The cold valleys of Shimla should not be dragged into controversy

Editorial:शिमला की ठंडी वादियों को विवाद में न घसीटा जाए

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The cold valleys of Shimla should not be dragged into controversy

The cold valleys of Shimla should not be dragged into controversy:  शिमला की ठंडी वादियों में इससे पहले इतनी तपिश शायद कभी महसूस नहीं की गई। इस तपिश ने जहां शिमला शहर की शांति में विघ्न डाल दिया है, वहीं एक गुलजार रहने वाले शहर को संप्रदायों के विवाद में धकेल दिया है। आस्था के स्थान निर्मित करने में क्या बुराई है, लेकिन अगर वे आस्था के स्थल परेशानी देने की जगह बन जाएं तो फिर विरोध होगा ही। हिमाचल प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम की बात होना कुछ अचरज भरा हो सकता है। शिमला के संजौली में एक पांच मंजिला मस्जिद बना दी गई और किसी को पता तक नहीं चला। इस समय प्रदेश में कांग्रेस सरकार है और हिंदू संगठन मस्जिद को अवैध बताकर उसे ढहाने की मांग कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस सरकार की यह दुविधा है कि वह अल्पसंख्यकों की हितैषी होने का दावा करती है, ऐसे में उनके ही निर्माण पर कैसे बुलडोजर चलवा दे। देश में इस समय बुलडोजर कार्रवाई को लेकर बड़ा विवाद है, सुप्रीम कोर्ट भी इस पर यूपी सरकार को निर्देशित कर चुका है। बेशक, अगर यह मामला यूपी का होता तो अब तक बुलडोजर चल चुका होता। लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार कैसे एक कथित रूप से अवैध निर्माण को ढहाए, यह उसके लिए गंभीर मुद्दा है।

सरकार के लिए यह मसला किस कदर चिंताजनक है, इसकी बानगी इससे मिलती है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने मुख्यमंत्री से मामले की रिपोर्ट मांगी है। हालांकि इस दौरान राज्य पुलिस की ओर से जो कार्रवाई वहां प्रदर्शनकारियों जिनमें महिलाएं, युवा और बाकी लोग शामिल हैं, को रोकने के लिए की जा रही है, उसके संबंध में शायद अभी तक किसी ने फ्रिक करने की जरूरत नहीं समझी है। इन लोगों पर लगातार पानी की बौछार हो रही है और इन्हें वहां से खदेडऩे के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है। एक लोकतांत्रिक राज्य में आखिर प्रदर्शन के हक से भी जनता को कैसे रोका जा सकता है। पुलिस की ओर से प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया जा रहा है, इस दौरान छह के करीब पुलिस कर्मचारियों को चोटें आई हैं। यानी यह प्रदर्शन कितना तीखा होता जा रहा है, इसका अहसास घायलों की बढ़ती तादाद से लगाया जा सकता है।

राज्य सरकार की ओर से व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस तरह की कवायद के निर्देश सही हो सकते हैं, लेकिन यह समझे जाने की आवश्यकता है कि आखिर स्थानीय लोग इतने नाराज क्यों हैं और एकाएक उस जगह पर पांच मंजिला कथित अवैध मस्जिद कैसे खड़ी हो गई। इस मस्जिद के वैध या अवैध होने का मामला नगर निगम आयुक्त की अदालत में सुनवाई के लिए पहुंचा हुआ है, लेकिन सुनवाई की तारीख 5 अक्तूबर रखी गई है। क्या यह संभव है कि तब तक प्रदर्शनकारियों को सरकार वहां से जाने के लिए मना सकती है, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इस मामले की त्वरित सुनवाई पूरी की जाए और यह निर्णय हो कि वह इमारत कितनी सही है।

वास्तव में एक ऐसी रपट भी सामने आ रही है, जिसमें शिमला में बीते समय में बारिश और भूस्खलन की वजह से एक शिव मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। यह शिव मंदिर प्राचीन था और जब पहाड़ ढहने की वजह से यहां हादसा हुआ तो उसमें कई लोगों की दबने से मौत भी हो गई थी। निश्चित रूप से यह बेहद दुखद और डरावना वक्त था। हालांकि अब जब हालात सामान्य हो गए हैं तो वहां के लोग इस मंदिर को फिर से बनाने के लिए जत्न कर रहे हैं, लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि इससे उन्हें यह कहकर रोक दिया गया है कि इस जगह पर मंदिर नहीं बना सकते। यह भी कहा गया है कि इससे पहले जो मंदिर यहां था, वह भी अवैध था। अब यह बात किसी को समझ नहीं आ रही है कि सदियों से जो मंदिर उस जगह पर स्थापित था, तो तब वहां कैसे था और जब वह ढह गया तो उसकी जगह फिर से मंदिर बनाने से क्यों रोका जा रहा है। क्या धार्मिक तुष्टिकरण जैसे आरोपों से हमारी सरकारें बच पाएंगी। आजकल वक्फ बोर्ड की जमीनों को लेकर नया कानून बनाने की तैयारी है, और उसके लिए जनता से सुझाव मांगे जा रहे हैं।

कहा यह जा रहा है कि ऐसा सरकार वक्फ की जमीन हथियाने के लिए कर रही है। अचरज इस बात का है कि मंदिर की जमीन को अवैध ठहरा दिया जाता है, जबकि दूसरे किसी धार्मिक स्थल की जमीन को लेकर आयुक्त की अदालत के निर्णय का इंतजार कराया जाता है। वहीं उस संबंध में यथोचित कानून के निर्माण में भी अड़चन डाली जाती है। शिमला की वादियां वास्तव में विवाद के लिए नहीं हैं, वहां के निवासी तमाम ऐसी शिकायतें करते हैं, जोकि बाहरी लोगों की वजह से पैदा हो रही हैं। स्थानीय लोगों की यह आजादी है कि वे ऐसी हरकतों का विरोध करें और सरकार को भी चाहिए कि वह कानून और व्यवस्था कायम करे।

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