जब राज्य सरकार का बुलावा आएगा, उसी समय वे राजभवन से बाहर आएंगे। अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जब राज्यपालों ने अपने आप को सीमित कर लिया और वे सरकार के संवैधानिक मुखिया ही बने रहे। प्रदेश की जनता को यह तक पता नहीं चला कि वे कब राज्यपाल बनकर आए और कब चले गए। पंजाब में नशे की समस्या विकराल रूप ले चुकी है।

प्रत्येक सरकार इसके खात्मे का दावा करती है लेकिन पांच साल होते-होते वह भी हथियार डाल चुकी होती है। क्या एक राज्यपाल जोकि प्रदेश के संवैधानिक मुखिया हैं, अगर राज्य की पुलिस और प्रशासन से सीधे मुखातिब होकर नशे की समस्या पर नियंत्रण की बात करते हैं तो यह गैरकानूनी या फिर राजनीतिक होना कहलाएगा। गौरतलब है कि आप की ओर से कहा गया है कि अगर राज्यपाल को प्रदेश में नशे की समस्या को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें इसके लिए निर्वाचित सरकार के मुखिया यानी मुख्यमंत्री से बात करनी चाहिए। पार्टी का आरोप है कि एक राज्यपाल की ओर से समानांतर सरकार चलाना लोकतंत्र के लिए घातक है।

बेशक, राज्यपाल पुरोहित का यह उपक्रम जिसमें वे बॉर्डर जिलों में जाकर खुद वहां के हालात का जायजा ले रहे हैं, अद्वितीय है। एक राज्यपाल का एकमात्र कार्य राजभवन में बैठकर सरकार के जरिए आई रिपोर्ट को पढक़र उस पर राय बनाना नहीं होना चाहिए। प्रदेश सरकार राज्यपाल की अनदेखी नहीं कर सकती, बावजूद इसके ऐसा होता देखा गया है। वहीं अब नशे की समस्या पर बोलने की वजह से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्यपाल अपनी भूमिका से बाहर जा रहे हैं। लेकिन यह आरोप लगाने से पहले आम आदमी पार्टी सरकार को यह साबित करना चाहिए कि राज्यपाल अपनी भूमिका से बाहर जा रहे हैं। बेशक, उनसे राजनीतिक बयान की अपेक्षा नहीं की जाती। उनकी राजनीतिक आस्था किसी भी दल के प्रति हो सकती है, लेकिन राज्य में अगर विपक्ष की सत्ता है तो भी उन्हें उसके साथ राजनीतिक शिष्टाचार और संवैधानिक मर्यादा का पालन करना होगा। हालांकि पंजाब में राज्यपाल को जनता से मिलने पर ऐतराज जताया जाना अव्यावहारिक प्रतीत होता है।

राज्यपाल ने अपने दौरे में नशे के अलावा खालिस्तान, ड्रग्स, हथियार, गैंगस्टर और आतंकवाद पर चोट की है। जाहिर है, इन सभी विषयों पर सरकार को काम किए जाने की जरूरत है। राज्यपाल को अगर प्रदेश के हालात की बखूबी जानकारी होगी तो वे शासन व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहयोग दे सकेंगे। इसे समानांतर सरकार चलाना न समझ कर प्रदेश की जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को और गहराई से समझने की जरूरत माना जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा।

हालांकि बावजूद इसके यह उम्मीद की जाती है कि राज्यपाल प्रदेश की निर्वाचित सरकार को विश्वास में लेकर काम करेंगे, क्योंकि चाहे वह राज्यपाल का पद हो या फिर मुख्यमंत्री, दोनों का अंतिम सरोकार जनता के प्रति समर्पित होना है। दोनों को जनता के कल्याण के लिए काम करना है। मुख्यमंत्री का कार्य अगर कार्यवाही को अंजाम देना है तो राज्यपाल का कार्य उस कार्यवाही को ठीक से अंजाम देते देखने का है। 

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